"छत्तीसगढ़ रिपोर्टर" ने जनहित व भ्रष्टाचार के मामले में बड़े-बड़े घोटालों को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों को जब-जब सचेेत और जागरूक करने की जरूरत पड़ी तो सचेतक की भूमिका को बखूबी निभाया। छत्तीसगढ़ राज्य सहित देश के दो दर्जन से भी अधिक अरबों-खरबों रुपये के बड़े-बड़े घोटालों का देशहित व जनहित में "छत्तीसगढ़ रिपोर्टर" पर्दाफाश करता चला आ रहा है। अरबों-खरबों के आर्थिक घोटालों की इन खुलासों से हाईवोल्टेज तार का करंट जैसा सीधा, कुछ कद्दावर राजनेताओं और कई नामी-गिरामी उद्योगतियों व माफियाओं को लगता भी रहा। जिससे कई बार सरकारें डगमगाती नजर आई।
"छत्तीसगढ़ रिपोर्टर" निर्भीक, निष्पक्ष खोजपूर्ण समाचार पत्र है, जिसके प्रधान संपादक, भागवत जायसवाल ने बिलासपुर से "छत्तीसगढ़ रिपोर्टर" हिंदी साप्ताहिक का प्रकाशन 6 सितम्बर 1997 में किया, तब बिलासपुर मध्यप्रदेश राज्य में था अब छत्तीसगढ़ राज्य में है। ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ अधिकतर खोजी खबरें एवं विशेष रिपोर्ट, बड़े-बड़े घोटाले तथा जनहित मुद्दों को प्राथमिकता से प्रकाशित करता है। "छत्तीसगढ़ रिपोर्टर" का सफरनामा इसके पाठकों के निरंतर स्नेह और समर्थन के चलते आज भी उसी तेवर के साथ जारी है। "छत्तीसगढ़ रिपोर्टर" के खुलासों को देश के विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के सांसदों ने लोकसभा और राज्यसभा तथा विधानसभाओं में प्रमुखता से उठाते रहे हैं। उसके बाद केंद्र एवं राज्य सरकारों ने बड़ी कार्रवाई की, जिससे राज्य सरकारों एवं केंद्र सरकार को करोड़ों-अरबों का फायदा हुआ। छत्तीसगढ़ राज्य सहित देश के दो दर्जन से भी अधिक अरबों-खरबों रुपए के बड़े-बड़े घोटालों से देश को पहुंच रही क्षति को देखते हुए जोखिम भरा कारनामा देशहित व जनहित में "छत्तीसगढ़ रिपोर्टर" के प्रधान संपादक, भागवत जायसवाल ने पर्दाफाश किया है, जिसका कुछ अंश...
‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने 16 से 22 नवंबर 1998 के अंक में ‘नक्सली पुन: बिछाएंगे बारुदी सुरंग का जाल, फिर बहेगी खून की नदी’, नक्सलियों ने किया चुनाव का बहिष्कार और ‘दण्डकारण्य राज्य’ की घोषणा के शीर्षक से खुलासा किया था । मध्यप्रदेश की सबसे विशाल आदिवासी क्षेत्र एवं वनों का दीप कहे जाने वाला बस्तर आज खून से लथपथ हो गया है नक्सली आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार एवं उड़ीसा की सीमा से लगे हुए म.प्र. के पिछड़े आदिवासी इलाकों में भारी पैमाना में संगठित होने लगे हैं और पृथक ‘दण्डकारण्य राज्य’ की घोषणा के साथ अभी हो रहे 25 नवंबर 1998 की मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव का बहिष्कार करते हुए अपने संगठन को अपने साथ जोडऩे के लिए स्कूल कॉलेज में जाकर संगठन तैयार करना शुरू कर दिये हैं और वे अपने साथ जोडऩे के लिए विकास कार्य की योजना भी बना रहे हैं। इसे गति देने के लिए बस्तर जिला के सुदूर गांव झाबुमूड़ा के सीतापुर पहाड़ी में जहां सूरज की रोशनी भी नहीं पहुंच पाती वहां पिछले 15 दिनों से हजारों नक्सलियों को प्रशिक्षण राजसी ठाटबाट के तहत दिया गया है। इस प्रशिक्षण का उद्देश्य चुनाव के दौरान भारी पैमाने पर हिंसा फैलाना व चुनाव का बहिष्कार कर मतदाता को मताधिकार से वंचित रखना तथा ‘दण्डकारण्य राज्य’ की स्थापना को आगे बढ़ाने के लिए यह बैठक किया गया है। इस बैठक की भनक 15-20 दिनों के बाद कांकेर जिले के पुलिस अधीक्षक पवनदेव को हुई तब पुलिस बल के साथ उक्त स्थानों के लिए रवाना हुए। पहाड़ी इलाका होने के कारण पुलिस को वहां पहुंचने में चार दिन लग गए। जिसकी भनक नक्सलियों को लगी और वे वहां से भाग निकले इस बीच पुलिस एवं नक्सलियों से मुठभेड़ हुई। अब तक नक्सलियों ने बारुदी सुरंग से 90 पुलिसकर्मी की हत्या की है 25 पुलिस कर्मी मुठभेड़ में तथा 50 नक्सली मारे गए हैं। लगभग 75 नक्सली गिरफ्तार हैं। इन घटनाओं ने समस्या की विकरालता को उजागर कर दिया है। किन्तु इस समस्या को बढ़ाने का दोष केवल मध्यप्रदेश सरकार के सिर पर अकेले नहीं मढ़ा जा सकता। अपितु आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, बिहार राज्य सरकारें एवं केन्द्र सरकार इसके लिए बड़ी सीमा तक दोषी है। हाल ही में जगदलपुर में एक प्रेसवार्ता मे चुनाव आयुक्त जी.वी.जी.कृष्णमूर्ति ने स्वीकार किया कि हो रहे विधानसभा चुनाव के दौरान नक्सलियों के प्रभावित क्षेत्र में हिंसा से इंकार नहीं किया जा सकता। ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने जो संकेत दिया था आखिर वही हुआ। नक्सली क्षेत्र के विधानसभाओं में चुनाव कराके लौट रहे अधिकारी - कर्मचारी एवं केन्द्रीय व राज्य सुरक्षाबल के जवानों को घात लगाकर बैठे नक्सलियों ने अलग-अलग जगह बारुदी सुरंग तथा हमला से 50 से अधिक लोगों को मौत के घाट उतारे। इसके अलावा बीजापुर (तमगांव) में पुलिस जवानों की दो जीपों को बारूदी सुरंग विस्फोट से उड़ाया, जिसमें एसडीओपी सहित 19 जवान शहीद हो गए थे ।
‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने 11 से 17 जनवरी 1999 के अंक में ‘‘अरबों रुपए के चांवल घोटाले की जांच कड़ाई से शुरू: व्यापारियों में भारी हड़कंप’, के शीर्षक से खुलासा किया जिसमें छत्तीसगढ़ रिपोर्टर ने 9 नवंबर 1998 के अंक में "छत्तीसगढ़ में अरबों रुपए का चांवल घोटाला" का खोजी पूर्ण समाचार प्रकाशित किया था, इस समाचार से भारी हड़कंप मचा और इसे गंभीरता से लेते हुए मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री दिग्विजय सिंह ने छत्तीसगढ़ क्षेत्र के सभी जिला कलेक्टरों एवं खाद्य अधिकारियों को जांच कराने का आदेश दिया जिसके तहत सभी जिलों में नाकेबंदी कर रेल एवं रोड से भेजे जा रहे चांवल की जांच शुरू होते ही व्यापारियों में भारी अफरा-तफरी मच गयी। रायगढ़ में रोके गए रेक की जांच से दो ही राईस मिलें (फार्म) के ही चांवल जो बाहर भेजे जा रहे हैं जिसमें 58 लाख का हेराफेरी पाया गया। जबकि वह दो ही राईस मिल द्वारा भेजे जा रहे चांवल का है, इस जांच को प्रभावित करने के लिए उच्च स्तर पर प्रयास शुरू हुए। मुख्यमंत्री के रायपुर प्रवास के समय व्यापारी संघ के प्रमुख और कुछ व्यापारियों की रात्रि लगभग 11-12 बजे गोपनीय चर्चा हुई। फिर भी मुख्यमंत्री ने जांच को प्रभावित नहीं होने दिया और बड़े पैमाने पर जांच हुई। जिसमें करोड़ों का चांवल घोटाला सामने आया और छत्तीसगढ़ क्षेत्र के 100 से भी अधिक राईस मिलों (फर्मों ) पर कार्रवाई की गई थी ।
‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने 1 से 7 फरवरी 1999 के अंक में ‘एस.ई.सी.एल. कोल माफिया गिरोहों के कब्जे में’ लिंकेज के नाम से हो रहे करोड़ों का घोटाला के शीर्षक से खुलासा किया था । जिसमें कोयला का धंधा करने वाले व्यापारियों के लिए एस.ई.सी.एल. बिलासपुर की विभिन्न ईकाईयां सोने का खान सिद्ध हो रही हैं। कोयला माफिया इस व्यापार को छोटे रूप में शुरू कर आज करोड़पति बन गये हैं। लघु उद्योग (लिंकेज) के नाम से विभिन्न ईकाईयों से कोयला दिये जाते हैं जिसमें करोड़ों रुपए का घोटाला लंबे अर्से से कोयला व्यापारी कर रहे हैं। एक ही परमिट में कई-कई बार कोयला दिया गया है और बिना ड्राफ्ट के भी करोड़ों का कोयला दिये जाने का संदेह है। इस अवैध कारोबार में अहम भूमिका सी.एम.डी. एवं सी.जी.एम. (विक्रय) की रहती है। जिन व्यापारियों पर इनकी कृपा होती है वह, जिस प्रकार ‘पारस पत्थर’ के स्पर्श से लोहा भी सोना बन जाता है उसी प्रकार सैकड़ों कोयला व्यापारी पारस पत्थर रूपी इन अधिकारियों की कृपा से रातों रात करोड़पति बन गये हैं। इनके द्वारा किये गये अवैध कारोबार के बारे में लिखा जाये तो एक ‘पोथी’ भी कम है। विशेष उल्लेखनीय है कि वर्ष 1991-92 से 97-98 तक कुल 2500.30 लाख टन कोयला रेल मार्ग एवं सडक़ मार्ग से प्रेषण किया गया है। अगर प्रति टन के हिसाब से 5 रूपये भी कमीशन के बतौर अधिकारियों द्वारा लिया गया होगा तो यह रकम (2500.30x5) तो लगभग 12 अरब 50 करोड़ 1 लाख रुपए होता है। इस अवैध कारोबार में निम्नाधिकारी से उच्चाधिकारी और कुछ राजनेता के भी शामिल होने से इंकार नही किया जा सकता। अगर इसकी उच्चस्तरीय या सी.बी.आई. जांच कराई जाये तो यह अरबों रुपयों का घोटाला उजागर हो सकता है। यह विशेष खोजी रिपोर्ट 4 पृष्ठों में था। इस खुलासे से एसईसीएल एवं कोयला मंत्रालय में हड़कंप मच गया। उसके बाद कोयला मंत्रालय ने जांच के आदेश दिए। आनन-फानन में जांच शुरू हुई। और एसईसीएल के विभिन्न कालरियों से कोयला ले रहे सैकड़ों कंपनियों की जांच की गई जिसमें फर्जी कंपनियों व बंद पड़े फैक्ट्रियों के नाम से अवैध कोयला लिया जाना पाया गया। उसके बाद 100 से भी अधिक कंपनियों का कोयला लिंकेज निरस्त किया गया। फिर इस जांच को आगे बड़े पैमाने पर शुरू की जिसमें उच्च अधिकारी एवं कोल माफियाओं के अरबों का कोयला घोटाला का खुलासा होने की संभावना थी इसलिए कोयला मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रहे दिलीप रे जो 19 मार्च 1998 को कोयला मंत्री बने उसे इस जांच के चलते 13 अक्टूबर 1999 को कोयला मंत्रालय से हटा दिया गया था । (वे 1 वर्ष 208 दिन तक कोयला मंत्री रहे)। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि घोटालेबाज अधिकारियों और कोल माफियाओं की पहुंच कहां तक थी।
4 अरब के साल वृक्ष काटे गये
साल बोरर के नाम पर किया गया षडय़ंत्र सफल
‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने 23 से 29 अगस्त 1999 के अंक में ‘4 अरब के साल वृक्ष काटे गये’ साल बोरर के नाम पर किया गया षडय़ंत्र सफल, के शीर्षक से उजागर किया था । जिसमें मध्यप्रदेश के जंगलों में साल बोरर के नाम पर प्रदेश में 4000 हजार करोड़ रूपये से ज्यादा के साल वृक्ष काटे गये। लगभग 2000 करोड़ रूपये का साल वृक्ष और काटा जाना है। इसके बाद भी विदेशों से साल की लकड़ी और साल धूप आयात की जा रही है। इस तरह साल बोरर के आड़ पर पहले से बुना गया षडय़ंत्र पूरी तरह सफल हो रहा है। प्रति कीड़ा पकडऩे के लिए 80 पैसे से 1 रूपया तक खर्च किया गया है। सूत्र के अनुसार पिछले तीन वर्षों में साल बोरर कीड़ों को पकडऩे के लिए सरकार द्वारा 4 करोड़ 75 लाख 70 हजार रूपये खर्च किये गये हैं। आंकड़ों के अनुसार इस राशि से 5 करोड़ 95 लाख 16 हजार कीड़े पकड़े गये, साल बोरर के नाम पर प्रदेश में 4000 करोड़ रूपये के साल वृक्ष काटे जा चुके हैं और करोड़ों की कीमत के साल वृक्ष को और काटा जाना है। कुछ वर्ष पहले. लकड़ी माफियाओं का वह षडयंत्र अंतत: सफल हो ही गया। सबसे महत्वपर्ण बात यह है कि अब लकड़ी ठीक नहीं होने एवं घरेलू मांग की पूर्ति करने के नाम पर अफसरों ने विदेशों से साल की लकड़ी मंगवाना शुरु कर दिया है और साल धूप भी आयात किया जा रहा है। इधर साल धूप निकाले जाने पर म.प्र. में प्रतिबंध लगाया गया। अब तक करीब 4 हजार करोड़ की लकड़ी काटी जा चुकी है। सूत्र बताते हैं कि करीब 2 हजार करोड़ कीमत की साल लकडी को और काटा जाना है। इस षडय़ंत्र के पीछे, यदि लकड़ी माफियाओं ने बड़ी मात्रा में साल लकड़ी की उपलब्धता के सपने देखे थे तो प्रदेश के वन अफसरों ने लकड़ी की गुणवत्ता निम्नस्तर होने तथा घरेलू मांग साल धूप पर आयात की सोची ,दोनो वर्ग को अपनी-अपनी सोच पर भारी सफलता मिली। साल बोरर का कीड़ा वन विभाग के लिए सौगात सा बन गया वन विभाग की चांदी इससे पता चल जाती है कि 4 अरब से भी ज्यादा मूल्य के वृक्ष के एवज में वन विभाग को लगभग 60 करोड़ की आयात हो पाई है। 1996-97 में साल बोरर का प्रकोप कम था, शहडोल, मण्डला, कवर्धा, बालाघाट, डिंडोरी, राजनांदगांव, बिलासपुर, सरगुजा आदि के जंगल में साल बोरर की वजह से 18.658 वृक्ष को काटना पड़ा। 1997-98 में प्रकोप बढ़ता चला तो 7 लाख 65 हजार से भी ज्यादा वृक्ष काटे गये। इसी तरह 1998-99 में साल बोरर के कारण 5 लाख से भी अधिक वृक्ष काटे गए। जिसका खुलासा ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने लगातार किया था ।
साल बोरर के बड़े पैमाने पर कटाई के खिलाफ जबलपुर उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की गई। परिणामस्वरूप, पर्यावरण, वनमंत्रालय (MoE.F), भारत सरकार ने दिसंबर 1997 में एक समिति का गठन किया। जिसमें केंद्र और राज्य के वरिष्ठ वन अधिकारी और वन कीट विशेषज्ञ शामिल थे और भारतीय परिषद के नेतृत्व में अनुसंधान संगठन थे। इसके बाद टास्क फोर्स ने जनवरी, 1998 में अपनी अंतरिम रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें 14 सदस्यीय समिति के बहुमत ने श्रेणी I से V में आने वाले सभी पेड़ों को काटने और हटाने के पक्ष में सिफारिश की। इसके बाद 23 फरवरी 1998 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सभी कटाई कार्यों पर रोक लगा दी। सुनवाई के बाद, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने प्रभावित पेड़ों के श्रेणीवार अंकन का आदेश दिया और निदेशक, उष्णकटिबंधीय वन अनुसंधान संस्थान, जबलपुर के नेतृत्व में एक समिति गठित की। तब सुप्रीम कोर्ट ने केवल II, VI और I श्रेणी के प्रभावित पेड़ों की कटाई की अनुमति दी थी ।
‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने 13 से 19 सितंबर 1999 के अंक में ‘छत्तीसगढ़ राज्य कब बनेगा?’ नए राज्य का भावी मुख्यमंत्री कौन होगा? के शीर्षक से समाचार प्रकाशित किया था । कई बार राजनीतिक दबाव और जनभावनाओं के ज्वार में राज्यों का विभाजन और नए राज्यों का सृजन हो जाता है। पर समस्या सदा के लिये खड़ी हो जाती है। मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ राज्य के लिये हुआ है, जिस पर विवाद तो नहीं लेकिन इस राज्य का गठन कब होगा इस पर सब की निगाहें टिकी हुई है , इधर कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी का कहना है कि उनकी सरकार बनती है तो छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना शीघ्र ही करेंगे। इधर भाजपा भी छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना के लिये घोषणा कर रही है लेकिन छत्तीसगढ़ राज्य कब बनेगा, यह एक प्रश्न चिन्ह बन गया है? मध्यप्रदेश के विभाजन के साथ ही वर्तमान राज्यों की सीमा में कांग्रेस के दो मुख्यमंत्री हो जायेंगे। क्योंकि अभी हुई विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को ‘छत्तीसगढ़ क्षेत्र’ और मध्यप्रदेश दोनों ही क्षेत्रों में पूर्ण रूप से बहुमत मिला है। छत्तीसगढ़ राज्य के गठन से भले ही मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के राज्य की सीमा सिकुड़ेगी, लेकिन उनका सिरदर्द बहुत कम हो जायेगा। उन्हें सिर्फ अर्जुन सिंह, माधवराव सिंधिया और कमलनाथ का सामना करना पड़ेगा। बाकी दिग्गज छत्तीसगढ़ राज्य में श्यामाचरण शुक्ल, विद्याचरण शुक्ल, मोतीलाल वोरा, अजीत जोगी, चरणदास महंत, राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल, नंद कुमार पटेल, सुरेन्द्र बहादुर सिंह, पवन दीवान आदि ‘तीन-पांच’ करेंगे। बहरहाल छत्तीसगढ़ राज्य बनता है तो सवाल यह उठता है कि मुख्यमंत्री कौन होगा? विद्याचरण शुक्ल, श्यामाचरण शुक्ल, चरणदास महंत,अजीत जोगी, मोतीलाल वोरा के नामों पर दावेदारी की चर्चा होने लगी है। ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने छत्तीगसढ़ राज्य के संभावित पांच नये मुख्यमंत्री का जो नाम दिया था जिसमें अजीत जोगी को किसी ने नहीं सोचा होगा कि ये नए राज्य के मुख्यमंत्री बनेंगे, लेकिन छत्तीसगढ़ रिपोर्टर को सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार अजीत जोगी की दावेदारी पक्की मानी जा रही थी। आखिरकार हाईकमान ने अजीत जोगी को छत्तीसगढ़ राज्य के मुख्यमंत्री का ताज पहनाया। जिससे छत्तीगसढ़ रिपोर्टर की खबर पर मुहर लगी। मालूम हो कि ''छत्तीसगढ़ राज्य'' बनाए जाने के संबंध में ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ अनेकों बार समाचार प्रकाशित कर राजनेताओं का ध्यान आकर्षित कराता रहता था।
‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने 10 से 16 अप्रैल 2000 के अंक में ‘केडिया डिस्टलरी में पड़े छापे का रहस्य कब उजागर होगा?’ जप्त फ्लापी से खुली राजनेताओं, अधिकारियों की पोल के शीर्षक से समाचार प्रकाशित किया था । जिसमें मध्यप्रदेश के सबसे बड़े तथा देश के शीर्षस्थ शराब निर्माता में एक केडिया डिस्टलरी समूह के मालिक कैलाश पति केडिया के भिलाई दुर्ग में स्थित डिस्टलरी के अलावा देश में फैले कार्यालय तथा घरों में एक साथ करीब 200 ठिकानों पर 28 फरवरी 1996 को आयकर विभाग द्वारा मारे गये छापे की कार्यवाही छ: माह तक चली। इस कार्यवाही में करोड़ों रुपए के कर चोरी और 180 बेनामी बैंक पास बुक, शेयर पत्र, 7-8 करोड़ रुपये नगद के साथ डायरी एवं कम्प्यूटर की फ्लापी बरामद हुई। जिसमें प्रदेश के 50 से भी अधिक वरिष्ठ राजनेताओं का नाम है। उसमे चार मुख्यमंत्री, कई मंत्रियों, विधायक, सांसद, केन्द्रीय मंत्रियों के अलावा तीन दर्जन अधिकारी जिसमें पुलिस अधीक्षक, कलेक्टर, जिला आबकारी अधिकारी आदि के साथ प्रदेश के प्रमुख पत्रकारों तथा दैनिक समाचार पत्र के सम्पादकों एवं अखबार मालिकों के भी नाम सूची में दर्ज है। और करोड़ों रुपए के अवैध लेनदेन संबंध जानकारी संचित है। जप्त फ्लापी की अनेक प्रतियां तैयार कर एवं डायरी को आयकर विभाग ने सी.बी.आई तथा केन्द्र सरकार के वरिष्ठ राजनेताओं को भेजवा दी है। ज्ञात हो कि उस समय केन्द्र में शासित देवगौड़ा सरकार एवं गुजराल सरकार की शासन अल्प समय तक ही चल पाई, जिसके कारण यह बड़ा घोटाला उजागर नही हो पाया। सूत्रों के अनुसार इस मामले को कोई भी पार्टी उजागर करना नही चाहती, क्योंकि इसमें भाजपा, कांग्रेस के अलावा अन्य राजनीतिक पार्टियों के वरिष्ठ नेता शामिल हैं। अगर अटल सरकार इस बड़े घोटाले को उजागर करती है तो ‘हवाला कांड’ से भी बड़ा घोटाला उजागर हो सकता है। इस खुलासे केे बाद अधिकारियों एवं राजनेताओं में भारी तहलका मच गया और इस मामले को दबाने में लग गए। क्योंकि चार मुख्यमंत्री, कई मंत्रियों, विधायक, सांसद, केन्द्रीय मंत्रियों के अलावा तीन दर्जन अधिकारी जिसमें पुलिस अधीक्षक, कलेक्टर, जिला आबकारी अधिकारी आदि के साथ प्रदेश के प्रमुख पत्रकारों तथा दैनिक समाचार पत्र के सम्पादकों एवं अखबार मालिकों के भी नाम सूची में दर्ज था।
‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ने 19 से 24 अप्रैल 2004 के अंक में ‘‘एस.ई.सी.एल में प्रति वर्ष 10 अरब रुपए का कोयला घोटाला, सिलसिला वर्षों से जारी’’ छत्तीसगढ़ रिपोर्टर का सनसनीखेज खुलासा ' तेलगी ' जैसा एक और बड़ा घोटाला के शीर्षक से छत्तीसगढ़ रिपोर्टर ने पहला खुलासा किया था । जिसमें कोल इंडिया को सबसे अधिक फायदा देने वाली एस.ई.सी.एल. इन दिनों भ्रष्ट अधिकारी और कोल माफिया के कब्जे में है। जहां कोयला का हेराफेरी कर प्रति वर्ष लगभग 10 अरब रुपए का घोटाला किया जा रहा है। यह सिलसिला पिछले 15 वर्षों से जारी है। जिसमें बड़े-बड़े राजनेता, प्रशासनिक अधिकारी व व्यापारी शामिल हैं। हालांकि इसकी शिकायत एक सांसद ने पुख्ता प्रमाण के साथ प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी से की। लेकिन इस घोटाले को उजागर होने में संदेह है क्योंकि इसे दबाने के लिए उच्च स्तरीय प्रयास किया जा रहा है। यहां हो रही अनियमितताएं इतने बड़े पैमाने पर हैं कि इसके बारे में लिखा जाए तो "एक पोथी" भी कम होगी। शिकायत के बाद भी इनका बाल बांका होना तो दूर है, बल्कि उनको संरक्षण देने के लिए अधिकारी और राजनेता तक अपना वरदहस्त आगे बढ़ा देते हैं। सांसद रामाधार कश्यप, इस कोयला घोटाले को लेकर दिनांक 14.02.2004 को प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, नई दिल्ली में प्रेस काॅन्फ्रेंस करने जा रहे थे। जिसकी जानकारी कोयला घोटालेबाजों को लगी तो उन्होंने अपने आदमियों के साथ रामाधार कश्यप को प्रेस काॅन्फ्रेंस नहीं करने की धमकी देते हुए रोक दिया और प्रेस काॅन्फ्रेंस नहीं करने दिया। तब उन्होंने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए अपनी सुरक्षा के लिए पुलिस सहायता लिया, जो कि अत्यंत शर्मनाक बात है। इससे न केवल मेरे जैसे भारतीय नागरिक बल्कि प्रेस की गरिमा को चोंट पहुंची है। इन सब बातों के साथ पूर्व में किए गए शिकायतों का भी उल्लेख करते हुए सांसद रामाधार कश्यप ने प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी को दिनांक 16.02.2004 को पत्र लिखे । उक्त पत्र की प्रतिलिपि ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ को भी दी गई। इस घटना और घोटाले के संबंध में दिल्ली के किसी भी अखबार ने समाचार प्रकाशित नही किया। ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’को खोजबीन में मिले सैकड़ों पृष्ठों के दस्तावेजों एवं सांसद रामाधार कश्यप द्वारा की गई शिकायत के अनुसार खुलासा किया। यह खबर पूरे देश में आग की तरह फैल गई और विपक्ष पार्टी के राजनेताओं ने इस खुलासे को आड़े हाथ लिया और खूब भंजाए। क्योंकि इसी महीने 20 अप्रैल से 10 मई 2004 के बीच में चार चरणों में लोकसभा का चुनाव था। ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ ने यह खुलासा किया तब प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी और कोयला मंत्री सुश्री ममता बनर्जी थीं। उसके बाद 22 मई 2004 को डॉ.मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने। इधर इस घोटाले को दबाने के लिए हर हथकंडा अपनाया गया तथा ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ के प्रधान संपादक भागवत जायसवाल को हर तरह से परेशान करने का भरपूर प्रयास किया गया और छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट से लेकर विभिन्न न्यायालयों में आईपीसी की धारा 499 एवं 500 के तहत मानहानि का मामला भी दायर किया गया। फिर भी ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ के प्रधान संपादक भागवत जायसवाल, निर्भीक और निष्पक्ष पत्रकारिता का दायित्व निभाते हुए अपने सिद्धांत पर अडिग रहे और खुलासा लगातार जारी रखा था ।
‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने 31 मई से 06 जून 2004 के अंक में‘‘अरबों के कोयला घोटाले में परदा डालने की कोशिश’’ लोकसभा में गूंजेगा एसईसीएल का घोटाला के दो शीर्षक से दूसरा खुलासा किया था। जिसमें एसईसीएल के अधिकारियों द्वारा अपने काले कारनामों को दबाने के लिए कुछ चुनिंदा समाचार पत्रों में बड़े-बड़े विज्ञापन के साथ अपने पक्ष में समाचार प्रकाशित करवा कर मामले को दबाने का प्रयास किया गया। इसी अंक में " लोकसभा में गूंजेगा एसईसीएल का घोटाला" के शीर्षक से 3 पृष्ठाें में समाचार प्रकाशित किया। ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने एसईसीएल के इस घोटाले को उजागर करने का जाे साहस किया है उस घोटाले को राजनेताओं ने गंभीरता से लिया। उनका मानना है कि देश में इतने बड़े घोटाले की जांच तत्काल होनी चाहिए तथा दोषी अधिकारियों, कोलमाफियाओं, संलिप्त राजनेताओं को बेनकाब कर कड़ी कर्रवाई किया जाना चाहिए ताकि भविष्य में इस प्रकार घोटाला करने का साहस कोई न कर सके। उक्त बातें राजनेताओं ने ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ से हुई चर्चा में कही। जिसका कुछ अंश प्रकाशित होते ही कोल माफियाओं व अधिकारियाें में हड़कंप मच गया। इधर ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ के पहले एवं दूसरे खुलासे को विभिन्न पार्टियों के सांसदों ने गंभीरता से लेते हुए प्रधानमंत्री, कोयला मंत्री, सीबीआई, सीवीसी को अलग-अलग पत्र लिखकर शीघ्र कार्रवाई की मांग की। फिर ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने 28 जून से 4 जुलाई 2004 के अंक में ‘‘कोल माफिया, भ्रष्ट अधिकारियों पर गिरेगी गाज ’’ के शीर्षक से तीसरा खुलासा किया। जिसमें छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ की खबर को राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने गंभीरता से लेते हुए राष्ट्रपति भवन के अंडर सचिव ए.सेमुवेल ने 30 अप्रैल 2004 को पत्र क्रमांक पी-1, बी-222947, से कोयला मंत्रालय भारत सरकार को आवश्यक कार्रवाई के लिए पत्र भेजा। इधर सांसद रामाधार कश्यप ने इस कोयला घोटाला को राज्य सभा में जोर-शोर से उठाया और सीबीआई जांच की मांग की। केन्द्रीय कोयला मंत्री शीबू सोरेन ने कोल माफिया एवं भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने का संकेत दिया। इधर ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने खुलासा लगातार जारी रखा था ।
‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने 18 जुलाई से 24 जुलाई 2005 के अंक में 'अरबों के कोयला घोटालेबाज होंगे सीबीआई के शिकंजे में' कोयला घाेटाले में अब सरकार को घेरने की तैयारी के शीर्षक से पांचवां बड़ा खुलासा किया था। जिसमें एसईसीएल में हो रही घोटाले के बारे में विभिन्न पार्टियों के सांसदों ने पुख्ता प्रमाण के साथ प्रधानमंत्री, कोयला मंत्रालय, सीबीआई को भेजे गए पत्र में लिखा है कि यहां सालाना लगभग 10 अरब का कोयला घोटाला किया जा रहा है। इसलिए सी.एम.डी. को तत्काल हटाकर सीबीआई से जांच कराई जाए। मालूम हो कि ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने 11 से 17 अप्रैल 2005 के अंक में 'सीएमडी पर सीबीआई का शिकंजा', कोल माफिया व अधिकारियों में मचा हड़कंप के शीर्षक से चौथा खुलासा किया था जिसमें 6 अप्रैल 2005 को सीबीआई की टीम ने सी.एम.डी. के निवास व कार्यालय पर छापा मारकर घंटों पूछताछ की जिसमें कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज हाथ लगे और साथ ही बैंक एकांउट, लॉकर को सील कर जांच शुरू कर दी, लेकिन यहां से सी.एम.डी. का स्थानांतरण नहीं किया गया है, जिसके चलते जांच प्रभावित होने की प्रबल संभावना है। छापा पड़ने की भनक एक सप्ताह पूर्व सी.एम.डी. एवं कोलमाफिया को लग गयी थी। यह छापा एस.ई.सी.एल. एवं सी.सी.एल. के कार्यकाल में हुई घोटाले की जांच के सिलसिले में मारा गया उसे भी दबाने में लग गए। फिर ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने 18 जुलाई से 24 जुलाई 2005 के अंक में 'अरबों के कोयला घोटालेबाज होंगे सीबीआई के शिकंजे में' कोयला घाेटाले में अब सरकार को घेरने की तैयारी के शीर्षक से पांचवां बड़ा खुलासा किया जिसमें विभिन्न पार्टियों के सांसदों द्वारा एसईसीएल में सालाना 10 अरब रुपए का कोयला घोटाले के संबंध में प्रधानमंत्री, कोयला मंत्रालय, सीबीआई को पुख्ता प्रमाण के साथ कार्यवाही के लिए लिख्रे गए पत्रों को ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने प्रकाशित किया। इसके बाद कोयला मंत्रालय एवं कोल माफियाओं में भारी हड़कंप मच गया। फिर ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने 1 से 7 अगस्त 2005 के अंक में ‘‘देश के सबसे बड़े कोयला घोटाले में शामिल कोल माफियाओं एवं अधिकारियों पर क्यों नहीं हो रही कार्रवाई ’’ सीएमडी के बचाव में जोगी ने सोनिया को लिखा पत्र के शीर्षक से छठवां बड़ा खुलासा किया। उसके बाद कोयला मंत्रालय अपनी साख बचाने के लिए बड़ी कार्रवाई करने में लग गया। इधर ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ परत-दर-परत इस घोटालों से पर्दा उठाते जा रहा था और इस खुलासों को आमजनों तक पहुंचाने के लिए राष्ट्रीय न्यूज चैनल जी न्यूज, आज तक, एनडीटीवी, स्टार न्यूज, सहारा समय और ई टीवी में ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ के इन बड़े-बड़े खुलासों को हर सप्ताह विज्ञापन के रूप में दिखाया जाता था । कुछ न्यूज चैनलों में दिखाए जा रहे उस विज्ञापनों को घोटालेबाजों द्वारा रोकवाया भी गया । इधर ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने खुलासा लगातार जारी रखा था।
‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ ने 24 से 30 अक्टूबर 2005 के अंक में ‘‘काले हीरे के घोटालेबाजों पर गिर सकती है सीबीआई की गाज ’’ अरबों के कोयला घोटाले केे मामले में दर्जन भर सांसदों के बाद कोयला सचिव ने लिखा सीबीआई को सख्त पत्र के शीर्षक से सातवां बड़ा खुलासा किया था। जिसमें एसईसीएल के अरबों का कोयला घोटाला के मामले में विभिन्न राष्ट्रीय पार्टियों के दर्जनभर सांसद, पुख्ता प्रमाणों के साथ बार-बार प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, कोयला मंत्री, सीबीआई आदि को पत्र लिखकर कार्यवाही की मांग कर रहे थे। उसके बाद कोल इंडिया के मुख्य सतर्कता अधिकारी शशिप्रकाश ने अपनी जांच रिपोर्ट में घोटाले का खुलासा किया जो आग में घी डालने का काम किया। इस रिपोर्ट के बाद कोयला सचिव पी.सी.पारेख द्वारा 22 जुलाई 2005 को एसईसीएल के कोयला घोटाले के संबंध में उच्च स्तरीय जांच के लिए यू.एस. मिश्रा निदेशक सीबीआई को सख्त पत्र लिखा। ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ ने उक्त पत्रों एवं मिले दस्तावेजों के साथ फिर खुलासा किया। उसके बाद अपनी साख बचाने के लिए केंद्र सरकार एवं सीबीआई बड़ी कार्यवाही की तैयारी में जुटे, इस खुलासे के बाद काले हीरे के सौदागरों को अपने बचाव का कोई भी रास्ता नहीं सूझ रहा था क्योंकि अब उन्हें लगा कि उनका संसार खतरे में पड़ गया। इधर ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ ने खुलासा लगातार जारी रखा था ।
‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ ने 21 से 27 नवंबर 2005 के अंक में ‘‘एस.ई.सी.एल के अरबों के कोयला घोटाले में सरकार की भूमिका संदिग्ध’’ कोयला के खेल में बड़े-बड़े राजनेताओं के हाथ कालेे के शीर्षक से आठवां बड़ा खुलासा किया था। जिसमेें एसईसीएल में 15 सालों से बड़े पैमाने पर हो रहे कोयला घोटाले के बारे में लिखा जाए तो कई ‘पोथियां’ भी कम पड़ जाएंगी। यहां सारे कानून को धत्ता बताकर सरकार को अरबों का चूना लगाने का काम बखूबी चल रहा है। इनके खिलाफ आवाज तो उठ रही है लेकिन उसे भी दबा दिया जाता है। जिस तरह से यहां अंधेरगर्दी मची हुई है वह अपने आप में हैरान करने वाली बात है। अरबों के इस खेल में बड़े-बड़ेे राजनीतिज्ञों, व्यापारियों एवं कोल माफियाओं द्वारा किस तरह निकाला जा रहा है देश का तेल? भ्रष्ट अधिकारी एवं कोल माफिया किस प्रकार नियंत्रण रखते हैं देश के कोयला मंत्री पर? फटाफट क्यों बदल जाते हैं कोयला मंत्री? कैसे मिलीभगत रहती है इनकी,‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ ने 19 से 24 अप्रैल 2004 के अंक में ‘‘एस.ई.सी.एल में प्रति वर्ष 10 अरब का कोयला घोटाला, सिलसिला वर्षों से जारी’’ के शीर्षक से प्रथम खुलासा किया था। इसके बाद विभिन्न राष्ट्रीय पार्टी के दर्जन भर से अधिक सांसदों ने जिनमें सांसद रामाधार कश्यप, सांसद थामस हसंदा, सांसद गुरुदास दास गुप्ता, सांसद स्टीफन मंडावी, सांसद बी.पी. मेहता, सांसद मोतीउर्र रहमान, सांसद बागुन सुम्बरूई, सांसद भुवनेश्वर प्रसाद मेहता, सांसद चन्द्रशेखर दुबे, आदि ने प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, कोयला मंत्री एवं सी.बी.आई को अलग-अलग पत्र लिखकर कहा था कि एस.ई.सी.एल बिलासपुर छत्तीसगढ़ के सी.एम.डी. एवं चर्चित कोल माफिया व भ्रष्ट अधिकारियों द्वारा सालाना 10 अरब का कोयला घोटाला किया जा रहा है और यह सिलसिला 15 वर्षों से जारी है जिस पर शीघ्र कार्यवाही करने की मांग की थी। इस मामले को कांग्रेस नेता व पूर्व केन्द्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने भी नई दिल्ली में प्रेस कान्फ्रेंस कर एसईसीएल के इस घोटाले को उठाया और अटल सरकार पर गंभीर आरोप लगाए थे। छत्तीसगढ़ के तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने भी सम्पूर्ण मामले की सी.बी.आई से जांच कराने के लिए केन्द्र सरकार को पत्र लिखा था। तत्कालीन भाजपा विधायक व छत्तीसगढ़ शासन के केबिनेट मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने भी इस मामले को विधानसभा में उठाया था। कोयला सचिव, पी.सी. पारेख ने भी सी.बी.आई के डायरेक्टर यू.एस.मिश्रा को पत्र लिखकर एस.ई.सी.एल के घोटाले की उच्चस्तरीय जांच के लिए कहा था। कोल इंडिया के मुख्य सर्तकता अधिकारी शशिप्रकाश ने भी कोयला सचिव को भेजे रिपोर्ट में घोटाले का खुलासा किया। इसके अलावा अनेक सांसदों और अधिकारियों के द्वारा कार्यवाही के लिए लिखे गए उन पत्रों और ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ को मिले दस्तावेजाें को 21 से 27 नवंबर 2005 के अंक में 6 पृष्ठों में ‘‘एस.ई.सी.एल के अरबों के कोयला घोटाले में सरकार की भूमिका संदिग्ध’’, के शीर्षक से प्रकाशित किया। इस सनसनीखेज खुलासा ने केंद्र सरकार,कोयला मंत्रालय एवं कोल इंडिया को सन्न कर दिया और भारी हडक़ंप मच गया। आनन-फानन में सीबीआई ने 22 नवंबर 2005 को गेवरा, दीपका, कुसमुंडा परियोजना आदि कोयला खानों के कांटाघरों , रेलवे साइडिंग कोयला लोडिंग, कोलवाशरी व परिवहन आदि संबंधित स्थानों पर जबलपुर एवं दिल्ली से आई लगभग 80-90 सीबीआई की टीम ने छापा मारा तथा सीबीआई टीम ने एस.ई.सी.एल मुख्यालय बिलासपुर में कोयला घोटाले से संबंधित बड़े पैमाने पर कागजात जब्त किए और 100 से भी अधिक अधिकारियों-कर्मचारियों का स्थानांतरण किया, जिसमें से कुछ अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही भी हुई। इधर ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने खुलासा जारी रखा था।
‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ ने 26 दिसंबर 2005 से 1 जनवरी 2006 के अंक में ‘अरबों के कोयला घोटाले में बड़े-बड़ों से जुड़े हैं तार’ छत्तीसगढ़ रिपोर्टर के खुलासे से मचा हड़कंप, सीबीआई का छापा के शीर्षक से नौवां बड़ा खुलासा किया था। जिसमें सीबीआई भी बड़े पैमाने पर जांच कर रही थी और डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार ने इस घोटाले को गंभीरता से लेते हुए 5 सांसदों की जांच कमेटी गठित की। इन सांसदों द्वारा एसईसीएल के गेवरा और कुसमुंडा, दीपका परियोजनाओं का निरीक्षण एवं जांच के दौरान दीपका परियोजना में कोलमाफियाओं के आदमियों ने सांसदों की गाड़ियों में तोड़फोड़ कर भारी हंगामा किया तथा एक सांसद को झूमाझटकी से चोट भी आई। मौजूदा सुरक्षाकर्मी और पुलिस द्वारा बीच बचाव कर आनन-फानन में सांसदों की गाड़ियों को बाहर निकाला गया। यहां हो रही अरबों की कोयला चोरी एवं घोटाले की जांच- रिपोर्ट प्रधानमंत्री को सौंपी गई। उन रिपोर्टों को चर्चित कोलमाफिया के द्वारा फिर दबाने का प्रयास किया गया, लेकिन कामयाब नहीं हुए। अंतत: सांसदों की समिति एवं सीबीआई की जांच रिपोर्ट के बाद केन्द्र सरकार ने कोल माफियाओं और भ्रष्ट अधिकारियों पर अंकुश लगाने के लिए एशिया के सबसे बड़ी खुली कोयला खदान गेवरा, दीपका में कोयला चोरी रोकने के लिए सी.आई.एस.एफ की कई बटालियन सुरक्षा में लगाई। यह भी बताना आवश्यक है कि ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ ने 19 से 24 अप्रैल 2004 के अंक में ‘‘एस.ई.सी.एल में सालाना 10 अरब का कोयला घोटाला, सिलसिला वर्षों से जारी ’’ के शीर्षक से प्रथम खुलासा किया था। उसके बाद घोटाले को दबाने के लिए हर हथकंडा अपनाया गया तथा ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ के प्रधान संपादक भागवत जायसवाल को हर तरह से परेशान करने का भरपूर प्रयास किया गया। इतना ही नहीं छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट से लेकर विभिन्न न्यायालयों में आईपीसी की धारा 499 एवं 500 के तहत मानहानि का मामला भी दायर किया गया, फिर भी ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ के प्रधान संपादक भागवत जायसवाल निर्भीक, निष्पक्ष पत्रकारिता का दायित्व निभाते हुए अपने सिद्धांत में अडिग रहे और खुलासा लगातार जारी रखा। जिससे इस बड़े घोटाले पर लगातार कार्यवाही भी हुई, जिसके बाद एक-एक कर सभी न्यायालयों के फैसले ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ के प्रधान संपादक भागवत जायसवाल के पक्ष में आते गए और ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ के सभी खुलासों की सत्यता पर मुहर लग गई। ‘‘ सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं ’’ आखिर में सत्य की ही जीत होती है। मानहानि के इस मामले में ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ के क्षेत्रीय संवाददाता, ब्यूरो चीफ, अधिवक्ता और शुभ चिंतक बिलकुल साथ खड़े और डंटे रहे। काले हीरे के घोटालेबाजों को बड़ा गुरूर था कि अरबपति बन जाने के बाद अब कोई भी उनका बाल बांका नहीं कर पायेगा, उनकी मुट्ठी में संसार है लेकिन उनका संसार ख्रतरे में पड़ गया, क्योंकि ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ ने एसईसीएल में गहरी जड़ें जमा चुके भ्रष्टाचार को उखाड़ फेंकने का जोखिम भरा कारनामा देशहित में किया था । जहां सालाना 10 अरब का कोयला घोटाला हो रहा था और यह सिलसिला 15 वर्षों से जारी था, इस पर आखिरकार रोक लगी। यह देश का पहला मामला है जो ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ के इन खुलासों के कारण संभव हुआ।
‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ ने 26 जून 2005 के अंक में ‘‘देश के प्रथम विनिवेश बालको सौदे में 302 करोड़ का घोटाला’’ ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ का एक और सनसनीखेज खुलासा के शीर्षक से पहला खुलासा किया था। देश व छत्तीसगढ़ राज्य के प्रथम बड़े विनिवेश बालको सौदे की पूरी प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर गड़बडिय़ां कर करोड़ों के घोटाले किए गए हैं। यह मामला तब उजागर हुआ जब महालेखा परीक्षक की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट तत्कालीन अटल सरकार को पता लगी तो उनके होश उड़ गये और आनन-फानन में इस रिपोर्ट को दबा दिया गया। क्योंकि इस रिपोर्ट से अटल सरकार संकट में पड़ सकती थी। सीएजी ने अपने जांच रिपोर्ट में कहा है कि बालको सौदे में लगभग 302 करोड़ रुपये का घपला हुआ है। इतना ही नहीं 1158 करोड़ रुपए के बीसीपीपी 270 मेगावॉट (बालको कैप्टिव पावर प्लांट) का मूल्यांकन शीट में भी उल्लेख नहीं है तथा इसे भी दहेज के रूप में स्टरलाईट को 30 जून 2002 मध्यरात्रि में इनके हवाले कर दिया गया। निजीकरण के बाद बालको में रद्दी पड़े स्क्रैप बड़े पैमाने पर बेचे गए तथा बेचने का क्रम अब भी जारी है। ऐसा अनुमान है कि जितने में बालको का 51 प्रतिशत शेयर की खरीदी की गई है उतने रुपये का स्क्रैप बेचा जा चुका होगा। क्या मनमोहन सरकार इस मामले की निष्पक्ष जांच कराएगी? मालूम हो कि 21 फरवरी 2001 को मेसर्स स्टरलाइट इंडस्ट्रीज को 551.5 करोड़ रूपए मेें बालको का 51 प्रतिशत शेयर बेचा गया। जिसे लेकर भारी बवाल हुआ और इसके विरोध में 68 दिन तक हड़ताल भी चली। परिणाम स्वरूप स्मेल्टर प्लांट, बॉयलर प्लांट, पॉट हाउस बैठ गया। इस संबंध में ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ ने विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित किया। तत्पश्चात ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ ने 4 से 10 जुलाई 2005 के अंक में ‘‘1168 करोड़ का बीसीपीपी स्टरलाइट के हवाले कैसे ? ’’ के शीर्षक से दूसरा बड़ा खुलासा किया था । ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ के इन खुलासों के बाद तहलका मच गया था।
‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ ने 12 से 18 सितंबर 2005 के अंक में ‘‘समाज सेवा के नाम पर लूट मचा रखी है एनजीओ ने, 5 हजार करोड़ के विदेशी धन का मामला’’ के शीर्षक से समाचार प्रकाशित किया था। देश में गैर सरकारी संगठन एनजीओ को विदेशों से मिलने वाला धन तकरीबन 5 हजार करोड़ रुपए की विदेशी सहायता से सामाज सेवा करने वाली देश की सैकड़ों संस्थाओं का नाम पंजीकरण की उस कानूनी सूची में भी शामिल है, जिसे विदेशी अनुदान के नियमितीकरण के लिए बना ‘एफसीआरए’ कानून कहा जाता है। ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ को केन्द्रीय गृह मंत्रालय के सूत्रों से मिले आकड़ों के मुताबिक सैकड़ों संगठनों को विदेशी अनुदान सन 1999 -2000 के दौरान 3924.63 करोड़ रुपये, 2000-01 के दौरान 14598 करोड़ रुपये, 2001-2002 की अवधि में संगठनों को 15618 करोड़ रुपये, जबकि 2003-04 के दौरान संगठनों को लगभग 4870 करोड़ रुपये का विदेशी अनुदान मिला है। इसमें दिल्ली, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक राज्य के संस्थाओं को मिलने वाली अनुदान राशि सबसे अधिक है। इसके अलावा छत्तीसगढ़ राज्य सहित अनेक राज्यों को औसतन 5-6 करोड़ रुपए प्रति संस्था के हिसाब से विदेशी अनुदान प्राप्त करने वाले ये एनजीओ आखिर इसका क्या करते हैं? छत्तीसगढ़ में लगभग 173 एनजीओ को मिलती है विदेशी मदद। ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ के खुलासा के बाद छत्तीसगढ़ विधानसभा में सेवा के नाम पर सरकारी खजाने से राशि लूटने में लगे गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) के खिलाफ जमकर हंगामा हुआ। इसके बाद छत्तीसगढ़ राज्य सहित अन्य राज्य के सरकारों और केन्द्र सरकार ने सैकड़ों निजी एनजीओ की जांच के बाद उनकी पात्रता खत्म कर दी थी ।
‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ ने 7 से 13 अगस्त 2006 के अंक में ‘‘खरबों की खनिज संपदा को टाटा व एस्सार के हवाले में बड़ा खेल!’’ टाटा को 500 और एस्सार को 320 मिलियन टन लौह अयस्क देने का एम.ओ.यू. के शीर्षक से समाचार प्रकाशित किया था । बस्तर में टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी लिमिटेड व एस्सार लिमिटेड को स्टील प्लांट लगाने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार के साथ क्रमश: 4 जून 2005 एवं 5 जुलाई 2005 को छत्तीसगढ़ सरकार ने एक समझौता (एम.ओ.यू.) पर हस्ताक्षर करके छत्तीसगढ़ की खरबों रुपए की खनिज संपदा को कौडिय़ों के मोल बेचने पर आमादा हैं। सरकार, टाटा का 500 मिलियन टन एवं एस्सार लिमिटेड 320 मिलियन टन लौह अयस्क का भण्डार नाम मात्र की लीज पर सौंपने जा रही है। इस समय प्रदेश में उपलब्ध लौह अयस्क भण्डार में से सरकार ने टाटा को बैलाडीला - 1 से 140 मिलियन टन, रावघाट से 250 मिलियन टन शेष एन.एम.डी.सी. से दिलाए जाने को कहा है। इसी प्रकार एस्सार को बैलाडीला- 4 से 124 मिलियन टन बैलाडीला 3,6,7,8 एवं 9 से 95 मिलियन टन दिलाने का वादा किया है। यदि भण्डारण, टाटा एवं एस्सार के हवाले कर दिया गया तो सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम भिलाई स्टील प्लांट के लिए कहां से अयस्क आएगा, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। एक अमेरिकी रिपोर्ट के अनुसार भारत में 6.6 अरब टन लौह अयस्क भण्डार शेष है। जबकि भारतीय एजेंसी के अनुसार 10 अरब टन शेष है। जो अगले 35 से 50 सालों में पूरी तरह खत्म हो जाएगा। जिसमें उच्च क्वालिटी का सिर्फ 2 अरब टन हैं। हमारे देश में खासकर छत्तीसगढ़ के बैलाडीला में उच्च कोटि के लौह अयस्क हैं। सरकार ने छत्तीसगढ़ की इस खनिज संपदा को टाटा कंपनी एवं एस्सार कंपनी को देने जा रही है , जिसका आज के दिनों में अंतर्राष्ट्रीय मूल्य करीबन 4 लाख करोड़ रुपए से भी ज्यादा होता है। सरकार ने टाटा व एस्सार को प्लांट लगाने के लिए ऐसी शर्त स्वीकार कर ली है, जिससे आने वाले वर्ष में भयानक स्थिति निर्मित हो सकती हैं। ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ ने, खोजबीन में मिली जानकारी के अनुसार छत्तीसगढ़ राज्य एवं देशहित में खुलासा किया था। इस खुलासे के बाद राजनेताओं एवं उद्योगपितयों में हड़कंप मच गया और इस मामले को लेकर स्थानीय लोगों ने भारी विरोध किया । इसे देखते हुए छत्तीसगढ़ सरकार ने टाटा को 500 और एस्सार को 320 मिलियन टन बैलाडीला का लौह अयस्क भंडार देने के लिए 50 साल का एम.ओ.यू. किया था उसे निरस्त कर दिया था ।
‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ ने 14 से 20 अगस्त 2006 के अंक में ‘‘नक्सली छत्तीसगढ़ से कर रहे करीब 2 अरब की उगाही ! ’’ ठेकेदारों, अधिकारियों और व्यापारियों से हो रही वसूली के शीर्षक से खुलासा किया था। छत्तीसगढ़ में समस्या नक्सली है या समस्याओं के कारण नक्सली? यह दुविधा आज भी है। छत्तीसगढ़ राज्य, नक्सली हिंसा से चिंतित है। यह सिर्फ कानून-व्यवस्था की समस्या नहीं है, बल्कि अत्यंत गहन सामाजिक-आर्थिक मुद्दा है जिस पर अब तक की तुलना में ज्यादा सार्थक तरीके से ध्यान दिया जाना चाहिए। खुफिया एजेंसियों के सूत्रों के अनुसार छत्तीसगढ़ राज्य के व्यापारियों, छोटे-बड़े ठेकेदारों और सरकारी अधिकारियों से नक्सली संगठनों के द्वारा हर साल करीब 2 से ढाई अरब रुपए की उगाही की जा रही है। स्थिति तो अब इतनी खराब हो गई है कि मंत्रियों और विधायकों से भी धन ऐंठने की कोशिश की जा रही हैं। वहीं दूसरी ओर, वे देश के भीतर एक ऐसा प्रभाव क्षेत्र बनाना चाह रहे हैं, जहां से वे एक तरफ आंध्रप्रदेश के विशाखापट्टनम बंदरगाह से लेकर नेपाल और बंगाल की सीमा तक स्वतंत्र गलियारा बना सकें। इसके साथ ही नक्सली अंतरर्राष्ट्रीय संपर्क और संबंध बनाने में जुटे हैं। इस समग्र कार्ययोजना का मतलब एक ही है कि जब मौका हाथ लगे तो नक्सली ‘‘स्वतंत्र दण्डाकारण्य’’ राष्ट्र की स्थापना कर सके। इसके लिए वे रुपए भी इकट्ठा कर रहे हैं। ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ के इस खुलासे के बाद छत्तीसगढ़ सरकार और केन्द्र सरकार जागी और नक्सलियों के द्वारा की जा रही अवैध वसूली पर अंकुश लगाने में जुट गई।
‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ ने 7 से 13 मार्च 2005 के अंक में ‘‘सिंचाई ठेके में 150 करोड़ का घोटाला’’ देश के नं. 1 मुख्यमंत्री लाचार क्यों? के शीर्षक से समाचार प्रकाशित किया था, छत्तीसगढ़ की डॉ. रमन सरकार इन दिनों बहुचर्चित हैदराबाद के प्रसाद एण्ड कंपनी के एक समूह पर भारी मेहरबान है। इस कम्पनी के समूह को एक-एक कर लगभग 1 हजार करोड़ रुपए के ठेके दिये जा चुके हैं और देने का सिलसिला जारी है। मालूम हो कि तत्कालीन जोगी सरकार के समय प्रसाद एण्ड कम्पनी को खरसिया शाखा नहर निर्माण निविदा कार्य में 100 करोड़ रुपए के घोटाले के बाद निर्माण कार्य में व्याप्त अनियमितताओं को लेकर भाजपा के कई नेताओं ने विधानसभा में भारी हंगामा किया था। साथ ही सी.बी.आई जांच की मांग भी की गई थी। जोगी शासन काल में विधानसभा चुनाव के समय आनन-फानन में 5 बड़े निविदा में धांधली कर करोड़ों रुपए का चुनावी चंदा मुहैया कराने के आरोप पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी पर तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष एवं वर्तमान भाजपा सांसद नंदकुमार साय ने लगाते हुए मुख्य चुनाव आयोग, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा छत्तीसगढ़ के राज्यपाल से शिकायत की थी। जिसके कारण इन निविदाओं पर रोक लगा दी गई। सूत्रों के मुताबिक जब डॉ. रमन सिंह की सरकार बनी तो भाजपा के एक वरिष्ठ नेता व एक केन्द्रीय मंत्री ने मुख्यमंत्री पर दबाव डालकर इन टेंडरों की स्वीकृति हैदराबाद के प्रसाद एण्ड कंपनी के एक समूह को दिलाई थी। इस कार्य में लगभग 150 करोड़ के घोटाले का अनुमान है। जिसकी विस्तृत रिपोर्ट ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ ने प्रकाशित किया उसके बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने सभी सिंचाई ठेकों को निरस्त कर दिया था ।
‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने 21 से 27 मार्च 28 से 3 अप्रैल 2005 के अंक में ‘शराब ठेके की पारदर्शिता पर सवालियां निशान?’ नए ठेकेदारों को कम्प्यूटर ने नहीं पहचाना, पुराने को ही मिला शराब का ठेका के शीर्षक से खुलासा किया था । जिसमें बताया गया कि शराब छत्तीसगढ़ राज्य की कमाई का मुख्य जरिया है , हर साल सरकार आबकारी लक्ष्य बढ़ाती हैै। छत्तीसगढ़ के 16 जिले में 193 देशी शराब एवं विदेशी शराब समूह हैं । जिसका ठेका कम्प्यूटर द्वारा लाटरी पद्धति से हुई । लगभग 3 लाख आवेदन जमा हुये, इससे सरकार को लगभग 74 करोड़ रुपए का फार्म जमा करने वाले से शुद्ध मुनाफा मिला , जबकि शासन को इस वर्ष लगभग 410 करोड़ रुपये की राजस्व प्राप्ति होगी, लेकिन परिणामों से न केवल नए ठेकेदार, बल्कि आम लोगों के साथ ही विभाग के अधिकारी भी हैरत में है। पूरे मामले में दिलचस्प पहलू यह है कि अब तक प्रदेश में जहां भी ठेके हुए हैं कम्प्यूटर ने पुराने ठेकेदारों के नामों की लाटरी निकाली है। एक भी ऐसा स्थान नहीं है जहां कम्प्यूटर नए ठेकेदार पर मेहरबान हो? राज्य के विभिन्न जिलों में प्राप्त परिणाम और उसके बाद उठे प्रश्र स्वाभाविक तौर पर पारदर्शिता के आड़ में छिपे तथ्य को भी उजागर करता है। इसे लेकर आज भी सवालिया निशान कायम है? इस प्रक्रिया में गंभीर बात यह है कि अधिकतर दुकानें बेनामी हैं। जिनकी हैसियत इतने बड़े ठेके लेने का है ही नहीं, वे आज करोड़ों की दुकान के मालिक कैसे बने? बड़े-बड़े शराब ठेकेदारों ने दुकान अपने नाम से नहीं ली है बल्कि अपने नौकरों के नाम पर लिया है जिससे करोड़ों की आयकर की भी चोरी की जा रही है। अगर आवेदन पत्र की गंभीरता पूर्वक जांच की जाए तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। क्योंकि जिन्होंने आवेदन पत्र दिए हैं उनकी हैसियत इसके लायक है या नहीं? अधिकारिक तौर पर पता चलता है कि एक व्यक्ति के नाम से कई आवेदन पत्र जमा किए गए और उसकी उम्र अलग-अलग बताई गई हैै अगर इसकी जांच की जाए तो सत्यता उजागर हो जाएगा। मालूम हो कि पिछले वर्ष से शराब ठेका में पारदर्शिता लाने के लिए कम्प्यूटर पद्धति अपनाई गई हैै। इस खुलासे के बाद तहलका मचा और शराब ठेकेदार इस मामले को लेकर न्यायालय में भी गए तथा अपने-अपने स्तर पर कार्रवाई कराने में जुट गए ।
‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ ने 9 से 15 अक्टूबर 2006 के अंक में ‘‘लाफार्ज ने 2 सीमेंट फैक्ट्री की खरीदी में सरकार को लगाया 155 करोड़ का चूना’’ भाजपा ने विधानसभा में किया भारी हंगामा, आरोप पत्र में 8वें स्थान पर जिक्र, अब सरकार में आने के बाद मौन क्यों? के शीर्षक से समाचार प्रकाशित किया था। बहुराष्ट्रीय कंपनी लाफार्ज द्वारा छत्तीसगढ़ के दो सीमेंट फैक्ट्री की खरीदी में क्रमश: रेमण्ड सीमेंट फैक्ट्री, गोपाल नगर को करीब 800 करोड़ रुपए, सोनाडीह टाटा सीमेंट फैक्ट्री को करीब 764 करोड़ रुपए की वास्तविक खरीदी मूल्य से कम दर्शाकर रेमण्ड सीमेंट 42 करोड़ 18 लाख 21 हजार 288 रुपए तथा टाटा सीमेंट को करीब 35 करोड़ रुपए में रजिस्ट्री पंजीयन कराने से छत्तीसगढ़ सरकार को दोनों फैक्ट्री की खरीदी में करीब 155 करोड़ रुपए की राजस्व की हानि हुई है। मालूम हो कि भाजपा विधायकों ने विधानसभा में भी इस मामले को लेकर भारी हंगामा किया था और उच्च स्तरीय जांच की मांग भी की थी तथा छत्तीसगढ़ भाजपा ने एक आरोप पत्र जारी किया था जिसमें अजीत जोगी को तानाशाह, भ्रष्ट, अलोकतांत्रिक मुख्यमंत्री करार दिया था और जोगी शासनकाल के 35 घोटालों का उल्लेख किया है, जिसमें एक घोटाला लाफार्ज सीमेंट कंपनी का है। जिसका 8वें स्थान में जिक्र है, वित्त एवं वाणिज्यकर मंत्री अमर अग्रवाल का कहना है कि सरकार स्थिति का आंकलन कर रही है। छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का कहना है कि 155 करोड़ की स्टाम्प ड्यूटी की चोरी की वसूली होनी चाहिए। लाफार्ज ने मुम्बई आयकर विभाग को दिए गए विवरण में रेमण्ड सीमेंट फैक्ट्री को करीब 751 करोड़ रुपए में खरीदने की बात कही है। जबकि पंजीयन कराते समय 42 करोड़ 18 लाख 31 हजार में खरीदी बताई गई है। ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ के इस खुलासा के बाद मामले की शीघ्र जांच कर बड़ी कार्यवाही करने की बात कही गई थी ।
‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने 20 से 26 जून 2011 के अंक में ‘वेदांता अध्यक्ष अनिल अग्रवाल कैसे बने खरबपति?,व देश की सुरक्षा पर सरकार मौन का कच्चा चिट्ठा’ ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ का एक और सनसनीखेज खुलासा 2जी स्प्रेक्ट्रम से भी बड़ा घोटाला के शीर्षक से 8 पृष्ठों में बड़ा खुलासा किया था। भारत कभी पूरे विश्व में ‘सोने की चिडिय़ा’ कहा जाने वाला देश आज चारों तरफ भीषण महंगाई भ्रष्टाचार और महाघोटालों से जकड़ा हुआ है। ‘सोने की चिडिय़ा’ अब बहुराष्ट्रीय कंपनी वेदांता स्टरलाईट चेयरमैन अनिल अग्रवाल के हाथों में जकड़ी हुई है। अनिल अग्रवाल शुरूआती दिनों में एक कबाड़ी था। कॉपर स्क्रैप एकत्र कर व्यापारियों को बेचा करता था। फिर उन्होंने अप्रैल 1996 में स्टरलाइट कंपनी बनाया और लगभग 27 करोड़ की पूंजी से 5 साल बाद अरबपति बन गए । देश में पहली बार विनिवेश के तहत छत्तीसगढ़ राज्य के कोरबा जिले में स्थित बालको का 51 प्रतिशत शेयर 551.5 करोड़ रुपए में 21 फरवरी 2001 को अधिग्रहण करने के बाद बालको में एक ऐसा ‘पारसमणि’ था जिसके पाने से रातों-रात खरबपति बन जाएगा, इसकी जानकारी अनिल अग्रवाल को पहले से थी। जिसे अपने कब्जे में लेकर बेच दिया और खरबों का मालिक बन गया। जिसकी जानकारी केंद्र सरकार को भी थी, लेकिन उन्होंने मौन साध ली? जिसका खुलासा ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ कर रहा है। किसी समय में बैंक से कर्ज लेने की अर्जी दी लेकिन बैंक ने कर्ज देने से इंकार कर दिया था। आज वेदांता-स्टरलाइट अध्यक्ष अनिल अग्रवाल 2 लाख करोड़ रुपए से भी अधिक के कारोबार का मालिक, तथा 1 लाख 65 हजार करोड़ रुपए अपनी कंपनी में निवेश के साथ 9.6 अरब डॉलर की सौदा केयर्न इंडिया और स्टरलाइट इंडस्ट्रीज होने जा रहा है, इस सौदे के लिए केंद्र सरकार पर भारी दबाव है, अधिग्रहण करने के बाद दुनिया का सबसे दौलतमंद व्यक्ति अनिल अग्रवाल होगा। आखिर इतना सारा धन ‘एक कबाड़ी’ के पास आया कहां से? बिहार राज्य के पटना का रहने वाला अनिल अग्रवाल दसवीं कक्षा तक ही शिक्षा ग्रहण कर आज लंदन तक सफरनामा तथा राज्यों या केंद्र सरकार पर कैसे रखे है नियंत्रण, कैसे बने खरबपति? कहीं गृहमंत्री पी चिदम्बरम (पूर्व कार्यकारी निदेशक वेदांता ) का सरकार पर दबाव तो नहीं ? आजादी के बाद से सबसे बड़ा घोटाला व देश की सुरक्षा से जुड़े मामले पर केंद्र सरकार के मौन का कच्चा चिट्ठा तथा अनिल अग्रवाल के कारनामों पर 'वेदांता बिलयंस' के नाम से प्रकाशित पुस्तक और रोहित पोद्दार एवं तत्कालीन कांग्रेस सांसद चन्द्रशेखर दुबे के द्वारा केंद्र सरकार को कई बार कार्रवाई के लिए लिखे गए पत्रों के साथ ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ को खोजबीन में मिले 1 हजार पृष्ठों से भी अधिक दस्तावेजों के अनुसार 8 पृष्ठों में देशहित एवं जनहित में खुलासा किया। इस खुलासे के बाद उद्योग जगत में हड़कंप मच गया था।
‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ ने 21 से 27 नवंबर 2011 के अंक में ‘‘कोल ब्लॉक ऑवंटन में लाखों करोड़ों का घोटाला’’ उद्योगपतियों को मिली मनपसंद कोल ब्लॉक, कोयला मंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक हाथ काले के शीर्षक से पहला खुलासा किया था। भारत में गणतंत्र की नींव में लगा उद्योगपतियों, राजनेताओं व नौकरशाहों के स्वार्थ का घुन। बेदाग एवं स्वच्छ छवि वाले प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के राज में भ्रष्टाचार और घोटालों के टूटे सारे रिकार्ड। अब दुनिया का सबसे बड़ा कोयला घोटाला का खुलासा ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ जनहित व देशहित में कर रहा है। बड़े-बड़े उद्योगपतियों को कोल ब्लाॅक बांटने में लाखों करोड़ का घोटाला होने का संदेह है। 1993 से 2004 तक सिर्फ 43 कोल ब्लाॅक बांटे गए,लेकिन 2005 से 2009 तक 242 कोल ब्लाॅक एवं 2010 में केवल 1 ही कोल ब्लॉक बांटा जिसमें 100 सरकारी संस्था के साथ कुछ निजी कंपनियों की भागीदारी है तथा 186 निजी कंपनियां है। कुल 286 कोल ब्लाॅक बांटे गए है जो लगभग मुफ्त में ही दिए गए है। इसका कुल आवंटित कोयला भंडार 43548.147 मिलियन टन है। यदि 1000 रुपए प्रति टन के हिसाब से इसके मूल्य का आंकलन करें तो कुल भंडार का मूल्य 43 लाख करोड़ रुपए से भी अधिक होता है। वर्तमान में कोल इंडिया द्वारा 1000 से लेकर 4 हजार रुपए प्रति टन की दर से कोयला बेचा जा रहा है, दूसरी ओर एनटीपीसी और कई सरकारी संस्था विदेश से आयातित कोयला को 4 हजार रुपए से लेकर 7 हजार प्रति टन के हिसाब से खरीदने पर मजबूर हैं। इस हिसाब से कोल भंडार का मूल्य 100 लाख करोड़ रुपए से अधिक का होता है।
रिलायंस पावर लिमिटेड ने नियमों को ताक में रखकर दूसरे पावर प्रोजेक्ट में कोयला उपयोग कर लगभग 1 लाख 20 हजार करोड़ रुपए का फायदा उठाया है। इसी तरह अनेेक उद्योगपति भी कोल ब्लाॅक से बेरोकटोक कोयला उपयोग कर हजारों लाखों करोड़ रुपये का चूना लगा रहे हैं और सरकार मूकदर्शक बनी हुई है? उद्योगपतियों को कोल ब्लाॅक का ऐसा बंदरबांट किया गया जिसमें तत्कालीन कोयला मंत्री शिबू सोरेन और तत्कालीन कोयला एवं खान राज्य मंत्री डाॅ. दसारि नारायण राव के हाथ काले हुए हैं। केंद्रीय कोयला मंत्री शिबू सोरेन को हटाने के बाद डाॅ. मनमोहन सिंह के पास कोयला मंत्रालय का भी प्रभार था। जिसके चलते इस घोटाले के छींटे डाॅ. मनमोहन सिंह के दामन में भी पड़ सकते हैं। क्या वर्तमान कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल भी इसके छींटे से बच पाएंगे? 2 जी स्पेक्ट्रम से 25 गुना अधिक का कोयला घोटाला का सनसनीखेज खुलासा “छत्तीसगढ़ रिपोर्टर” ने 9 पृष्ठो में किया। इस खुलासे ने देश को सन्न कर दिया, जिससे बड़े-बड़े उद्योगपति, अधिकारियों एवं राजनेताओं में भारी हड़कंप मच गया और यह खबर आग की तरह पूरे देश में फैल गई। इस खबर को देश के विभिन्न पार्टियों के नेताओं एवं सांसदों ने गंभीरता से लिया और “छत्तीसगढ़ रिपोर्टर” के प्रति को संलग्न कर प्रधानमंत्री, कोयला मंत्री,सीवीसी,सीएजी एवं सीबीआई को पत्र लिखकर शीघ्र कार्रवाई की मांग की। इधर “छत्तीसगढ़ रिपोर्टर” का खुलासा लगातार जारी रखा था।
‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ ने 23 से 29 अप्रैल 2012 के अंक में ‘‘43 लाख करोड़ के कोयला घोटाले की आग बुझाने में लगी सरकार और उद्योगपति’’ ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ के खुलासे से राजनेताओें , उद्योगपतियों में मचा हड़कंप के शीर्षक से दूसरा बड़ा खुलासा किया था। जिसमें कोल ब्लाॅक आवंटन में हुए 43 लाख करोड़ से भी अधिक के घोटाले की आग की लपटें यूपीए की सरकार और कुछ बड़े उद्योगपतियों को जला न दे, इस डर से इसे बुझाने में लगी है सरकार। आनन-फानन में कोल ब्लाॅक आवंटन की युद्ध स्तर पर जांच शुरू कर दी है। जिसमें कुछ निजी कंपनियों के कोल ब्लाॅक को निरस्त कर दिया है तथा निरस्त कोल ब्लाॅक को सरकारी संस्था एनटीपीसी को पुन:आवंटन किया है। मालूम हो कि राष्ट्रीय हिंदी साप्ताहिक ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने देशहित व जनहित में दुनिया का सबसे बड़ा कोयला घोटाले का सनसनीखेज खुलासा 21 से 27 नवम्बर 2011 के अंक में ‘कोल ब्लाॅक आवंटन में लाखों करोड़ का घोटाला’ के शीर्षक से किया था। इस खबर के प्रकाशन से राजनेताओं, उद्योगपतियों तथा कोल माफियाओं में भारी हडक़ंप मचा। यह खबर आग की तरह पूरे देश में फैल गई ,यह विशेष खोजी रिपोर्ट 9 पृष्ठों में थी, जिसमें बताया गया कि काले हीरे के खजाने को कैसे लूटाया और 1993 से 2010 तक 286 आवंटित 100 सरकारी संस्थान एवं 186 निजी कंपनियों को दी गई जिसमे, निरस्त 24 कोल ब्लॉकों सहित कुल 208 कोल ब्लॉकों का नाम तथा कोल भण्डार की सूची के साथ ही अनेक दस्तावेज भी प्रकाशित किए थे। इस खबर को देश के विभिन्न पार्टियों के नेताओं ने गंभीरता से लिया तथा सीएजी ने भी अपनी प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में करीब 11 लाख करोड़ का घोटाला होने का संकेत दिया है, यह राशि और बढ़ने की उम्मीद है। इससे ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ की खबर की सत्यता पर मुहर लग जाती है। इस मामले को लेकर लोकसभा तथा राज्य सभा में भी भारी हंगामा हुआ और प्रधानमंत्री से कोयला घोटाले पर स्पष्टीकरण की मांग की गई। हंगामें के चलते संसद की कार्रवाई स्थगित करनी पड़ी। पुन: ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने 23 से 29 अप्रैल 2012 के अंक में ‘43 लाख करोड़ के कोयला घोटाले की आग बुझाने में लगी सरकार और उद्योगपति’ के शीर्षक से 8 पृष्ठों की विशेष खोजी रिपोर्ट में दूसरा बड़ा खुलासा किया । जिसमें अनेक सांसदों ने कार्रवाई के लिए पत्र लिखे। सांसद गोविन्द राव आदिक द्वारा ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ में 21 से 27 नवम्बर 2011 के अंक में प्रकाशित खबर को लेकर 14 दिसम्बर 2011 को कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल को लिखे गए पत्र पर कोयला मंत्री श्री जायसवाल ने 4 पन्नों का कंडिकावार 1 से 12 तक दिए गए जवाबी पत्र में पत्र क्र. डी.ओ.नं. 38036/01/2012-सीए-1 दिनांक 9 फरवरी 2012 को जो जानकारी दी है वह पत्र ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ के पास उपलब्ध है। उसके अनुसार सरकारी एवं निजी कंपनियों को कुल 195 कोल ब्लॉक (44.23 बिलियन टन) कोयला का भंडार आवंटित किया गया है। जिसमें से 28 कोल ब्लॉकों में उत्पादन हो रहा है। उन्होंने कंडिका 9 में स्पष्ट किया है कि कोल माइंस (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम 1973 के अंतर्गत पात्र पब्लिक एवं निजी कंपनियों को अब तक 218 कोल ब्लॉकों का आवंटन किया गया है जिसका कोयला भंडार 50 बिलियन टन है, जिसमें से 25 कोल ब्लॉकों का आवंटन रद्द किया गया। इसके अलावा श्रीप्रकाश् जायसवाल ने कोयला आवंटन के बारे में विस्तृत जानकारी दी तथा सांसदों एवं यूनियन नेताओं और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक आदि के द्वारा कोल ब्लॉक आवंटन के विरोध में लिखे गए पत्र तथा कई महत्वपूर्ण दस्तावेजों के साथ सीएजी ने भी अपनी प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में करीब 11 लाख करोड़ का कोयला घोटाला होने का संकेत दिया, आदि के संबंध में ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने 8 पृष्ठो में दूसरा बड़ा खुलासा किया । इस खुलासे के बाद राजनेताओं, अधिकारियों , उद्योगपतियों तथा कोल माफियाओं में भारी हडक़ंप मचा और कोल ब्लॉक आवंटन घोटाले के मामले को लेकर पुन: लोकसभा एवं राज्यसभा में हंगामा हुआ, जिसके चलते संसद की कार्रवाई कई दिनों तक स्थगित रही, तब डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार ने आनन-फानन में अपनी साख बचाने के लिए सीबीआई जांच के आदेश दिए तथा कोयला मंत्रालय ने भी बड़े पैमाने पर जांच शुरु की। इधर ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने खुलासा लगातार जारी रखा था ।
लाखों करोड़ के कोल ब्लॉक घोटालेबाजों को बचाने में लगी सरकार
195 कोल ब्लॉक 289 कंपनियों को आवंटित, 54 कोल ब्लॉक के लिए 97 कंपनियों को नोटिस
‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ ने 26 नवंबर से 02 दिसंबर 2012 के अंक में ‘‘लाखों करोड़ के कोल ब्लॉक घोटालेबाजों को बचाने में लगी सरकार’’ 195 कोल ब्लॉक 289 कंपनियों को आवंटित, 54 कोल ब्लॉक के लिए 97 कंपनियों को नोटिस, ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ के पर्दाफाश से देश में मचा कोहराम के शीर्षक से तीसरा बड़ा खुलासा किया था । देश में लाखों करोड़ के कोल ब्लॉक घोटाले की आग लगी है और प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की ईमानदारी धू-धू कर जल रही है। कोल ब्लॉक घोटाले के नायक पूर्व कोयला मंत्री शीबू सोरेन, पूर्व राज्यमंत्री डॉ. दसारि नारायण राव व संतोष बगरोडिय़ा एवं वर्तमान मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल तथा अफसरों और बड़े-बड़े उद्योगपतियों को कैसे बचाने में लगी है सरकार, क्या ये लोग जांच में बच पाएंगे? ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ राष्ट्रहित में तीसरा बड़ा खुलासा कर रहा है। ज्ञात हो कि जिस कोयला घोटाले को लेकर पूरे देश में कोहराम मचा हुआ है, उसका सर्वप्रथम खुलासा ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने ही किया था। देश में सीएजी की रिपोर्ट अगस्त 2012 में जारी हुई जबकि ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने 21 से 27 नवम्बर 2011 के अंक में ‘कोल ब्लॉक आवंटन में लाखों करोड़ का घोटाला’ के शीर्षक से पर्दाफाश किया था। यह विशेष खोजी रिपोर्ट 9 पृष्ठों में थी। जिसमें काले हीरे के खजाने को कैसे लुटाया और 1993 से 2010 तक 286 आवंटित सरकारी संस्थान एवं निजी कंपनियों को दी गई 195 कोल ब्लॉकों का नाम तथा कोल भण्डार की सूची के साथ ही अनेक दस्तावेज भी प्रकाशित किए थे। इस खबर को देश के विभिन्न पार्टियों के नेताओं ने गंभीरता से लेते हुए ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ की प्रति को संलग्न कर प्रधानमंत्री, कोयला मंत्री, सीवीसी, सीएजी एवं सीबीआई आदि को पत्र लिखकर कार्रवाई की मांग की थी। उक्त पत्रों को सीबीसी एवं सीएजी ने गंभीरता से लिया। पुन: ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने 23 से 29 अप्रैल 2012 के अंक में ‘43 लाख करोड़ के कोयला घोटाले की आग बुझाने में लगी सरकार और उद्योगपति’ के शीर्षक से 8 पृष्ठों की विशेष खोजी रिपोर्ट में दूसरा बड़ा खुलासा किया था। जिसमें अनेक सांसदों व यूनियन नेताओं द्वारा कार्रवाई के लिए लिखे पत्र और ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ को मिले महत्वपूर्ण दस्तावेजों के साथ खुलासा के बाद फिर कोल ब्लॉक आवंटन घोटाले को लेकर लोकसभा एवं राज्यसभा में भारी हंगामा हुआ। जिसके चलते संसद की कार्रवाई कई दिनों तक स्थगित रही। तब केंद्र सरकार हरकत में आई और सीबीआई तथा कोयला मंत्रालय ने बडे़ पैमाने पर जांच शुरू की, लेकिन कोल ब्लॉक आवंटन घोटाले के बाद अब उन्हें रद्द करने एवं बैंक गारंटी जप्त करने आदि में भी घोटाला हो रहा है। जिसका खुलासा ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ ने 26 नवंबर से 02 दिसंबर 2012 के अंक में ‘‘लाखों करोड़ के कोल ब्लॉक घोटालेबाजों को बचाने में लगी सरकार’’ के शीर्षक से 8 पृष्ठों किया। जिसमें 195 कोल ब्लॉक को 289 कंपनियों को आवंटित किया था जिसमें से कोयला मंत्रालय ने 54 कोल ब्लॉक के लिए 97 कंपनियों को अलग- अलग कारण बताओ नोटिस जारी कर किस-किस कंपनी को किस मामले में नोटिस दिया गया था, उन सभी 97 कंपनियों की सूची और किस कंपनी का आवंटन रद्द, किस कंपनी की बैंक गारांटी जप्त व कोयला मंत्रालय शेष कंपनियों पर क्यों कार्रवाई नहीं कर रही और इन कंपनियों को क्यों बचाने में लगी है आदि की विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित कर ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने न केवल घोटाले में शामिल लोगों का पर्दाफाश किया, बल्कि कोल ब्लॉक आवंटन में बड़े-बड़े लोगों को कैसे कोल ब्लॉक आवंटन किए जिसमें बड़े मीडिया हाउस भी शामिल थे, इन लोगों के भी काले कारनामों को उजागर कर निष्पक्ष व निर्भीक पत्रकारिता का दायित्व निभाया। ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ के खुलासों को राष्ट्रीय अखबारों ने भी गंभीरता से लेते हुए अपने-अपने स्तर पर समाचार प्रकाशित किया जिसमें प्रतिष्ठित राष्ट्रीय हिंदी दैनिक ‘‘पंजाब केसरी’’ दिल्ली के संपादक अश्विनी कुमार ने ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ के खुलासों को अपने विशेष सम्पादकीय में स्थान देते हुए एक सप्ताह तक क्रमश: प्रकाशित किया था। उसके बाद ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ के 26 नवम्बर से 2 दिसम्बर 2012 के अंक में ‘‘लाखों करोड़ के कोल ब्लॉक घोटालेबाजों को बचाने में लगी सरकार’’ के शीर्षक से प्रकाशित तीसरे खुलासे को ‘‘पंजाब केसरी’’ ने सभी संस्करणों के मुख्य पृष्ठों पर दिनांक 11 दिसम्बर 2012 से 20 दिसम्बर तक लगातार भागवत जायसवाल, बिलासपुर के नाम के साथ ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ का भी उल्लेख करते हुए 10 दिनों तक मुख्य पृष्ठों पर लगातार समाचार प्रकाशित किया था। ज्ञात हो कि ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ के पहले एवं दूसरे खुलासे के बाद सुप्रीम कोर्ट में 2 लोगों ने अलग-अलग याचिका दायर किया। जिसमे मनोहरलाल शर्मा, अधिवक्ता दिल्ली ने 18 सितम्बर 2012 में रिट पिटीशन (सिविल) नं. 463 और प्रशांत भूषण की संस्था कॉमन काज दिल्ली ने 24 नवम्बर 2012 में रिट पिटीशन (सिविल) नं. 515 के तहत याचिका दायर किया था।‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’के पास अब तक खोजबीन में सैकड़ों पृष्ठों से भी अधिक दस्तावेज के अनुसार 8 पृष्ठों में तीसरा खुलासा किया। इस खुलासे के बाद सीबीआई ने अपनी जांच का दायरा बढ़ाया तथा कोयला मंत्रालय ने भी प्रत्येक कंपनियों पर बड़े पैमाने पर जांच शुरू कर कार्रवाई की। इधर ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ ने खुलासा लगातार जारी रखा था।
‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’के ‘‘लाखों करोड़ के कोल ब्लॉक घोटालेबाजों को बचाने में लगी सरकार’’ के शीर्षक से तीसरा बड़ा खुलासा को ‘पंजाब केसरी’ ने मुख्य पृष्ठ पर 10 दिन तक क्रमश: प्रकाशित किया
‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ के खुलासों को राष्ट्रीय अखबारों ने भी गंभीरता से लेते हुए अपने-अपने स्तर पर समाचार प्रकाशित करते हैं जिसमें प्रतिष्ठित राष्ट्रीय हिंदी दैनिक ‘‘पंजाब केसरी’’ दिल्ली के संपादक श्री अश्विनी कुमार ने ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ के खुलासों को अपने विशेष सम्पादकीय में स्थान देते हुए एक सप्ताह तक क्रमश: प्रकाशित किया था। उसके बाद ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ ने 26 नवम्बर से 2 दिसम्बर 2012 के अंक में ‘‘लाखों करोड़ के कोल ब्लॉक घोटालेबाजों को बचाने में लगी सरकार’’ 195 कोल ब्लॉक 289 कंपनियों को आवंटित, 54 कोल ब्लॉक के लिए 97 कंपनियों को नोटिस, ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ के पर्दाफाश से देश में मचा कोहराम के शीर्षक से तीसरा बड़ा खुलासा किया था। यह विशेष खोजी रिपोर्ट 8 पृष्ठों में थी उसे ‘‘पंजाब केसरी’’ ने अपने सभी संस्करणों के मुख्य पृष्ठों पर दिनांक 11 दिसम्बर 2012 से 20 दिसम्बर तक लगातार भागवत जायसवाल, बिलासपुर के नाम के साथ ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ का भी उल्लेख करते हुए 10 दिनों तक क्रमश: समाचार प्रकाशित किया था।
कोल ब्लॉक आवंटन घोटाले में दर्जनों जा सकते हैं जेल !
‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ के लगातार खुलासे के बाद हरकत में आई सरकार, दबाव में बड़ी कार्रवाई की
195 कोल ब्लॉक को 289 कंपनियों के आवंटन पर अब तक हुई कार्रवाई की विस्तृत रिपोर्ट
‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ ने 27 जनवरी से 02 फरवरी 2014 के अंक में ‘‘कोल ब्लॉक आवंटन घोटाले में दर्जनों जा सकते हैं जेल’’ 195 कोल ब्लॉक को 289 कंपनियों के आवंटन पर अब तक हुई कार्रवाई की विस्तृत रिपोर्ट ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ के लगातार खुलासे के बाद हरकत में आई सरकार, दबाव में बड़ी कार्रवाई की तैयारी के शीर्षक से चौथा बड़ा खुलासा किया था। ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने देशहित एवं जनहित में एक दर्जन से भी अधिक अरबों-खरबों के बड़े-बड़े घोटाले का पर्दाफाश किया है। उसके बाद लाखों करोड़ के कोल ब्लॉक आवंटन घोटाले को लेकर देश में जो कोहराम मचा था, यह देश का अब तक का सबसे बड़ा घोटाला था। इस घोटाले को सबसे पहले राष्ट्रीय हिन्दी साप्ताहिक ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने ‘कोल ब्लॉक आवंटन में लाखों करोड़ का घोटाला’ के शीर्षक से 21 से 27 नवम्बर 2011 के अंक में सभी कंपनियों की सूची के साथ विशेष खोजी रिपोर्ट 9 पृष्ठों में पहला खुलासा राष्ट्रहित में किया था। तब शायद किसी को एहसास भी नहीं हुआ होगा कि लाखों करोड़ों का कोयला घोटाला हुआ है। इस खबर से राजनेताओं, उद्योगपतियों और कोलमाफियाओं में भारी हडक़ंप मच गया। यह खबर आग की तरह पूरे देश में फैल गई और इसे विभिन्न पार्टियों के राजनेताओं ने गंभीरता से लिया तथा ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ की प्रति को संलग्न कर प्रधानमंत्री, कोयला मंत्री, सीवीसी, सीएजी एवं सीबीआई आदि को पत्र लिखकर शीघ्र कार्रवाई की मांग की गई तब केंद्र में बैठी यूपीए सरकार का सिंहासन हिल उठा। सांसद गोविंद राव आदिक द्वारा ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ में प्रकाशित खबर को लेकर 14 दिसम्बर 2011 को कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल को लिखे गए पत्र पर कोयला मंत्री ने पत्र क्रं. डी.ओ.नं. 38036/01/2012 सीए-1, 9 फरवरी 2012 को 4 पन्नों का कंडिकावार 1 से 12 तक का जो जवाब दिया था, उसमें कोल ब्लॉकों का आवंटन किस प्रक्रिया से कितने कंपनियों को किया गया और कितनी कंपनियां उत्पादन कर रही हैं और कितने को निरस्त किया गया, आदि कई महत्वपूर्ण जानकारी सिलसिलेवार दिया था। वह पत्र ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ के पास उपलब्ध है। कोयला मंंत्री के पूरे पत्र के साथ कई महत्वपूर्ण दस्तावेजों का भी प्रकाशन 23 से 29 अप्रैल 2012 के अंक में ‘43 लाख करोड़ के कोयला घोटाले की आग बुझाने में लगी सरकार और उद्योगपति’ के शीर्षक से 8 पृष्ठों की विशेष खोजी रिपोर्ट में दूसरा बड़ा खुलासा किया था । सांसदों द्वारा लिखे गए पत्रों को सीवीसी एवं सीएजी ने गंभीरता से लिया। अगस्त 2012 में सीएजी की रिपोर्ट में 1.86 लाख करोड़ घोटाले का खुलासा हुआ। सीएजी की इस रिपोर्ट ने ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ के खुलासे पर मुहर लगा दी। अब केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में स्वीकार किया कि कोल ब्लॉक आवंटन में कहीं कुछ गलतियां हुई है और इससे अधिक बेहतर तरीके से काम किया जा सकता था। फिर ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ ने 26 नवंबर से 02 दिसंबर 2012 के अंक में ‘‘लाखों करोड़ के कोल ब्लॉक घोटालेबाजों को बचाने में लगी सरकार’’ के शीर्षक से 8 पृष्ठों की विशेष खोजी रिपोर्ट में तीसरा बड़ा खुलासा किया था। इन ख्रुलासों के बाद बडे पैमाने पर सीबीआई एवं कोयला मंत्रालय ने 194 कोल ब्लॉक आवंटित 286 सरकारी एवं निजी कंपनियों की जांच शुरू की। जिसमें किस- किस कंपनियों पर क्या-क्या कार्रवाई हुई उन सभी कंपनियों की सूची तथा की गई कार्रवाई का ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ ने 27 जनवरी से 02 फरवरी 2014 के अंक में ‘‘कोल ब्लॉक आवंटन घोटाले में दर्जनों जा सकते हैं जेल!’’ के शीर्षक से 14 पृष्ठों में चौथा बड़ा खुलासा किया। सूत्रों के मुताबिक पूर्व कोयला मंत्री शीबू सोरेन, कोयला राज्य मंत्री डॉ. दसारि नारायण राव, संतोष बगरोडिय़ा व कई पूर्व सचिवों के अलावा कुछ राज्यों और केंद्र के अनेक अधिकारियों सहित दर्जनों उद्योगपति जेल जा सकते हैं? (सीबीआई ने राव और दो पूर्व कोयला सचिव के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है। उद्योगपतियों को बचाने में लगे वर्तमान कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल पर भी अब गाज गिर सकती है? पूर्व और वर्तमान कोयला मंत्री के चलते ईमानदार प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के दामन पर भी छींटे पड़ सकते हैं? कोल ब्लॉक आवंटन घोटाले के बाद अब उन्हें रद्द करने की प्रक्रिया में भी घोटाला हो रहा है, जिसका खुलासा ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने 26 नवम्बर से 2 दिसम्बर 2012 के अंक में किया था, जिसमें कंपनियों की सूची प्रकाशित की थी। उसके बाद कोयला मंत्रालय हरकत में आया और अपने बचाव के लिए धड़ल्ले से बड़ी कार्रवाई करना शुरू किया, उसमें अब तक 57 कंपनियों का आवंटन रद्द, 11 को बैंक गारंटी जमा करने का समय, 15 की बैंक गारंटी में करोड़ों रुपए की कटौती, आवंटन रद्द नहीं, 16 पर सीबीआई ने मामला दर्ज कर जांच जारी, 38 कंपनियां कोयला उत्खनन कर रही है, शेष 163 कंपनियों को कोयला मंत्रालय ने कारण बताओ नोटिस जारी किया तथा कोयला मंत्रालय ने किन-किन कंपनियों पर क्या-क्या कार्रवाई की और किस कंपनियों को बचाने में लगे है आदि के साथ कुल 286 कंपनियों के विस्तृत रिपोर्ट के साथ ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ को खोजबीन में मिले सैकड़ों पृष्ठों के दस्तावेजों के अनुसार ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ ने 27 जनवरी से 02 फरवरी 2014 के अंक में ‘‘कोल ब्लॉक आवंटन घोटाले में दर्जनों जा सकते हैं जेल’’ के शीर्षक से 14 पृष्ठों में चौथा बड़ा खुलासा राष्ट्रहित में किया । इस खुलासे ने कोयला मंत्रालय को सन्न कर दिया और देश में कोहराम मच गया था । फिर लोकसभा और राज्यसभा में भारी हंगामा हुआ। ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ के चौथा बड़ा खुलासा को राष्ट्रीय हिंदी दैनिक ‘‘पंजाब केसरी’’ ने अपने सभी संस्करणों के मुख्य पृष्ठ पर क्रमश 23 दिनों तक लगातार समाचार प्रकाशित किया था । इसके बाद सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया जिसमें 204 कोल ब्लॉक आवंटन को अवैध ठहराते हुए रद्द कर दिया था । सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ के सभी खुलासों पर मुहर लगा दी थी।
‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’के ‘‘कोल ब्लॉक आवंटन घोटाले में दर्जनों जा सकते हैं जेल’’ के शीर्षक से चौथा बड़ा खुलासे को ‘पंजाब केसरी’ ने मुख्य पृष्ठ पर 23 दिन तक क्रमश: समाचार प्रकाशित किया
‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ के खुलासों का असर राष्ट्रीय अखबारों एवं न्यूज चैनलों पर भी होता है, क्योंकि ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ विशेष खोजी रिपोर्ट साक्ष्य तथ्य और पुख्ता प्रमाण के साथ प्रकाशित करता है। उसे राष्ट्रीय अखबार भी गंभीरता से लेते हैं और अपने-अपने स्तर पर समाचार प्रकाशित करते हैं। ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ ने 27 जनवरी से 2 फरवरी 2014 के अंक में ‘‘कोल ब्लॉक आवंटन घोटाले में दर्जनों जा सकते हैं जेल’’ ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ के लगातार खुलासे के बाद हरकत में आई सरकार, दबाव में बड़ी कार्रवाई की तैयारी, के शीर्षक से 14 पृष्ठों में समाचार प्रकाशित किया था। जिसमें कोयला मंत्रालय ने किन-किन कंपनियों पर क्या-क्या कार्रवाई की और किस कंपनियों को बचाने में लगे है आदि के साथ कुल 286 कंपनियों के विस्तृत रिपोर्ट 14 पृष्ठों में चाैथा बड़ा खुलासा किया था उसे दिल्ली के प्रतिष्ठित राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक ‘‘पंजाब केसरी’ ने अपने सभी संस्करण के मुख्य पृष्ठ पर दिनांक 3 फरवरी से 26 फरवरी 2014 तक लगातार भागवत जायसवाल, बिलासपुर (छत्तीसगढ़) के नाम के साथ राष्ट्रीय हिन्दी साप्ताहिक ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ का भी उल्लेख करते हुए 23 दिन तक मुख्य पृष्ठ पर क्रमश: समाचार प्रकाशित किया था , जो राष्ट्रीय हिन्दी पत्रकारिता जगत के इतिहास में पहली बार हुआ हैे।
‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ के खुलासों के बाद तीन अलग-अलग याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने 24 सितम्बर 2014 को 204 कोल ब्लॉक आवंटन रद्द किया
जिस कोयला घोटाले को लेकर पूरे देश में कोहराम मचा, उसका सर्वप्रथम खुलासा ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ ने 21 से 27 नवंबर 2011 के अंक में ‘‘कोल ब्लॉक आवंटन में लाखों करोड़ का घोटाला’’ के शीर्षक से किया था। यह विशेष खोजी रिपोर्ट 9 पृष्ठों में थी, जिसमें 100 सरकारी एवं 186 निजी कंपनियों काे आवंटित कोल ब्लॉक के अलावा सरकार द्वारा निरस्त किये गए 24 कंपनियों सहित कुल 310 कंपनियों के नाम तथा कोयला भंडारों की सूची के अलावा कोल ब्लॉक आवंटन में कैसे नियम-कायदे को ताक में रखकर बड़े-बड़े उद्योगपतियों को कोल ब्लॉक आवंटन किया था। जिसका महत्वपूर्ण दस्तावेजों के साथ खुलासा होते ही यह खबर आग की तरह पूरे देश में फैल गई और इस खबर को देश के विभिन्न पार्टियों के नेताओं ने गंभीरता से लेते हुए ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ की प्रति को संलग्न कर प्रधानमंत्री, कोयला मंत्री,सीवीसी,सीएजी एवं सीबीआई को पत्र लिखकर शीघ्र कार्रवाई की मांग की तथा लोकसभा एवं राज्यसभा में इस मामले को लेकर भारी हंगामी हुआ। उसके बाद केंद्र में बैठी डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार ने आनन-फानन में सीबीआई जांच के आदेश दिए तथा कोयला मंत्रालय ने भी बड़े पैमाने पर जांच शुरू की। इधर ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ के पहले एवं दूसरे खुलासे के बाद सुप्रीम कोर्ट में 3 लोगों ने अलग-अलग याचिका दायर किया, जिसमे मनोहरलाल शर्मा, अधिवक्ता दिल्ली ने 18 सितम्बर 2012 में रिट पिटीशन (सिविल) नं. 463 और प्रशांत भूषण की संस्था कॉमन काज दिल्ली ने 24 नवम्बर 2012 में रिट पिटीशन (सिविल) नं. 515 तथा सुदीप श्रीवास्तव अधिवक्ता बिलासपुर छत्तीसगढ़ ने फरवरी 2013 को रिट पिटीशन (सिविल) नं. 283 के तहत याचिका दायर किया। इन तीनों याचिकाओं को एक साथ सम्मिलित करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की, जिसका रिट याचिका (सीआरएल) नं. 120 ऑफ 2012 है। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने सरकार द्वारा 23 जून 2011 को 24 निरस्त किए गए कोल ब्लॉक सहित कुल 310 कंपनियों को आवंटित 214 में से 204 कोल ब्लॉकों के आवंटन को अवैध ठहराते हुए 24 सितम्बर 2014 के अपने अंतिम फैसले में 310 कंपनियों में से 10 कंपनियों का कोल ब्लॉक आवंटन रद्द नहीं करते हुए शेष कंपनियों के 204 कोल ब्लॉक आवंटन को अवैध ठहराते हुए रद्द कर दिया, तथा यह भी स्पष्ट किया कि सीबीआई जिन 12 कोल ब्लॉकों की जांच कर रही है, वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी जांच जारी रहेगी । वहीं 40 कंपनियों में कोयला उत्पादन चालू है, उसे 6 महीने तक राहत देते हुए प्रति टन कोयला पर 295 रूपए का रायल्टी भुगतान कंपनियों द्वारा सरकार को करना होगा तथा इस दौरान उत्पादन का अधिकार मौजूदा प्रबंधन के पास ही रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को इन सभी रद्द 204 कोल ब्लॉकों को 31 मार्च 2015 तक नये सिरे से आवंटित करने या कोल इंडिया को सौंपने का आदेश दिया। इस सम्पूर्ण मामले की सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश श्री आर.एम.लोढ़ा, न्यायाधीश श्री मदन बी. लोकुर तथा न्यायाधीश श्री कुरियन जोसेफ की बैंच ने 25 अगस्त 2014 को कोल ब्लॉक आवंटन मामले में 162 पृष्ठों में पहला फैसला दिया तथा 24 सितम्बर 2014 को 27 पृष्ठों में अंतिम फैसला दिया। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ के खुलासों पर मुहर लगा दी। सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द किए गए 204 कोल ब्लॉकों को 31 मार्च 2015 तक नये सिरे से आवंटन करने या कोल इंडिया को सौपने का आदेश केंद्र सरकार को दिया गया था। उसके बाद केंद्र में बैठी मोदी सरकार ने 31 निजी कंपनियों को ई-नीलामी के जरिए तथा 58 सरकारी कंपनियों को आवंटन के जरिए आवंटित किया। कोयला मंत्रालय ने 2018 में अपने वेबसाइट में भी 84 कोल ब्लॉक की पारदर्शी ई- नीलामी और आवंटन से केंद्र सरकार को 3.94 लाख करोड़ रूपए का संभावित आय का उल्लेख किया है तथा 115 कोल ब्लॉक बचे हैं, जिससे लाखों करोड़ का फायदा होगा। इस लेख को लिखे जाने तक सरकार को 3.94 लाख करोड़ रुपए का फायदा हुआ था। यह ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ के खुलासे के कारण संभव हुआ है । देश के सबसे बड़े कोयला घोटाले को ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ के प्रधान संपादक भागवत जायसवाल ने जोखिम भरा कारनामा कर देशहित एवं जनहित में पर्दाफाश किया था । जिससे देश को खरबों रूपए का फायदा हुआ। यह देश के हिंदी पत्रकारिता के इतिहास में पहली बार हुआ है।
‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने 11 से 17 जून 2018 के अंक में ‘कोल ब्लॉकों की 31 ई-नीलामी और 53 आवंटन से देश को 3.94 लाख करोड़ का फायदा, फिर निजीकरण क्यों?’ के शीर्षक से 9 पृष्ठों में खुलासा किया था। जिस कोयला घोटाले को लेकर पूरे देश में कोहराम मचा, उसका सर्वप्रथम खुलासा ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ ने 21 से 27 नवंबर 2011 के अंक में ‘‘कोल ब्लॉक आवंटन में लाखों करोड़ का घोटाला’’ के शीर्षक से किया था। देश के सबसे बड़े कोल ब्लॉक आवंटन घोटाले के बारे में यह समझना जरूरी है कि 10 अगस्त 1993 से 21 अगस्त 2010 तक 310 कंपनियों को 214 कोल ब्लॉकों का आवंटन किया गया था, जिसमें से 23 जून 2011 को 24 कंपनियों का कोल ब्लॉकों आवंटन केन्द्र सरकार ने निरस्त कर दिया था। शेष 286 कंपनियों को कुल 194 कोल ब्लॉकों को जिसमें 100 सरकारी और 186 निजी कंपनियों को आवंटन हुआ, जो लगभग मुफ्त में ही दिया गया था। कुल आवंटित कोयला भंडार 43548.147 मिलियन टन था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द किए गए 204 कोल ब्लॉकों में से केन्द्र सरकार ने अभी तक सिर्फ 84 कोल ब्लॉकों का आवंटन किया है, जिसमें से 53 सरकारी कंपनियों को आवंटन तथा 31 निजी कंपनियों को ई-नीलामी के जरिए दिया गया था। कोयला मंत्रालय के आंकड़े के अनुसार अभी तक निजी एवं सरकारी कंपनियों को आवंटित कोल ब्लॉकों से सरकार को 3.94 लाख करोड़ रुपए की संभावित आय हुई है, शेष बचे 120 कोल ब्लॉकों से लाखों करोड़ की आय होगी। लेकिन 20 फरवरी 2018 को कैबिनेट की बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में देशी कंपनियों के लिए व्यावसायिक कोयला माइनिंग खोलने की मंजूरी दी गई है, साथ ही विदेशी कम्पनियों को भी भारत में कोयला खदान का संचालन करने और कोयले को बेचने की छूट दी गई है। अब तक कोयला बेचने का अधिकार केवल कोल इंडिया को ही था क्योंकि पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी ने कोयला खदान का राष्ट्रीयकरण किया था। उसे मोदी सरकार ने पलट कर निजीकरण की अनुमति दी, जिसे लेकर कोयला कर्मचारी व सक्रिय श्रमिक संगठन इसका पुरजोर विरोध कर रहे थे जिसमें बीएमएस ,एटक, सीटू, व एचएमएस ने कोल इंडिया में 16 अप्रैल 2018 को एक दिवसीय हड़ताल की घोषणा की तथा मोदी सरकार से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग की थी। उसके बाद श्रमिक संगठनों की 16 अप्रैल 2018 की प्रस्तावित हड़ताल आखिरकार स्थगित हो गई। दिल्ली में हुई बैठक में संयुक्त कमेटी बनाकर इस मामले में समीक्षा करने का निर्णय लिया गया। कोयला सचिव के साथ हुई बैठक के बाद चारों यूनियन में से दो यूनियन ने बीएमएस एवं एचएमएस ने हड़ताल स्थगन पर सहमति पत्र में हस्ताक्षर किया। सीटू एवं एआईटीयूसी ने सहमति पर हस्ताक्षर नहीं किया। कोल इंडिया लिमिटेड विश्व की सबसे बड़ी कोयला उत्पादन कंपनी है। देश में कुल 80 फीसदी कोयला उत्पादन कोल इंडिया लिमिटेड हर वर्ष करती है। भारत के कोल ब्लॉक को देश एवं विदेश के उद्योगपतियों के हवाले होने से कोल इंडिया और उसकी सहयोगी 7 कंपनियों की चली आ रही मोनोपॉली खत्म हो जाएगी। कोल इंडिया लिमिटेड खुद विदेश में प्रतिस्पर्धात्मक बोली प्रक्रिया के माध्यम से मोजांबिक के टेटे प्रांत के माओटाइज इलाके में दो कोल ब्लॉक का लाइसेंस हासिल कर चुकी है। जहां हजारों करोड़ खर्च करने के बाद कोयला नहीं मिला और यहां सीआईएल के मोजांबिक में कार्यालय है अब उसे बंद करने जा रहा है। उसके बाद भी कोयला मंत्रालय विदेशी कोयला में ज्यादा दिलचस्पी ले रहा है, 2015-16 एवं 2016-17 को सीआईएल के अधिकारी एवं कोयला मंत्रालय के अधिकारी लगातार विदेश का भ्रमण कर कोयला खदान तलाश कर रहे हैं। इन्होंने आस्ट्रेलिया, अमरीका, दक्षिण अफ्रीका, इंडोनेशिया आदि देश में भी रूपए 60,000 मिलियन निवेश करने की योजना बनाई है। क्या यह देशहित में न्यायसंगत है ? अगर सरकार इसी रूपये को भारत के बचे हुए 120 कोल ब्लॉकों में खर्च करती तो विदेशों के बजाए भारत में कई गुना अधिक कोयला खनन होता। आखिर कोयला मंत्रालय विदेश के कोयला खदान में ज्यादा दिलचस्पी क्यों ले रही है इसके पीछे क्या कारण हैं ? देश का धन विदेश में क्यों खर्च किया जा रहा है ? इधर विदेशी कंपनियों को भारत का कोयला सोने के अंडे देने वाला दिख रहा है। उनकी ललचाई नजरों पर सरकार फिदा जान पड़ती है। लेकिन भारत की जितनी जनसंख्या है इसे देखते हुए विदेशों को कोयला निर्यात कर पाना संभव नहीं है। भारत की कोख से जो कोयला निकलता है, उस पर प्रत्येक नागरिक का अधिकार है। मोदी सरकार भारत के कोल ब्लॉक को देश एवं विदेश के बड़े कंपनियों के हवाले कर रही है, इसे जानकार लोग बड़े घोटाले के रूप में देख रहे हैं। ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ प्रधानमंत्री एवं कोयला मंत्री से आग्रह करता है कि कॉमर्शियल माइनिंग के फैसले को जनहित में वापस लें। ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ को अब तक मिले दस्तावेज के अनुसार देशहित एवं जनहित में यह खोजी रिपोर्ट 9 पृष्ठों में प्रकाशित किया। इस खुलासे के बाद कोयला जगत में हड़कंप मच गया था ।
‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ ने 29 से 05 मई 2019 के अंक में ‘5 राज्यों के 8 कोल ब्लॉकों को अदानी के हवाले में बड़ा खेल, 1 लाख 40 हजार करोड़ से भी अधिक का घोटाला’ ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ का देशहित में एक और खुलासा, देश के सबसे बड़े कोयला घोटाले में केन्द्र और 5 राज्य सरकारों के हाथ काले के शीर्षक से 8 पृष्ठों में खुलासा किया था। जिसमें केन्द्र और भाजपा शासित राज्य सरकारें एक निजी कंपनी को लाभ पहुंचाने के लिए अद्भुत स्कीम के तहत सरकारी कंपनियों को आवंटित कोल ब्लॉकों को एमडीओ के जरिए एक पिछला दरवाजा भी खोल दिया जिसका भरपूर फायदा गौतम अदानी की कंपनी उठा रही है। एमडीओ यानि (माइन डेवलपर और ऑपरेटर) के तौर पर कोयला खनन, संचालन, परिवहन आदि का काम करेगी। अदानी इंटरप्राइजेस को एक-एक कर विभिन्न राज्यों जैसे राजस्थान, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात, उड़ीसा राज्यों में 8 कोल ब्लॉकों को एमडीओ के जरिए आवंटित किए गए हैं। जिसमें छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित 7 बड़े कोल ब्लॉकों तथा उड़ीसा राज्य में स्थित 1 कोल ब्लॉक सहित 5 राज्यों के 8 कोल ब्लॉकों का कुल कोयला भंडार 3,597 मिलियन टन अदानी इंटरप्राइजेस को एमडीओ के जरिए मिला है, जिनमें से राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड परसा पूर्व केते बासन का कोयला खनन अदानी कम्पनी कर रही है, उस एक ही समान गुणवत्ता के कोयले को एसईसीएल से 400 से 500 रूपये अधिक दर पर आरआरवीयूएनएल को बेच रही है। यदि इस अंतर की राशि को कुल 3,597 मिलियन टन कोयला भंडार सेे जोड़ा जाए तो लगभग 1 लाख 43 हजार करोड़ रुपए से भी अधिक का फायदा होगा। इसके अलावा 719 मिलियन का रिजेेक्ट कोयला निकलेगा, जानकार लोगों का कहना है कि रिजेक्ट कोयला के नाम से ही हजारों करोड़ का घोटाला होगा। वहीं सरकारी कंपनियों से कोल ब्लॉक का आवंटन 100 रूपये प्रति टन की दर पर रायल्टी के रूप में ली जाती है। वहीं निजी कंपनियों को भी ई-नीलामी के जरिए आवंटन किया गया था उसमें से फरवरी 2015 में हिंडालको इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने छत्तीसगढ़ के गारे पेलमा कोल ब्लॉक को 3,529 रु. प्रति टन एवं बालको ने चोटिया कोल ब्लॉक को 3,049 रु प्रति टन की बोली लगाई थी। यह केवल रायल्टी है, इसके अलावा कोयला खनन और परिवहन आदि का खर्च कंपनी को अलग से करना पड़ता है। इन 8 कोल ब्लॉकों का कुल कोयला भंडार 3,597 मिलियन टन है। अगर ई-नीलामी के जरिए कोल ब्लॉकों को अदानी कंपनी ने लिया होता तो 10 से 11 लाख करोड़ रुपए का राजस्व सरकार को मिलता। अदानी के लिए एक फार्मूला निकालकर कोयले की बड़ी लूट का खेल खेला गया है। यह तरीका ज्वाइंट वेंचर कंपनी बनाकर कोयला खनन करने एवं परिवहन के नाम पर सरकार को होने वाली मुनाफा को वंचित करना यानि जो धन सरकारी खजाने में आना था, वह निजी कंपनी के खाते में जा रहा है। मालूम हो कि 4 राज्यों में जब भाजपा की सरकारें थीं, तब यह एमडीओ हुआ था। अब छत्तीसगढ़ एवं राजस्थान में कांग्रेस की सरकारें हैं। अब देखना यह है कि इस बड़े घोटाले पर ये दोनों राज्य सरकारें क्या कार्रवाई करती है? देश में पहली बार राज्य सरकारों को आवंटित कोल ब्लॉकों को अदानी की निजी कंपनी को दिए जाने पर इसे देश का सबसे बड़ा कोयला घोटाला के रूप मेंं देखा जा रहा है। इन 5 राज्यों के मुख्यमंत्री और कोयला मंत्री सहित प्रधानमंत्री देश के सबसे बड़े कोयला घोटाले के छींटे से क्या बच पाएंगे? ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने विभिन्न स्रोतों और सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जनहित एवं देशहित में एक और बड़ा खुलासा 8 पृष्ठों में किया। इस खुलासा के बाद अदानी कंपनी को एमडीओ के जरिए मिले कोल ब्लॉकों का भारी विरोध हो रहा है।
‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ भ्रष्ट अफसरों, राजनेताओं, ठेकेदारों के खिलाफ लगातार घोटालों को उजागर करने की मुहिम चला रहा है। इस भ्रष्ट व नापाक गठजोड़ को छिन्न-भिन्न करने और राष्ट्रीय परिसंपत्तियों को देशहित में सुरक्षित रखने का जो बीड़ा ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ ने उठाया है, और देशहित व जनहित में अरबों-खरबों रुपये के बड़े-बड़े घोटाले का लगातार पर्दाफाश होने से देश के कुछ बड़े उद्योगपतियों, भ्रष्ट अधिकारियों व कई राजनेताओं तथा कोल माफियाओं में भारी हड़कंप मचा हुआ है।