‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने ‘कोल ब्लॉक आवंटन में लाखों करोड़ का घोटाला’ के शीर्षक से 21 नवंबर 2011 के अंक में 9 पृष्ठों में किया था पहला बड़ा खुलासा
सुप्रीम कोर्ट से रद्द 204 कोल ब्लॉकों में से, 31 निजी 53 सरकारी कंपनियों को आवंटित कुल 84 में से 18 कोल ब्लॉकों में उत्पादन शुरु
भागवत जायसवाल, बिलासपुर (छ.ग.)
‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने 11 से 17 जून 2018 के अंक में ‘कोल ब्लॉकों की 31 ई–नीलामी और 53 आवंटन से देश को 3.94 लाख करोड़ का फायदा, फिर निजीकरण क्यों?’ के शीर्षक से 9 पृष्ठों में खुलासा किया था। जिस कोयला घोटाले को लेकर पूरे देश में कोहराम मचा, उसका सर्वप्रथम खुलासा ‘‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’’ ने 21 से 27 नवंबर 2011 के अंक में ‘‘कोल ब्लॉक आवंटन में लाखों करोड़ का घोटाला’’ के शीर्षक से किया था। देश के सबसे बड़े कोल ब्लॉक आवंटन घोटाले के बारे में यह समझना जरूरी है कि 10 अगस्त 1993 से 21 अगस्त 2010 तक 310 कंपनियों को 214 कोल ब्लॉकों का आवंटन किया गया था, जिसमें से 23 जून 2011 को 24 कंपनियों का कोल ब्लॉकों आवंटन केन्द्र सरकार ने निरस्त कर दिया था। शेष 286 कंपनियों को कुल 194 कोल ब्लॉकों को जिसमें 100 सरकारी और 186 निजी कंपनियों को आवंटन हुआ, जो लगभग मुफ्त में ही दिया गया था। कुल आवंटित कोयला भंडार 43548.147 मिलियन टन था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द किए गए 204 कोल ब्लॉकों में से केन्द्र सरकार ने अभी तक सिर्फ 84 कोल ब्लॉकों का आवंटन किया है, जिसमें से 53 सरकारी कंपनियों को आवंटन तथा 31 निजी कंपनियों को ई-नीलामी के जरिए दिया गया था। कोयला मंत्रालय के आंकड़े के अनुसार अभी तक निजी एवं सरकारी कंपनियों को आवंटित कोल ब्लॉकों से सरकार को 3.94 लाख करोड़ रूपए की संभावित आय हुई है, शेष बचे 120 कोल ब्लॉकों से लाखों करोड़ की आय होगी। लेकिन 20 फरवरी 2018 को कैबिनेट की बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में देशी कंपनियों के लिए व्यावसायिक कोयला माइनिंग खोलने की मंजूरी दी गई है, साथ ही विदेशी कम्पनियों को भी भारत में कोयला खदान का संचालन करने और कोयले को बेचने की छूट दी गई है। अब तक कोयला बेचने का अधिकार केवल कोल इंडिया को ही था क्योंकि पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी ने कोयला खदान का राष्ट्रीयकरण किया था। उसे मोदी सरकार ने पलट कर निजीकरण की अनुमति दी, जिसे लेकर कोयला कर्मचारी व सक्रिय श्रमिक संगठन इसका पुरजोर विरोध कर रहे थे जिसमें बीएमएस ,एटक, सीटू, व एचएमएस ने कोल इंडिया में 16 अप्रैल 2018 को एक दिवसीय हड़ताल की घोषणा की तथा मोदी सरकार से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग की थी। उसके बाद श्रमिक संगठनों की 16 अप्रैल 2018 की प्रस्तावित हड़ताल आखिरकार स्थगित हो गई। दिल्ली में हुई बैठक में संयुक्त कमेटी बनाकर इस मामले में समीक्षा करने का निर्णय लिया गया। कोयला सचिव के साथ हुई बैठक के बाद चारों यूनियन में से दो यूनियन ने बीएमएस एवं एचएमएस ने हड़ताल स्थगन पर सहमति पत्र में हस्ताक्षर किया। सीटू एवं एआईटीयूसी ने सहमति पर हस्ताक्षर नहीं किया। कोल इंडिया लिमिटेड विश्व की सबसे बड़ी कोयला उत्पादन कंपनी है। देश में कुल 80 फीसदी कोयला उत्पादन कोल इंडिया लिमिटेड हर वर्ष करती है। भारत के कोल ब्लॉक को देश एवं विदेश के उद्योगपतियों के हवाले होने से कोल इंडिया और उसकी सहयोगी 7 कंपनियों की चली आ रही मोनोपॉली खत्म हो जाएगी। कोल इंडिया लिमिटेड खुद विदेश में प्रतिस्पर्धात्मक बोली प्रक्रिया के माध्यम से मोजांबिक के टेटे प्रांत के माओटाइज इलाके में दो कोल ब्लॉक का लाइसेंस हासिल कर चुकी है। जहां हजारों करोड़ खर्च करने के बाद कोयला नहीं मिला और यहां सीआईएल के मोजांबिक में कार्यालय है अब उसे बंद करने जा रहा है। उसके बाद भी कोयला मंत्रालय विदेशी कोयला में ज्यादा दिलचस्पी ले रहा है, 2015-16 एवं 2016-17 को सीआईएल के अधिकारी एवं कोयला मंत्रालय के अधिकारी लगातार विदेश का भ्रमण कर कोयला खदान तलाश कर रहे हैं। इन्होंने आस्ट्रेलिया, अमरीका, दक्षिण अफ्रीका, इंडोनेशिया आदि देश में भी रूपए 60,000 मिलियन निवेश करने की योजना बनाई है। क्या यह देशहित में न्यायसंगत है ? अगर सरकार इसी रूपये को भारत के बचे हुए 120 कोल ब्लॉकों में खर्च करती तो विदेशों के बजाए भारत में कई गुना अधिक कोयला खनन होता। आखिर कोयला मंत्रालय विदेश के कोयला खदान में ज्यादा दिलचस्पी क्यों ले रही है इसके पीछे क्या कारण हैं ? देश का धन विदेश में क्यों खर्च किया जा रहा है ? इधर विदेशी कंपनियों को भारत का कोयला सोने के अंडे देने वाला दिख रहा है। उनकी ललचाई नजरों पर सरकार फिदा जान पड़ती है। लेकिन भारत की जितनी जनसंख्या है इसे देखते हुए विदेशों को कोयला निर्यात कर पाना संभव नहीं है। भारत की कोख से जो कोयला निकलता है, उस पर प्रत्येक नागरिक का अधिकार है। मोदी सरकार भारत के कोल ब्लॉक को देश एवं विदेश के बड़े कंपनियों के हवाले कर रही है, इसे जानकार लोग बड़े घोटाले के रूप में देख रहे हैं। ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ प्रधानमंत्री एवं कोयला मंत्री से आग्रह करता है कि कॉमर्शियल माइनिंग के फैसले को जनहित में वापस लें। ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ को अब तक मिले दस्तावेज के अनुसार देशहित एवं जनहित में यह खोजी रिपोर्ट 9 पृष्ठों में प्रकाशित किया। इस खुलासे के बाद कोयला जगत में हड़कंप मच गया था ।