नए ठेकेदारों को कम्प्यूटर ने नही पहचाना, पुराने को ही मिला शराब का ठेका
भागवत जायसवाल, बिलासपुर (छ.ग.)
‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने 21 से 27 मार्च 28 से 3 अप्रैल 2005 के अंक में ‘शराब ठेके की पारदर्शिता पर सवालियां निशान?’ नए ठेकेदारों को कम्प्यूटर ने नही पहचाना, पुराने को ही मिला शराब का ठेका के शीर्षक से खुलासा किया था । जिसमें बताया गया कि शराब छत्तीसगढ़ राज्य की कमाई का मुख्य जरिया है , हर साल सरकार आबकारी लक्ष्य बढ़ाती हैै। छत्तीसगढ़ के 16 जिले में 193 देशी शराब एवं विदेशी शराब समूह हैं । जिसका ठेका कम्प्यूटर द्वारा लाटरी पद्धति से हुई । लगभग 3 लाख आवेदन जमा हुये, इससे सरकार को लगभग 74 करोड़ रूपये का फार्म जमा करने वाले से शुद्घ मुनाफा मिला , जबकि शासन को इस वर्ष लगभग 410 करोड़ रूपये की राजस्व प्राप्ति होगी, लेकिन परिणामों से न केवल नए ठेकेदार, बल्कि आम लोगों के साथ ही विभाग के अधिकारी भी हैरत में है। पूरे मामले में दिलचस्प पहलू यह है कि अब तक प्रदेश में जहां भी ठेके हुए हैं कम्प्यूटर ने पुराने ठेकेदारों के नामों की लाटरी निकाली है। एक भी ऐसा स्थान नही है जहां कम्प्यूटर नए ठेकेदार पर मेहरबान हो? राज्य के विभिन्न जिलों में प्राप्त परिणाम और उसके बाद उठे प्रश्र स्वाभाविक तौर पर पारदर्शिता के आड़ में छिपे तथ्य को भी उजागर करता है। इसे लेकर आज भी सवालिया निशान कायम है? इस प्रक्रिया में गंभीर बात यह है कि अधिकतर दुकानें बेनामी हैं। जिनकी हैसियत इतने बड़े ठेके लेने का है ही नहीं, वे आज करोड़ों की दुकान के मालिक कैसे बने? बड़े-बड़े शराब ठेकेदारों ने दुकान अपने नाम से नही ली है बल्कि अपने नौकरों के नाम पर लिया है जिससे करोड़ों की आयकर की भी चोरी की जा रही है। अगर आवेदन पत्र की गंभीरता पूर्वक जांच की जाए तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। क्योंकि जिन्होंने आवेदन पत्र दिए हैं उनकी हैसियत इसके लायक है या नही? अधिकारिक तौर पर पता चलता है कि एक व्यक्ति के नाम से कई आवेदन पत्र जमा किए गए और उसकी उम्र अलग-अलग बताई गई हैै अगर इसकी जांच की जाए तो सत्यता उजागर हो जाएगा। मालूम हो कि पिछले वर्ष से शराब ठेका में पारदर्शिता लाने के लिए कम्प्यूटर पद्धति अपनाई गई हैै। इस खुलासे के बाद तहलका मचा और शराब ठेकेदार इस मामले को लेकर न्यायालय में भी गए तथा अपने-अपने स्तर पर कार्रवाई कराने में जुट गए ।