साल बोरर के नाम पर किया गया षडय़ंत्र सफल
भागवत जायसवाल, बिलासपुर (म.प्र.)
‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने 23 से 29 अगस्त 1999 के अंक में ‘4 अरब के साल वृक्ष काटे गये’ साल बोरर के नाम पर किया गया षडय़ंत्र सफल, के शीर्षक से उजागर किया था । जिसमें मध्यप्रदेश के जंगलों में साल बोरर के नाम पर प्रदेश में 4000 हजार करोड़ रूपये से ज्यादा के साल वृक्ष काटे गये। लगभग 2000 करोड़ रूपये का साल वृक्ष और काटा जाना है। इसके बाद भी विदेशों से साल की लकड़ी और साल धूप आयात की जा रही है। इस तरह साल बोरर के आड़ पर पहले से बुना गया षडय़ंत्र पूरी तरह सफल हो रहा है। प्रति कीड़ा पकडऩे के लिए 80 पैसे से 1 रूपया तक खर्च किया गया है। सूत्र के अनुसार पिछले तीन वर्षों में साल बोरर कीड़ों को पकडऩे के लिए सरकार द्वारा 4 करोड़ 75 लाख 70 हजार रूपये खर्च किये गये हैं। आंकड़ों के अनुसार इस राशि से 5 करोड़ 95 लाख 16 हजार कीड़े पकड़े गये, साल बोरर के नाम पर प्रदेश में 4000 करोड़ रूपये के साल वृक्ष काटे जा चुके हैं और करोड़ों की कीमत के साल वृक्ष को और काटा जाना है। कुछ वर्ष पहले. लकड़ी माफियाओं का वह षडयंत्र अंतत: सफल हो ही गया। सबसे महत्वपर्ण बात यह है कि अब लकड़ी ठीक नहीं होने एवं घरेलू मांग की पूर्ति करने के नाम पर अफसरों ने विदेशों से साल की लकड़ी मंगवाना शुरु कर दिया है और साल धूप भी आयात किया जा रहा है। इधर साल धूप निकाले जाने पर म.प्र. में प्रतिबंध लगाया गया। अब तक करीब 4 हजार करोड़ की लकड़ी काटी जा चुकी है। सूत्र बताते हैं कि करीब 2 हजार करोड़ कीमत की साल लकडी को और काटा जाना है। इस षडय़ंत्र के पीछे, यदि लकड़ी माफियाओं ने बड़ी मात्रा में साल लकड़ी की उपलब्धता के सपने देखे थे तो प्रदेश के वन अफसरों ने लकड़ी की गुणवत्ता निम्नस्तर होने तथा घरेलू मांग साल धूप पर आयात की सोची ,दोनो वर्ग को अपनी-अपनी सोच पर भारी सफलता मिली। साल बोरर का कीड़ा वन विभाग के लिए सौगात सा बन गया वन विभाग की चांदी इससे पता चल जाती है कि 4 अरब से भी ज्यादा मूल्य के वृक्ष के एवज में वन विभाग को लगभग 60 करोड़ की आयात हो पाई है। 1996-97 में साल बोरर का प्रकोप कम था, शहडोल, मण्डला, कवर्धा, बालाघाट, डिंडोरी, राजनांदगांव, बिलासपुर, सरगुजा आदि के जंगल में साल बोरर की वजह से 18.658 वृक्ष को काटना पड़ा। 1997-98 में प्रकोप बढ़ता चला तो 7 लाख 65 हजार से भी ज्यादा वृक्ष काटे गये। इसी तरह 1998-99 में साल बोरर के कारण 5 लाख से भी अधिक वृक्ष काटे गए। जिसका खुलासा ‘छत्तीसगढ़ रिपोर्टर’ ने लगातार किया था ।
साल बोरर के बड़े पैमाने पर कटाई के खिलाफ जबलपुर उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की गई। परिणामस्वरूप, पर्यावरण, वनमंत्रालय (MoE.F), भारत सरकार ने दिसंबर 1997 में एक समिति का गठन किया। जिसमें केंद्र और राज्य के वरिष्ठ वन अधिकारी और वन कीट विशेषज्ञ शामिल थे और भारतीय परिषद के नेतृत्व में अनुसंधान संगठन थे। इसके बाद टास्क फोर्स ने जनवरी, 1998 में अपनी अंतरिम रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें 14 सदस्यीय समिति के बहुमत ने श्रेणी I से V में आने वाले सभी पेड़ों को काटने और हटाने के पक्ष में सिफारिश की। इसके बाद 23 फरवरी 1998 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सभी कटाई कार्यों पर रोक लगा दी। सुनवाई के बाद, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने प्रभावित पेड़ों के श्रेणीवार अंकन का आदेश दिया और निदेशक, उष्णकटिबंधीय वन अनुसंधान संस्थान, जबलपुर के नेतृत्व में एक समिति गठित की। तब सुप्रीम कोर्ट ने केवल II, VI और I श्रेणी के प्रभावित पेड़ों की कटाई की अनुमति दी थी ।