छत्तीसगढ़ रिपोर्टर
नई दिल्ली 06 नवंबर 2022। भारतीय सेना मेक-2 के तहत 43 प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही है। रक्षा मंत्रालय ने बताया कि इनमें से 22 इस समय प्रोटोटाइप विकास के चरण में हैं। इन प्रोजेक्ट्स का 66 प्रतिशत यानी 27 हजार करोड़ में से 18 हजार करोड़ रुपये खर्च हो रहा है। मेक-2 के 17 प्रोजेक्ट खुद उद्योगों से मिले प्रस्तावों पर शुरू हुए। इस वजह से भारतीय रक्षा उद्योगों का उत्साह बढ़ा है, वे मेक-प्रोसिजर में शामिल होने में पूरा आत्मविश्वास दर्शा रहे हैं। मेक-2 के जरिए उन रक्षा तकनीकों पर काम हो रहा है, जिन्हें बेहद उच्च स्तरीय माना जाता है। अभी यह भारत में उपलब्ध नहीं हंै। इन्हें विभिन्न हथियार प्रणालियों, गोला-बारूद व प्रशिक्षण प्रणालियों में उपयोग किया जा सकता है।
- ड्रोन किलर सिस्टम : यह लो-रेडियो क्रॉस सेक्शन या मानव रहित विमानों (यूएएस) को मार गिराने में काम आएगा। यह ‘हार्ड किल’ हथियारों की श्रेणी में आते हैं, जो सामने से हमला कर रहे हथियार को विस्फोट या अन्य प्रकार से खत्म करते हैं। इनका विकास सभी तरह के वातावरण, दिन व रात में काम करने के लिए हो रहा है।
- मीडियम रेंज प्रिसिशन किल सिस्टम : हवा में करीब 2 घंटे टिके रहने वाली इस प्रणाली को 40 किमी की रेंज में किसी भी लक्ष्य पर कब्जा करने या उसे एंगेज करने में इस्तेमाल किया जा सकता है।
- हाई-फ्रीक्वेंसी मैन पैक्ड सॉफ्टवेयर डिफाइंड रेडियो : यह रेडियो सेट तकनीक जीआईएस का उपयोग कर मैप आधारित ट्रैकिंग और ब्लू फोर्स ट्रैकिंग (मित्र सैन्य दस्ते की लोकेशन) देने में मदद करती है। सेना में नीला रंग आमतौर पर मित्र सैन्य दस्ते को दिया जाता है और लाल रंग दुश्मन को। यह नये रेडियो सेट मौजूदा हाई फ्रीक्वेंसी यानी एचएफ रेडियो सेट की जगह ले सकेंगे। एचएफ में डाटा जुटाने की क्षमता सीमित है, आधुनिक समय में अनुपयोगी माना जाने लगा है।
- 155एमएम टर्मिनली गाइडेड म्यूनिशन : 155एमएम टीजीएम के विकास के लिए 6 विकास एजेंसियों को आदेश दिए गए हैं। सेना इनके 2 हजार राउंड जुटाना चाहती है। इनका उपयोग बड़े लक्ष्यों को भेदने में होगा क्योंकि यह सटीक और घातक माने जाते हैं। इनके जरिए पूरे किए मिशन में स्वयं का नुकसान कम से कम होता है।
इन्फेंट्री ट्रेनिंग वेपन सिम्युलेटर
इसका उपयोग युवा सैनिकों की विभिन्न किस्म के हथियारों से निशाना लगाने की क्षमता सुधारने में होगा। उन्हें इस सिम्युलेटर से यूजर फ्रेंडली ग्राफिक्स के जरिए युद्ध स्थल के परिदृश्यों वाले कृत्रिम हालात दिए जाएंगे। आईटीडब्ल्यूएस को आधुनिक प्रशिक्षण सहयोगी की तरह देखा जाता है। यह सैनिकों के प्रशिक्षण में गोलियों व हथियारों के खर्च को सीमित करेगा, हादसों की आशंका भी घटेगी। इसमें एक साथ 10 लोगों को प्रशिक्षण दिया जा सकता है।