छत्तीसगढ़ रिपोर्टर
नई दिल्ली 15 नवंबर 2021। तमाम जागरूकता अभियान और कड़े कानूनी प्रावधानों के बावजूद बच्चों के खिलाफ साइबर अपराध के मामले बढ़े हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक, 2019 के मुकाबले 2020 में बच्चों के खिलाफ साइबर अपराध के मामलों में 400 फीसदी की वृद्धि हुई है। एनसीआरबी की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, 2020 में बच्चों के खिलाफ ऑनलाइन अपराधों के कुल 842 मामले सामने आए, जिनमें से 738 मामले बच्चों को यौन कृत्यों में चित्रित करने वाली सामग्री को प्रकाशित करने या प्रसारित करने से संबंधित थे। यूनिसेफ की रिपोर्ट (2020) के मुताबिक दक्षिण एशिया में 13 फीसदी बच्चे और 25 साल से कम उम्र वाले लोगों ने घर पर इंटरनेट का इस्तेमाल किया। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कम और मध्यम आय वाले देशों में 14 फीसदी स्कूल जाने वाले बच्चे (3-17) घर पर इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं। हालांकि, यह आंकड़ा उपलब्ध नहीं है कि कितने फीसदी बच्चे पढ़ाई या अन्य कार्यों के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं।
पांच राज्यों में सबसे अधिक मामले
बच्चों के खिलाफ साइबर अपराधों से संबंधित शीर्ष 5 राज्यों में उत्तर प्रदेश (170), कर्नाटक (144), महाराष्ट्र (137), केरल (107) और ओडिशा (71) शामिल हैं। एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि 2019 में बच्चों के खिलाफ साइबर अपराधों के 164 मामले दर्ज किए गए थे, जबकि 2018 में बच्चों के खिलाफ साइबर अपराधों के 117 मामले सामने आए थे। इससे पहले 2017 में ऐसे 79 मामले दर्ज किए गए थे।
इंटरनेट पर बच्चे कई जोखिमों का कर रहे सामना
एक गैर सरकारी संगठन ‘क्राई-चाइल्ड राइट्स एंड यू’ की मुख्य कार्यकारी अधिकारी पूजा मारवाह के अनुसार शिक्षा प्राप्त करने और अन्य संचार उद्देश्यों तक पहुंचने के लिए इंटरनेट पर अधिक समय बिताने के दौरान बच्चे भी कई प्रकार के जोखिमों का सामना कर रहे हैं। उनका कहना है कि पढ़ाई के लिए इंटरनेट पर अधिक समय बिताने के कारण बच्चे विशेष रूप से ऑनलाइन यौन शोषण, अश्लील संदेशों का आदान-प्रदान , पोर्नोग्राफी के संपर्क में आना, यौन शोषण सामग्री, साइबर-धमकी तथा ऑनलाइन उत्पीड़न जैसे कई अन्य गोपनीयता-संबंधी जोखिमों का सामना कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हालांकि कोविड-19 महामारी की रोकथाम के लिए किए गए उपायों का बच्चों के साथ ऑनलाइन दुर्व्यवहार और शोषण संबंधी कितना प्रभाव पड़ा है, यह पता लगाने के लिए बहुत कम प्रमाण हैं, स्कूलों को बंद करने और इंटरनेट पर बच्चों द्वारा अधिक समय बिताए जाने के कारण उनके ऊपर इसके गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकते हैं।