छत्तीसगढ़ रिपोर्टर
नई दिल्ली 23 मार्च 2024। देश के विभिन्न हिस्सों में फैले नक्सलवाद पर अब आखिरी प्रहार करने की तैयारी हो रही है। देश का सबसे बड़ा केंद्रीय सुरक्षा बल ‘सीआरपीएफ’ और संबंधित राज्य की पुलिस फोर्स, अब इसी राह पर आगे बढ़ रहे हैं। नक्सलवाद के खिलाफ सुरक्षा बलों की इस लड़ाई में सीआरपीएफ एवं इसकी विशेष प्रशिक्षित इकाई ‘कोबरा’ का अहम रोल है। सीआरपीएफ के महानिदेशक अनीश दयाल सिंह ने बल के 85वें ‘परेड डे’ पर साफ कर दिया कि देश में नक्सलवाद, अब ज्यादा समय तक नहीं टिकेगा। धुर नक्सल प्रभावित इलाकों में नक्सलवाद पर आखिरी प्रहार करने के उद्देश्य से 31 नए फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस स्थापित किए गए हैं। इनमें से एक कैंप कुख्यात नक्सली कमांडर हिडमा के गांव पुवर्ती में भी स्थापित किया गया है।
2620 वीरता पदकों से अलंकृत
महानिदेशक अनीश दयाल सिंह ने कहा, बल की अधिकांश बटालियनें जम्मू-कश्मीर, पूर्वोत्तर राज्यों एवं नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में तैनात हैं। वहां पर बल के प्रयासों के फलस्वरूप आतंकवाद और नक्सलवाद की घटनाओं में भारी कमी आई है। इसके फलस्वरूप इन राज्यों में शांति एवं विकास का कार्य तेजी से आगे बढ़ रहा है। प्रयागराज में इसी सप्ताह आयोजित 85वें परेड डे पर उन्होंने कहा, सीआरपीएफ को अब तक कुल 2620 वीरता पदकों से अलंकृत किया गया है, जिनमे एक अशोक चक्र, एक वीर चक्र, 14 कीर्ति चक्र एवं 41 शौर्य चक्र शामिल हैं।
विकास की एक राह प्रशस्त होती है
नक्सल प्रभावित इलाकों में स्थापित 31 नए फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस का फायदा, केवल सुरक्षा बलों को ही नहीं मिलता, बल्कि इसकी मदद से उस इलाके में विकास की एक राह प्रशस्त होती है। सड़क, पुल, मोबाइल टावर और विकास के दूसरे कामों में तेजी आ जाती है। वहां रह रहे ग्रामीणों को यह भरोसा होता है कि अब सुरक्षा बलों ने इलाके की कमान संभाल ली है। उनके बच्चों को स्कूलों में जाने का अवसर मिलेगा। अगर उनके खेतों में नकदी फसलों की पैदावार होती है, तो उसे मंडी तक पहुंचाने की सुविधा मिल जाती है। जब तक वहां पर राज्य सरकार का स्वास्थ्य महकमा अपना केंद्र स्थापित नहीं करता, तब तक ग्रामीण इलाकों में लोगों को प्राथमिक चिकित्सा सुविधा बल के जवानों द्वारा मुहैया कराई जाती है। कई बार तो गहरे जंगलों के बीच से सीआरपीएफ जवान, बीमार या घायल हुए ग्रामीणों को अपने कंधों पर स्वास्थ्य केंद्र या एंबुलेंस तक पहुंचाते हैं।
चरमपंथ प्रभावित जिलों की संख्या 58
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इसी सप्ताह वामपंथी चरमपंथ (एलडब्ल्यूई) से प्रभावित 10 राज्यों की व्यापक समीक्षा की है। बैठक में विशेष वित्त पोषण योजना के तहत आने वाले जिलों के सुरक्षा संबंधी व्यय (एसआरई) को लेकर चर्चा की गई। गृह मंत्रालय के मुताबिक, अब देश में माओवादी चरमपंथ प्रभावित जिलों की संख्या 72 से घटकर 58 रह गई है। केंद्र व राज्यों की तरफ से सुरक्षा और विकास से संबंधित उठाए जा रहे कदमों की वजह से वामपंथी हिंसा में कमी आई है। वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित जिलों में राष्ट्रीय नीति व कार्य योजना के अंतर्गत एसआरई योजना के तहत विभिन्न अनुदान प्रदान किए जाते हैं। समीक्षा में पता चला है कि वामपंथी चरमपंथ प्रभावित जिलों में सबसे अधिक संख्या 15 जिले छत्तीसगढ़ में हैं। इसके बाद ओडिशा में सात, झारखंड में पांच, मध्यप्रदेश में तीन और केरल, तेलंगाना व महाराष्ट्र दो-दो, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश एक-एक जिला प्रभावित है। इस श्रेणी में उन जिलों को रखा जाता है, जहां वामपंथी हिंसा लगातार बनी हुई है। हिंसा से सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों की संख्या अब 12 रह गई है। 2021 में यह संख्या 25 थी। इस श्रेणी के 12 जिलों में से छत्तीसगढ़ में सात, ओडिशा में दो, झारखंड, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में एक-एक हैं।