छत्तीसगढ़ रिपोर्टर
नई दिल्ली 07 अप्रैल 2022। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू होने के बाद से ही अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में भारत के रुख की चर्चा हो रही है। जहां एक तरफ रूस ने स्वतंत्र अंतरराष्ट्रीय नीति के लिए भारत की तारीफ की है, तो वहीं अमेरिका समेत यूरोपीय देशों ने भारत और रूस के बीच रिश्तों की समीक्षा की मांग की है। हालांकि, इस बीच अब तक स्पष्ट नहीं हो पाया है कि आखिर युद्ध के बीच रूस से व्यापार में भारत की निर्भरता कितनी बढ़ी या कम हुई है। खासकर हथियार और तेल के सेक्टर में अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के बावजूद भारत ने क्या कदम उठाए हैं।
1. रूस
पिछले हफ्ते भारत दौरे पर आए रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा था कि रूस डॉलर में भुगतान के सिस्टम को बदलकर भारत और रूस के साथ राष्ट्रीय मुद्रा में लेनदेन की तैयारी कर रहा है। लावरोव ने अपने भारतीय समकक्ष एस जयशंकर के साथ बैठक के बाद कहा कि पश्चिमी देशों की ओर से लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद भी हम लेनदेन के तरीके निकालने में जुटे हैं। यह लेनदेन सैन्य और तकनीकी क्षेत्र में भी जारी रहेगा।
2. अमेरिका
मजेदार बात यह है कि लावरोव का यह बयान अमेरिका के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (डिप्टी एनएसए) दलीप सिंह के उस बयान के बाद आया है, जिसमें उन्होंने भारत को चेतावनी दी थी कि रूस पर लगे प्रतिबंधों से पार पाने की कोशिश के नतीजे भुगतने पड़ सकते हैं। हालांकि, उन्होंने अब तक यूरोपीय देशों द्वारा रूस से ऊर्जा आयात को लेकर कोई टिप्पणी नहीं की है।
रूस से तेल खरीदने पर भारत का रुख?
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में अपनी एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि भारत ने रूसी तेल खरीदना जारी रखा है और हाल ही में तीन से चार दिन की सप्लाई लायक कच्चा तेल खरीदा जा चुका है। उधर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने गुरुवार को ब्रिटेन की विदेश मंत्री लिज ट्रस के साथ बातचीत के दौरान कहा था कि रूस से सस्ता तेल खरीदने के लिए ‘एक अभियान’ चलाया जा रहा है, जबकि यूरोपीय देश रूस से तेल-गैस खरीदने के मामले में सबसे आगे हैं। वह भी तब जब इन देशों ने ऊर्जा आयात कम करने की बात कही है।
अब तक क्या हैं भारत और रूस के बीच तेल खरीद के आंकड़े
न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने अपनी एक हालिया रिपोर्ट में कहा था कि भारत ने पूरे 2021 में रूस से 1 करोड़ 60 लाख बैरल तेल खरीदा। लेकिन 24 फरवरी को रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से ही भारत ने रूस से 1 करोड़ 30 लाख बैरल कच्चा तेल खरीद लिया है। यानी महज 39 दिन के अंदर ही भारत ने पिछले साल के कोटे के मुकाबले 81 फीसदी कच्चा तेल आयात कर लिया है।
प्रतिबंधों से निपटने के लिए क्या कर रहा है भारत?
जैसे-जैसे पश्चिमी देश रूस पर प्रतिबंधों का दायरा बढ़ाते जा रहे हैं, वैसे ही भारत व्यापार के लिए नई तैयारियों में जुटा है। इनमें सबसे पहली तैयारी रुपये और रूबल (रूसी करेंसी) में ट्रेड की है। दरअसल, अमेरिका समेत सभी पश्चिमी देशों ने रूस को स्विफ्ट सिस्टम से निकाल दिया है, इसके अलावा उसके डॉलर इस्तेमाल करने की क्षमता को भी रोका है। इसी के चलते रूस के केंद्रीय बैंक की टीम ने भारत के रिजर्व बैंक से मिलकर पेमेंट के लिए अलग सिस्टम खड़ा करने पर बातचीत की है, ताकि पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों का असर भारत-रूस के व्यापारिक रिश्तों पर न पड़े। खुद जयशंकर ने हाल ही में संसद को बताया था कि वित्त मंत्री के नेतृत्व में एक मंत्री समूह रूस से व्यापार और भुगतान के मुद्दे सुलझाने का काम कर रहा है।
युद्ध के बीच रक्षा समझौतों पर क्या?
रूस और यूक्रेन युद्ध के बीच भारत पर रूस से कूटनीतिक रिश्ते कम करने का दबाव बढ़ता जा रहा है। खासकर अमेरिका के काट्सा कानून की वजह से, जिसके तहत अमेरिका की तरफ से चिह्नित दुश्मन देशों से हथियार खरीदने वालों पर भी कड़े प्रतिबंध लगाए जाने का प्रावधान है। साथ ही रूस की डगमगाती अर्थव्यवस्था और यूक्रेन युद्ध के बीच और कड़े होते प्रतिबंधों ने भारत की चिंता में सिर्फ इजाफा ही किया है। ऐसे में मोदी सरकार काफी तेजी से हथियार खरीद में अपने विकल्पों में भी विस्तार करने पर विचार कर रही है। खासकर तब, जब सुखोई से लेकर एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम समेत कई सैन्य समझौते पाइपलाइन में हैं।
दोनों देशों के बीच कौन-कौन से समझौते तय?
भारतीय सेना ने चीन के खतरे को देखते हुए पिछले दो साल में ही अपने स्टॉक में भारी बढ़ोतरी की है। इसलिए तत्काल भारत की जरूरत बढ़ने की संभावनाएं नहीं हैं। इसमें सबसे बड़ी सुकून की बात भारत और रूस के बीच पहले से ही स्थापित रुपये-रूबल में लेनदेन का समझौता है। अक्तूबर 2018 में हुई एस-400 डिफेंस सिस्टम की डील भी इसी लेनदेन के तरीके को फिक्स करते हुए हुई थी। एस-400 सिस्टम की पहली यूनिट भारत को मिल भी चुकी है, जबकि दूसरी यूनिट जल्द मिलने की संभावना है।
इसके अलावा भारतीय वायुसेना के लिए 12 सुखोई-30 एमकेआई और 21 मिग-29 फाइटर जेट्स की आपूर्ति भी पाइपलाइन में है। लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से ही रक्षा मंत्रालय इन सभी आयात समझौतों पर विचार कर रहा है। खासकर रक्षा क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाने और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए रूस से कुछ खरीदों को टाला या रद्द किया जा सकता है।
पहले ही रूस से रक्षा खरीदी को घटा चुका है भारत
- स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, 2012-16 के बीच भारत ने रूस से जितना रक्षा आयात किया था, 2017-21 के बीच वह आयात 21 फीसदी तक कम हो गया।
- भारत की ओर से आयात का प्रतिशत भले ही गिरा हो, इसके बावजूद रूस भारत का सबसे बड़ा रक्षा उत्पादों का सप्लायर बना रहा।
- हालांकि, 2012-16 और 2017-21 दोनों ही दौर में रूस पर भारत की निर्भरता कम होने के आंकड़ों को मिलाया जाए तो सामने आता है कि भारत ने रूस से इन दस सालों के अंतराल में 47 फीसदी हथियारों का आयात कम किया है।