किसानों के हक में फैसला लेने से बच रही केंद्र सरकार- मोहम्मद असलम

Chhattisgarh Reporter
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केंद्र सरकार किसानों को कारपोरेट घरानों की दया पर कृषि कार्य करने के लिए मजबूर करना चाहती है

छत्तीसगढ़ रिपोर्टर      

रायपुर 23 जनवरी 2021। प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता मोहम्मद असलम ने कहा है कि किसानों को लेकर केन्द्र सरकार अडिय़ल रवैया अपना रही है। किसानों की तीनों कानून वापस लेने की मांग मानने की जगह सरकार अपना निर्णय थोपने की कोशिश कर रही है। केन्द्र सरकार डेढ़ साल तक कानून पर रोक लगाने के प्रस्ताव से किसान संगठनों में मतभेद पैदा करना चाहती है ताकि आंदोलन कमजोर पड़ जाए और किसानों को बहकाकर कानून को लागू करा लिया जाए। अन्नदाता सरकार के मंसूबों को भली-भांति समझ रहे हैं और वह किसी प्रलोभन या झांसे में नहीं आने वाले हैं। सरकार को यह बात समझ लेनी चाहिए कि किसान अपने निर्णय पर अडिग हैं और कानून रद्द करने के अतिरिक्त कुछ भी स्वीकार करने वाले नहीं है।  

प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता मोहम्मद असलम ने जारी बयान में कहा कि केन्द्र सरकार और किसान संगठनों के बीच ग्यारह दौर की बातचीत हो चुकी है लेकिन अब तक किसानों को राहत नहीं मिली है। किसान संगठन चाहते हैं कि बातचीत से कोई समाधान निकले और सरकार कानून वापस ले ले, लेकिन सरकार किसान संगठनों को बार-बार बातचीत के लिए बुलाकर समाधान खोजने का महज ढोंग कर रही है। सरकार इधर-उधर की बात ना करे, तीनों कृषि कानूनों को तत्काल रद्द करे, यही किसानों के हक में हैं। उद्योगपतियों, पूंजीपतियों का कर्ज बिना आंदोलन के माफ कर दिए जा रहे हैं और अन्नदाताओं को एक तरह से प्रताड़ित किया जा रहा है यह कहां का इंसाफ  है? फैसला लेने में हीला-हवाला, लेटलतीफी करके किसानों के हक में निर्णय लेने से सरकार क्यों बचना चाहती है?  

कांग्रेस प्रवक्ता मोहम्मद असलम ने कहा कि 2 महीने और 11 दौर की वार्ता के बाद भी किसान वहीं खड़े हैं जहां से उन्होंने आंदोलन की शुरुआत की थी। आखिर क्या वजह है कि केंद्र सरकार किसानों की मांग मानने को तैयार नहीं है? तीनों किसान कानून को बनाने में जल्दबाजी और अब सरकार का कानून रद्द करने को लेकर अडिय़ल रवैया क्या दर्शाता है? 100 शहादतों के बाद भी केंद्र सरकार कमेटी-कमेटी खेलना चाहती है। सरकार के अहंकार का आलम यह है कि सच्चाई को स्वीकार करना तो दूर, खामियों पर झूकना भी उन्हें मंजूर नहीं है। सरकार के रुख से ऐसा लगता है जैसे वह किसानों को कार्पोरेट घराने की दया पर कृषि कार्य करने के लिए मजबूर करना चाहती है।

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