छत्तीसगढ़ रिपोर्टर
भारत-ब्रिटेन सहित विभिन्न देशों में सार्वजनिक स्थलों में प्रवेश के लिए जुलाई अंत से ही मास्क पहनना अनिवार्य कर दिया गया था। हालांकि, यू-गव के हालिया सर्वे की मानें तो बड़ी संख्या में लोगों ने बार-बार इस्तेमाल में लाए जाने वाले मास्क को तभी से नहीं धोया है। डिस्पोजेबल मास्क का प्रयोग करने वाले लोग तो उसे फेंकने के बजाय लगातार लगाते आ रहे हैं।
शोधकर्ताओं की मानें तो अकेले ब्रिटेन में ही 85 फीसदी लोग कपड़े के मास्क को इस्तेमाल के बाद अच्छे से नहीं धो रहे। 15 फीसदी ने बीते तीन महीने में न तो मास्क को एक बार भी धोया है, न ही उसे धूप दिखाई है। वहीं, डिस्पोजेबल मास्क लगाने वाले आधे से ज्यादा लोगों ने उसे इस्तेमाल के बाद नहीं फेंका है। धूप दिखाए बिना ही वे मास्क को बार-बार प्रयोग में ला रहे हैं।
सर्वे टीम में शामिल प्लाईमाउथ यूनिवर्सिटी की डॉ. टीना जोशी कहती हैं, मास्क आसपास मौजूद लोगों को किसी संक्रमित के नाक-मुंह से निकलने वाली पानी की सूक्ष्म बूंदों (एयरोसोल) से बचाता है। यह संक्रमित एयरोसोल को धारक के श्वास तंत्र में प्रवेश करने से भी रोकता है। हालांकि, कपड़े के मास्क कोरोना संक्रमण से बचाव में तभी कारगर हैं, जब हम उन्हें इस्तेमाल के बाद अच्छे से धोएं और सुखाएं। वहीं, डिस्पोजेबल मास्क को तो हर बार प्रयोग के बाद फेंक देने में ही भलाई है। वरना ये वायरस का अड्डा बनकर धारक की ही सेहत को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
साबुन से सफाई अनिवार्य-
जोशी ने मास्क को हर बार इस्तेमाल के बाद साबुन से धोने की सलाह दी। उनके मुताबिक साबुन में मौजूद एनजाइम वायरस के सुरक्षा कवच को नष्ट कर देते हैं। ये बहुत हद तक 70 फीसदी एल्कोहल से लैस हैंड सेनेटाइजर की तर्ज पर ही काम करते हैं।
डिस्पोजेबल मास्क बेहतर-
बकौल जोशी, डिस्पोजेबल मास्क तीन मायनों में कपड़े के मास्क से बेहतर हैं। पहला, ये कम से कम दो परत का सुरक्षा कवच उपलब्ध कराते हैं। दूसरा, इनकी बाहरी नीली परत ‘वॉटरप्रूफ’ होती है। तीसरा, इन्हें बार-बार धोने-सुखाने का झंझट नहीं रहता।
सर्वे का सच-
-15% अंग्रेजों ने बीते तीन महीने में एक बार भी नहीं धोया मास्क।
-56% धारक डिस्पोजेबल मास्क को प्रयोग के बाद नहीं फेंक रहे।
-34% तीन से पांच बार इस्तेमाल के बाद ही उन्हें कचरे में डालते हैं।