छत्तीसगढ़ रिपोर्टर
नई दिल्ली 13 अगस्त 2022। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सभी अदालतों के लिए यौन उत्पीड़न पीड़ितों के मानसिक आघात, सामाजिक शर्म और अनचाहे लांछन के प्रति संवेदनशील होना महत्वपूर्ण है। इसके जिम्मेदार लोगों को न्याय के कटघरे में लाने की प्रक्रिया में यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इसका असर पीड़ित व्यक्तियों के लिए कष्टसाध्य न हो। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने की पीठ ने कहा कि खासकर यौन उत्पीड़न के जिन मामलों में पुलिस शिकायत दूर करने में विफल रहे वहां अदालतों की जिम्मेदारी महत्वपूर्ण हो जाती है और निचली अदालतों को जहां तक संभव हो एक बैठक में क्रॉस एक्जामिनेशन करना चाहिए।
पीठ ने कहा कि पुलिस को शिकायतकर्ता को सहज महसूस करवाना चाहिए और भयमुक्त वातावरण बनाना चाहिए। न्याय की प्रक्रिया में पीड़ित व्यक्तियों को शिकायत दर्ज कराने और जांच शुरू करवाने के लिए एक जगह से दूसरी जगह नहीं दौड़ाया जाना चाहिए। खासकर ऐसे मामलों में जहां शिकायत में प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध दिख रहा हो।
पीठ ने अपने एक हालिया फैसले में निचली अदालतों के लिए यौन उत्पीड़न के मामलों के संबंध में कई तरह के महत्वपूर्ण निर्देश जारी किए हैं। पीठ ने कहा, यह निचली अदालतों की जिम्मेदारी है कि उनके सामने आए पीड़ित व्यक्तियों से सही तरीके से व्यवहार करे। शीर्ष अदालत ने यह सारे निर्देश मध्यप्रदेश की एक यौन उत्पीड़न की शिकार महिला की याचिका पर आदेश जारी करते हुए दिए। इस महिला ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें मजिस्ट्रेट की अदालत के फैसले को कायम रखा जिसमें कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की पुलिस जांच का आदेश देने से मना कर दिया गया था।