विधानसभा चुनाव लड़ेंगे किसान: कृषि आंदोलन के समर्थक विरोध में उतरे, भाजपा-शिअद व कांग्रेस एलान के बाद से परेशान

Chhattisgarh Reporter
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छत्तीसगढ़ रिपोर्टर  

नई दिल्ली 28 दिसंबर 2021। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ जंग जीत चुके 22 किसान संगठनों के आगामी पंजाब विधानसभा चुनाव में उतरने का एलान करने के 24 घंटे बाद ही सियासी दलों के सुर बदलने लगे हैं। दिल्ली की सीमाओं पर डटे किसानों का केवल भाजपा को छोड़कर सभी दलों ने समर्थन किया था और ये दल अपने आपको किसान हितैषी पार्टी बता रहे थे। लेकिन अब माहौल बदलने लगा है। पंजाब में कांग्रेस, अकाली दल और भाजपा ने किसान नेताओं के फैसले पर सवाल उठाना शुरू कर दिया है। उन पर किसान आंदोलन का सियासी लाभ लेने का आरोप लगाया और आंदोलन के दौरान हुई फंडिंग का हिसाब भी जनता के सामने रखने की मांग कर दी है। संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के 32 में से 22 किसान संगठनों ने संयुक्त समाज मोर्चा का गठन कर विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया है। 

इन संगठनों ने वरिष्ठ किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल को मुख्यमंत्री चेहरा भी घोषित कर दिया है। साल भर गैर-राजनीतिक संगठन के तौर पर एसकेएम ने किसान आंदोलन के दौरान किसी भी राजनीतिक दल और नेता को किसान आंदोलन के मंच पर चढ़ने नहीं दिया था लेकिन आंदोलन के बाद खुद राजनीति में उतर जाने के कारण किसान संगठन विरोधियों के ही नहीं, समर्थकों के भी निशाने पर आ गए हैं।
सबसे पहला निशाना यूथ कांग्रेस के प्रदेश प्रधान बरिंदर सिंह ढिल्लो ने साधा है। उन्होंने ट्वीट किया- जो किसान नेता राजनेताओं को अपने मंच पर भी नहीं चढ़ने देते थे, वह अब अरविंद केजरीवाल को अपना नया बॉस बनाने लगे हैं। हालांकि ढिल्लों ने किसान नेताओं के चुनाव लड़ने पर तो सवाल नहीं उठाया लेकिन उनके आम आदमी पार्टी से गठजोड़ की चर्चाओं के सहारे अपना ऐतराज अवश्य जता दिया। 

उन्होंने लिखा- आम आदमी पार्टी (आप) के साथ गठजोड़ करना आंदोलन में शहीद हुए किसानों का अपमान है। ढिल्लो यहीं नहीं रुके, उन्होंने लिखा- आम आदमी पार्टी के चुनाव चिह्न पर लड़ना और गठबंधन करना, आंदोलन का फल सबसे बड़ी नीलामी करने वाले को बेचने के समान है। ढिल्लो ने चुनाव लड़ रहे किसान नेताओं पर आरोप लगाया कि उन्होंने अपने किसान अरविंद केजरीवाल को बेच दिए हैं। ढिल्लो ने चुनाव लड़ने वाले संगठनों के नेताओं को किसान नेता मानने से इनकार करते हुए आरोप लगाया है कि अपने सियासी हितों के लिए किसानों को बेच देंगे।

उधर, अकाली दल के सीनियर नेता भी किसान जत्थेबंदियों के चुनाव लड़ने से खुश नहीं हैं। हालांकि कांग्रेस की तरह ही अकाली दल भी सीधे तौर पर प्रतिक्रिया देने से बच रहा है लेकिन पार्टी के नेता व्यक्तिगत टिप्पणी के जरिए नाखुशी जाहिर करने लगे हैं। अकाली नेता विरसा सिंह वल्टोहा ने किसान संगठनों के विधानसभा चुनाव लड़ने पर सीधे तौर पर आपत्ति नहीं जताई लेकिन सवाल उठाया है कि आंदोलन के दौरान अरबों रुपये के फंड एकत्र हुए थे। सार्वजनिक तौर पर केवल 6 करोड़ रुपये का हिसाब ही दिया गया है, जिसमें 5 करोड़ रुपये खर्च करने की बात कही गई है। वल्टोहा ने कहा कि सियासत में आने के बाद किसान नेताओं को आंदोलन के दौरान जुटाए फंड की जानकारी देनी होगी।
भाजपा ने भी किसान संगठनों के विधानसभा चुनाव में उतरने पर एतराज जताया है। हालांकि साल भर चले आंदोलन के दौरान भाजपा ही ऐसी पार्टी रही, जिसने आंदोलनरत किसान संगठनों का खुलकर विरोध किया। इस विरोध के चलते पंजाब में भाजपा को साल भर किसानों, ग्रामीणों और आम लोगों के विरोध का सामना भी करना पड़ा है। अब भाजपा नेता सुरजीत जयानी, हरजीत ग्रेवाल, सुनीता गर्ग, अनिल सरीन ने कहा है कि भाजपा पहले ही कह रही थी कि आंदोलन की आड़ में राजनीति की जा रही है। आंदोलन में सबसे आगे दिखाई देने वाले किसान संगठनों के असल इरादे अब सामने आ गए हैं।

दरअसल, किसान संगठनों के चुनाव मैदान में उतरने से सभी राजनीतिक दलों को भारी नुकसान होना तय है। इन राजनीतिक दलों के समीकरण गड़बड़ाने लगे हैं। यही कारण है कि राजनीतिक दल अब किसानों को इन संगठनों से अलग करने के हरसंभव प्रयास करेंगे। किसान संगठनों के प्रति राजनीतिक दलों के बदलते सुरों ने यह संकेत दे दिए हैं कि पंजाब में जैसे-जैसे चुनाव प्रचार गरमाएगा, किसान नेताओं को कई तरह के आरोपों का सामना करना होगा, जो आंदोलन की बेहतरीन जीत के रूप में उभरी किसानों की एकजुटता को नुकसान पहुंचाएगा और किसानी के किसी भी मुद्दे पर फिर से आंदोलन के सभी रास्ते बंद कर देगा।

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