छत्तीसगढ़ रिपोर्टर
प्रयागराज 05 फरवरी 2025। विपरीत विचारों, मतों, पंथों को एक तट पर मिलाने की असीम ताकत रखने वाले संगम तट पर विश्व के सबसे बड़े सांस्कृतिक समागम के रूप में महाकुंभ की शोभा का वर्णन हर कोई अपने-अपने भावों में कर रहा है। परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष चिदानंद मुनि देश-दुनिया से आए अपने अनुयायियों, सितारों, संतों, कथा मर्मज्ञों के समागम को लेकर सुर्खियां बटोर रहे हैं। वह समुद्र मंथन के परिणाम के रूप में सामने आए कुंभ के जरिये अभिसिंचित और पोषित होती विश्व संस्कृति के विविध पक्षों को किस रूप में देखते हैं।
संगम तट पर दुर्लभ संयोग में लगे महाकुंभ को आप किस रूप में देखते हैं?
महाकुंभ सनातन का गौरव है। मानवता का सबसे बड़ा महोत्सव है। समुद्र मंथन का परिणाम है। मंथन के बाद जो भी निकलता है, वही अमृततुल्य होता है। 144 वर्षों के बाद जो योग बना है, वह दुर्लभ है। सौभाग्यशाली है हमारी पीढ़ी, जो इस महाकुंभ की प्रत्यक्षदर्शी बनी है। महाकुंभ: स्वागतं यत्र धर्मः संस्कृतिः च जीवनस्य स्रोतः प्रवाहते। धर्म और संस्कृति के माध्यम से जीवन के वास्तविक स्रोत का प्रवाह महाकुंभ में देखा जा सकता है।
भारतीय संस्कृति में कुंभ को किस रूप में प्रदर्शित किया जाना चाहिए?
महाकुंभ एक कालजयी महोत्सव है, जो न केवल व्यक्तियों की आत्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है, बल्कि पूरी सृष्टि को एक नई दिशा प्रदान करता है। महाकुंभ का मतलब एक डुुुुुुबकी और एक आचमन नहीं है, बल्कि कुंभ तो आत्ममंथन की डुबकी का नाम है। समुद्र मंथन से स्वयं के मंथन की यात्रा है। संगम में स्नान करने से तात्पर्य शरीर के भीगने से नहीं बल्कि बात तो भीतर से भीगने की है। हम अक्सर भीतर से भागते रहते हैं। हम अपने जीवन में जो भी अगर-मगर की संस्कृतियों का संस्कार है, उसे संगम की डुबकी में ही डुबो दें। कुंभ संयम की यात्रा है और संयम ही संगम है।
संगम ही विश्व की सभी समस्याओं का समाधान है। संगम से ही समृद्धि है, शांति है और सौहार्द है। एकता और सहयोग से किसी भी समस्या का समाधान संभव है। कायदे में रहेंगे तो फायदे में रहेंगे हमारे यहां एक कहावत है। यदि हम नियमों, नैतिकता और आदर्शों के साथ जीवन जीते हैं तो यह न केवल हमारी व्यक्तिगत सफलता की कुंजी है, बल्कि समाज और विश्व के विकास में भी योगदान प्रदान करती है। एक-दूसरे की संस्कृति का सम्मान करें। केवल हाथ ही नहीं, दिल भी मिलाएं। यही संदेश लेकर इस दिव्य धरती से अपने गंतव्य की ओर लौटें।
संगम की महिमा और शक्ति को किस रूप में देखते हैं?
तीर्थराज प्रयाग, संगम, समागम, शांति, शक्ति और भक्ति की भूमि है। संगम, शास्त्र व साहित्य की धरती है। प्रयागराज का संगम केवल भौतिक जल का नहीं है, बल्कि यह शास्त्र और साहित्य की भी भूमि है। यहां के इतिहास और संस्कृति में वेद, उपनिषद, और पुराणों की गूढ़ताएं छिपी हैं। प्रयागराज समागम की भूमि है, जो एकता और भाईचारे का संदेश देती है।
आप सनातन बोर्ड के गठन के पक्ष में हैं या वक्फ बोर्ड भंग करने के?
हम सबके आदर-सम्मान के पक्ष में हैं। भारत भूमि पर रहने वाले सभी भारत की संतानें हैं। सब भारत का जल, वायु और प्राकृतिक संसाधनों का बराबर उपयोग करते हैं तो भेद कैसा? इसलिए जो भी हो, संविधान के दायरे में हो। जहां सब समान हों, सबका सम्मान हो, यही तो है देश के संविधान की धारणा। जब बात शरिया की उठती है तो मैं कहना चाहूंगा कि मुझे तो लगता है घरों में शरिया, सड़कों पर शराफत और दिलों में देश में संविधान होना चाहिए।
मौनी अमावस्या स्नान पर संगम नोज पर हुई भगदड़ के लिए आप किसको जिम्मेदार मानते हैं?
सरकार और प्रशासन दोनों ही प्रतिबद्ध हैं। मुख्यमंत्री स्वयं इस पर दृष्टि रखे हुए हैं। जांच के आदेश दिए हैं। सत्य सबके सामने होगा। जो श्रद्धालु संगम में डुबकी लगाने आए थे, वह इस हादसे के शिकार हुए, उसका हमें गहरा दुख है। हमारी संवेदनाएं उन परिवारों के साथ हैं, जिन्होंने अपनों को खो दिया। मेरा एक ही निवेदन है हम सभी संगम के तट पर आए हैं। आस्था की डुबकी के साथ एक ही संकल्प लें कि इस देश का संगम बना रहे। पिता, सदैव पिता होता है। पिता के पास जो अनुभव है वह पुत्र को पिता बनने पर ही आ सकता है। परंतु पूत के पैर भी पालने में ही दिखाई देने लगते हैं। बात तुलना व चयन की नहीं है। बात संगठन और समन्वय की है। संगम की धरती से चयन की नहीं संगम की ही बात होनी चाहिए। हम वसुधैव कुटुंबकम् को मानने वाले हैं। सच तो यह है कि मोदी जी, मोदी जी हैं और योगी जी, योगी जी हैं। दोनों अपने-अपने कर्तव्यों को पूर्ण निष्ठा के साथ रात-दिन मेहनत पूर्वक निभा रहे हैं।