छत्तीसगढ़ी संस्कृति में किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत अपने इष्ट देव की आराधना से होती है, उसी प्रकार मां सरस्वती के वंदन के साथ लोक रागिनी मंच से नृत्य की शानदार प्रस्तुति
छत्तीसगढ़ रिपोर्टर
रायपुर 03 नवंबर 2022। छत्तीसगढ़ी संस्कृति में किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत अपने इष्ट देव की आराधना से होती है। उसी प्रकार मां सरस्वती के वंदन के साथ लोक रागिनी मंच से नृत्य की शानदार प्रस्तुति। संस्कृति भी अनेकता में एकता की तरह है उसी का एक सुंदर समागम आज राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के आखरी दिन में देखने का एक सुनहरा अवसर मिल रहा है। यह प्रस्तुति एक ऐसी बड़ी नदी की तरह है जिसमें अनेक छोटी नदियां समाहित होकर उसे समृद्ध करती हुई आगे बढ़ती है। छत्तीसगढ़ी गीतों के संगम जिसमें सुआ नृत्य, रिलो, रेला, राउत नाचा आदि अनेक गीत समहित है उसकी सुंदर प्रस्तुति की शुरुआत मां देवी सरस्वती की आराधना से की जा रही है। छत्तीसगढ़ी लोक कला, लोक संस्कृति धार्मिक आस्थाओं से भी जुड़ी है। आदिवासी स्वंय को आदिशक्ति का धरोहर मानते हैं। सुदूर जंगल में आदिवासी ससांस्कृतिक छटा की, नृत्य के माध्यम से अद्भुत प्रस्तुति माँ दंतेश्वरी बूढ़ादेव की आराधना के साथ। मां दंतेश्वरी छत्तीसगढ़ की देवी देवताओं में एक प्रसिद्ध सिद्ध पीठ है जिसकी आराधना हमारे आदिवासी भाई बहन ही नहीं बल्कि पूरे छत्तीसगढ़वासी करते हैं।
छत्तीसगढ़ के करमा नृत्य की झलक
महिलायें गहरी नीली साड़ी पहने और सिर में कलगी लगाए आदिवासी परम्परा की पहचान को सरंक्षित रखते हुए। सामूहिक, सामजंस्य और एकता का संदेश देते हुए। वाद्य यंत्रों में भी छत्तीसगढ़ की झलक। निशान बाजा,मोहरी, मांदर, टिमटिमि बाजा का प्रयोग करते हुए कर्णप्रिय संगीत के साथ सुंदर प्रस्तुति।
झारखंड से आए कलाकारों ने ‘हो नृत्य’ प्रस्तुत किया
प्रकृति के प्रति आस्था का प्रतीक है “हो नृत्य” । बेहद सादे लिबास और साधारण वेशभूषा के साथ अपनी जनजातीय परम्परा के अनुरूप झारखंड प्रदेश का “हो नृत्य” समृद्धि और उन्नति का प्रतीक है।
ओड़िशा का ढ़ेमसा नृत्य
ढेमसा मध्य भारत-दक्षिणी ओडिशा के क्षेत्रों के आदिवासी लोगों का एक पारंपरिक लोक नृत्य है। जिसमें नर्तक एक दूसरे को कंधे और कमर पर पकड़कर और पारंपरिक वाद्ययंत्र की धुन पर नृत्य करके एक श्रृंखला बनाते हैं। धेम्सा समूहों में किया जाने वाला एक अनूठा लोक नृत्य है। इसकी एक निश्चित रचना, शैली, लय, शरीर की भाषा, पारंपरिक वेशभूषा, केश, पैर के कदम आदि हैं।
आंध्रप्रदेश की टीम द्वारा लंबाड़ी नृत्य की मनमोहक प्रस्तुति
आंध्र प्रदेश का लंबाड़ी नृत्य आकर्षक चटकदार रंग बिरंगी परिधानों से सुसज्जित होकर यहां की महिलाओं द्वारा किया जाता है। वे एक घुम्मकड़ जनजातिय से सम्बद्ध रखते हैं। लंबाड़ी नृत्य में वेश भूषा में कांच,दर्पण के टुकड़ों का उपयोग करते हैं। हाथी दांत की चूड़ियाँ ,कलाई की शोभा बढ़ाती हैं।कृषि में जब समृद्धि आती है।तब खुशी से महिलाएँ यह नृत्य करती हैं।
हमारे सुआ नृत्य की तरह ही उत्तरप्रदेश का है झींझी नृत्य
दीपावली के शुभ अवसर पर छत्तीसगढ़ में महिलाएं घर-घर जाकर सुआ नृत्य करती हैं उसी प्रकार उत्तर प्रदेश में थारू जनजाति भी झींझी देवी की आराधना में ऐसा नृत्य क्वांर और भादो के महीने में करती हैं। नई फसल आने के तुरंत बाद महिलाएं झींझी नृत्य करने घर घर जाती हैं। उनके सिर में कलश होता है और हाथों में दान लेने के लिए टोकरी। फिर सुआ गीत की तरह ही सुंदर गीत प्रस्तुत करती हैं और सुंदर झींझी नृत्य भी। बिल्कुल चटख रंगों के साथ और स्थानीय थारू आभूषणों के साथ उनकी साजसज्जा दर्शकों को चकित कर देती है। इसके बाद परंपरा अनुरूप झींझी का विसर्जन नदी में किया जाता है।
हरियाणा के घूमर नृत्य की मनमोहक प्रस्तुति से झूम उठे दर्शक
यह भील जनजाति का लोक नृत्य है।यह नृत्य फसल की कटाई के समय किया जाता है।यह एक समूह नृत्य है ।यह नृत्य विशेष अवसर पर किया जाता है।यह नृत्य फसल कटाई के बाद, फसल अच्छे दामों पर बिकने बाद किया जाती है पत्नि अपने पति से विभिन्न तरीके से भिन्न-भिन्न वस्तुओं की मांग करती है और वार्तालाप के माध्यम से इस घुमर नृत्य को प्रस्तुत किया जाता है।