छत्तीसगढ़ रिपोर्टर
मुबई 11 फरवरी 2022। गोवा के चुनाव में आम आदमी पार्टी के संयोजक व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की दोबारा एंट्री से जातिगत राजनीति का आगाज हो गया है। केजरीवाल ने गोवा में भंडारी समाज से मुख्यमंत्री बनाने का वादा कर एक नया राजनीतिक पासा फेंका है। उन्होंने तलेगांव सीट से भंडारी समाज के अमोल पालेकर को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर इस समाज के कुल चार लोगों चुनाव मैदान में उतारा है। जबकि सत्ता की हैट्रिक लगाने की लड़ाई लड़ रही भाजपा ने भंडारी समुदाय से आठ उम्मीदवार घोषित किए हैं, हालांकि मुख्यमंत्री पद का लॉलीपॉप नहीं दिया है। गोवा में 28 साल पहले भंडारी समाज के रवि नाईक थोड़े समय के लिए मुख्यमंत्री बने थे। उसके बाद कोई मुख्यमंत्री नहीं बन सका। इससे पहले दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर परिकर ने भंडारी समुदाय की ताकत को पहचाना था और समाज के कई लोगों को भाजपा में शामिल कर उन्हें राजनीति की मुख्यधारा में लाए थे। हालांकि कांग्रेस और महाराष्ट्र गोमांतक पार्टी में भी इस समुदाय के लोगों को प्रतिनिधित्व मिला था, लेकिन परिकर ने थोक में उम्मीदवारी देकर इस समाज को भाजपा के लिए राजनीतिक धुरी बना दिया। भाजपा ने केवल ओबीसी समाज ही नहीं बल्कि एससी ओर एसटी के लोगों को भी सबसे ज्यादा तवज्जो दी है। गोवा में मराठा समुदाय भी कई सीटों पर निर्णायक है। कांग्रेस ने चार तो भाजपा ने पांच मराठा उम्मीदवार उतारे हैं। मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत मराठा समुदाय से हैं। इसलिए इसका ज्यादा लाभ भाजपा को मिलना तय माना जा रहा है।
40 सीटों में से 18 पर भंडारी समाज का दबदबा
गोवा में कभी जातीय गणित उतना अधिक हावी नहीं रहा। पहली बार यह चुनाव जातिगत आधार पर होता दिखाई दे रहा है। जिससे सूबे में जातिगत और धार्मिक गोलबंदी की तस्वीर साफ हो गई है। आप की ओर से भंडारी समाज से मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित होने के बाद भाजपा ने भी भंडारी नेताओं को आगे कर दिया है। वहीं, कांग्रेस, आप, टीएमसी और एनसीपी ने अल्पसंख्यक ईसाई-मुस्लिम के साथ ओबीसी समुदाय के उम्मीदवारों को मैदान में उतार कर जातिगत समीकरण साधने की कोशिश की है। गोवा में ओबीसी समुदाय की 19 उपजातियां हैं जिसमें भंडारी समुदाय की संख्या सबसे अधिक है, राज्य की कुल 40 में से 18 सीटों पर उनका दबदबा है। सूबे में ओबीसी जातियों की हिस्सेदारी 30 से 40 फीसदी तक बताई जाती है। जबकि ईसाई मतदाताओं की संख्या 23 से 25 फीसदी के आसपास है। उसके बाद खारवा समुदाय और फिर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की संख्या करीब 12 फीसदी है।
धूमिल पड़ा तृणमूल का आकर्षण
पश्चिम बंगाल में बंपर जीत के बाद गोवा में धमाकेदार एंट्री करने वाली ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस पार्टी का आकर्षण मतदान नजदीक आते-आते धूमिल पड़ा दिखाई दे रहा है। शुरुआत मे ममता बनर्जी ने गोवा में कांग्रेस का विकल्प बनने की कोशिश की थी और इस रणनीति के तहत पूर्व मंत्री चर्चिल अलेमाओं जैसे कई स्थापित नेताओं को पार्टी में शामिल कर सूबे में बड़े बदलाव का संकेत दिया था। लेकिन मतदान की तारीख नजदीक आते-आते टीएमसी अध्यक्ष ममता बनर्जी ने गोवा की बजाय उत्तर प्रदेश की ज्यादा चिंता की है।