क्रासवोटिंग कैसे कही जा सकती है जब दोनो निर्दलीयों को अपना बताकर कांग्रेस ने दोनो ही कांग्रेसी वोटों को जरूर नही के आधार पर महत्व ही नही दिया गया – अहमदुल्ला फिरोज निर्वाचित पार्षद बैकुंठपुर

Chhattisgarh Reporter
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हार की रार में गठितहार की रार में गठित जांच समिति ने वन टू वन में स्थानीय पार्षदों व कांग्रेस पदाधिकारियों से मिलकर बनी रिपोर्ट प्रदेश कांग्रेस कमेटी के हाथ में !

साजिद खान/ छत्तीसगढ़ रिपोर्टर

कोरिया ( छत्तीसगढ़ ) – बैकुंठपुर नगरीय निकाय में कांग्रेस के बहुमत के बावजूद अध्यक्ष पद की हार राजधानी के नेताओं के लिए चर्चा का विषय बन गई। यहां हुई क्रासवोटिंग के लिए प्रदेश प्रभारी पी एल पुनिया के द्वारा गठित की जांच समिति स्थानीय पार्षदों व कांग्रेस पदाधिकारियों से वन टू वन चर्चा कर बनी रिपोर्ट कांग्रेस कमेटी के पास पहुंचने की जानकारी मिली है। मीडिया में आई खबर के अनुसार पुनिया जी का कहना रहा कि बैकुंठपुर नगरीय निकाय में जिन्होने पार्टी के साथ गलत किया है। उनके खिलाफ एक हफ्ते के भीतर कार्यवाही की जाएगी। प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने नगर पालिका बैकुंठपुर में अध्यक्ष , शिवपुर-चरचा में उपाध्यक्ष पद के लिए चुनाव में कांग्रेसी पार्षदों द्वारा क्रासवोटिंग की जांच के लिए समिति में पूर्व विधायक बोधराम कंवर, पीसीसी उपाध्यक्ष एवं पूर्व विधायक चुन्नी लाल साहू तथा पीसीसी महामंत्री अर्जुन तिवारी को शामिल किया गया। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी नगरीय निकाय बैकुंठपुर व शिवपुर-चरचा में हुई क्रासवोटिंग में हुई हार को गंभीरता से लिया है।

        गठित जांच समिति ना ही मेरे चाचा से मिली और ना ही मेरे से मिली। हमें उम्मीद थी कि कांग्रेस की जो जांच टीम आई है। हमसे भी मिलेगी लेकिन कोई फोन काल तक नही आया। निर्वाचित दोनो निर्दलीयों को कांग्रेस अपना बता कर हम दोनो कांग्रेसी पार्षदों को जरूरत नही कह कर अलग कर चुकी थी कि हमारे पास बहुमत हो चुका है। मीडिया के सामने आए छोटे खान के भतीजे अहमदुल्ला फिरोज ने यह कहा। उन्होंने बताया कि 20 सीट में 11 का बहुमत आने के बाद जब निर्वाचित दोनो निर्दलीयों को कांग्रेस अपना मान रही थी तो 13 का बहुमत हो जा रहा था लेकिन मांग में अध्यक्ष पद में मुसर्रत जहां का नाम सामने आने के बाद मेरी चाची(मुसर्रत जहां) और मेरे(अहमदुल्ला फिरोज) को अलग कर दिया गया कि जरूरत ही नही है। उन्होने अपना स्टैंड खुद ही क्लीयर किया कि निर्दलीयों को लेकर हम अब भी बहुमत में है। इस तरह साधना जायसवाल का नाम अध्यक्ष पद के लिए तय कर दिया गया। इस स्थिति में इस तरह अलग करने के बाद हम दोनो के द्वारा की गई वोटिंग क्रासवोटिंग कैसे कही जा सकती है। फिर निर्दलीयों को साथ लेकर बहुमत होने बाद भी वोटिंग में कांग्रेस के १० – भाजपा के १० इक्वल कैसे आया। वह 1 सीट कहां गई। अंदर क्रासवोटिंग किसने किया। यह कांग्रेस के लिए सोंचने वाली बात है। जबकि हमें तो पहले ही अलग कर दिया गया था। और रही बैकुंठपुर के विकास की बात तो मेै पार्टी में रहूं या न रहूं । पालिटिक्स में रहूं या न रहूं। विकास करने के लिए मुझे राजनीति की जरूरत नही है। लेकिन मेरी जनता को जितना जरूरत रहेगी मै एफर्ट्स करूंगा। प्राब्लम को हम टेक्नीकली साल्व करेंगे।  

               हाथ में आई सत्ता नगरीय निकाय में से रेत जैसे सरक गई। रेत जैसे इसलिए कि वरिष्ठों को भी एहसास था कि सरक सकती है। पूरा कारण भी वरिष्ठ कांग्रेसियों के जेहन में रहा कि सिर्फ इसलिए कि नगरीय निकाय बैकुंठपुर में सबसे अधिक जनमत प्राप्त निर्वाचित को प्राथमिकता नही दी गई ! आरोप यह भी लगा कि अर्थ के स्रोत को प्राथमिकता दिया गया। फिर क्यों कांग्रेस प्रभारी के द्वारा जिले से राजधानी और राजधानी से लेकर बस्तर तक पार्षदों को समेट कर रखा गया। क्या इस‌ जिले के कांग्रेस के नगरीय निकाय के कांग्रेस प्रभारी अपने ही पार्षदों को अध्यक्ष के नाम पर एक नही कर पाए ? या फिर जनमत मिले पार्षद को अध्यक्ष या उपाध्यक्ष दोनो ही पद के लिए नामिनेट नही करके बिल्कुल नकारने का मन बना लिया था ? जिसका परिणाम खुलकर सामने आया और सामने ऐसा आया कि तथाकथित क्रासवोटिंग की बात सामने आई। कई लोगों ने कांग्रेस जिलाध्यक्ष के मुर्दाबाद के नारे भी लगाए। कांग्रेस ने साधना जायसवाल को अध्यक्ष के लिए पेश किया तो भाजपा ने नविता शिवहरे को अध्यक्ष के लिए पेश किया। जिसमें वोटिंग के दौरान कांग्रेस के 10 और भाजपा के 10 आने पर मामला टाई हो गया। फिर पर्ची निकाल कर अध्यक्ष चुना गया। पर्ची के आधार पर नविता शिवहरे को नगरीय निकाय बैकुंठपुर का अध्यक्ष चुन लिया गया और वोटिंग में 12 मत मिलने पर उपाध्यक्ष पद के लिए कांग्रेसी पार्षद आशिष यादव को चुना गया। इधर पूर्व कांग्रेस पार्षद आफताब आलम (छोटे खान), रियाज अहमद, मुसर्रत जहां, अहमदुल्ला फिरोज ने खुले रूप से स्वस्फूर्त एलान करते हुए कांग्रेस छोड दी। ” जब चिड़िया चुग गई खेत ” की तर्ज पर बाद में इन लोगों को कांग्रेस निष्काषित करने की प्रकिया करती रही। ” कुछ अहम बातें जो जनचर्चा में यह सामने रहीं कि मत और जनमत नगर वासियों ने दिया तो अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के लिए नाम राजधानी से क्यों नाम तय होता रहा। संगठन के कार्यकर्ताओं की एक और बात सामने आई कि दल विशेष के राजनैतिक लाभ के लिए बनाए गए पिटठू पर बिल्कुल भरोसा न किया जाए। नगरीय निकाय बैकुंठपुर की बहुमत की 11 सीट जीतने के बाद संगठन के ही अंदर जमकर चर्चा रही कि जनमत के आधार पर अध्यक्ष का नाम तय हो। लोगों के बीच यह भी चर्चा रही रही कि जो सच निखरकर सामने आया कि ” शिकारी आया जाल फैलाया लेकिन पंक्षी इस बार जाल में नही फंसा ” पंक्षी स्वतंत्र हो गया। इन दोनो नगरीय निकायों के लिए भी प्रदेश कांग्रेस ने पर्यवेक्षक नियुक्‍त किए थे। पर्यवेक्षकों ने क्या रिपोर्ट दी थी। ना ही चाचा से मिले और ना ही मेरे मिले ! सवाल यह उठता है कि आखिर किस मुख्य बिंदु के आधार बनाई गई समिति रिपोर्ट सौंपेगी ? भरोसे पर सौंपेगी या अनुमान पर सौंपेगी ?  

              इधर शिवपुर-चरचा में अध्यक्ष के लिए कांग्रेस से श्रीमती लालमनि यादव और उपाध्यक्ष के लिए रेशमा परवीन का नाम तय हो गया था। यहां भी 15 सीटों में 8 पार्षद लेकर कांग्रेस का बहुमत रही। जिसमें अध्यक्ष उपाध्यक्ष दोनो कांग्रेस के ही होने चाहिए थे लेकिन यहां उपाध्यक्ष के लिए क्रासवोटिंग हुई। जिसमें अध्यक्ष तो कांग्रेस का बन गया। लेकिन जानकारी अनुसार उपाध्यक्ष के लिए जब रेशमा परवीन का नाम तय हो गया तो यहां भी क्रासवोटिंग में भाजपा का उपाध्यक्ष बना दिया गया। यहां क्रासवोटिंग के लिए कांग्रेस ने किसी को भी निलंबित नही किया। क्यों ? कांग्रेस अपने को लोकतांत्रिक पार्टी प्रदर्शित करती है जबकि यहां हुए चुनावी मंशा से साफ क्यों यह दिखाई दे रहा है कि एक वर्ग बस सिर्फ वोट बैंक बना रहे। बैकुंठपुर में कांग्रेस का अध्यक्ष नही बना पाने की हार के बाद शिवपुर-चरचा में उपाध्यक्ष नही बना पाना कांग्रेस की दूसरी सबसे बडी हार रही यह माना जा सकता है।

              दोनो नगरीय निकाय में कांग्रेस के बहुमत में आ जाने के पश्चात पूर्व से नियोजित नगर की जनता से आभार प्रकट करने के लिए मंच लगाने वाली भाजपा को बिल्कुल भी नही एहसास नही था कि आभार प्रकट का मंच जीत का मंच बन जाएगा। भाजपा के हारे हुए पार्षद एवं पूर्व बैकुंठपुर नगर पालिका अध्यक्ष शैलेष शिवहरे ने कहा कि ऊपर वाले को भी मंजूर नही था दोबारा वही लोग सत्ता में बैठे। उन्होने यह तक कह दिया रहा कि बहुरूपियों के शहर में अब बहुरूपिया प्रतियोगिता नही होगी। हो सकता है कि शिवहरे का यह कटाक्ष उनके लिए भीतरघातियों के लिए रहा हो परंतु उनके कहे गए उक्त ठोस वाक्य का प्रभाव आगामी चुनाव में जरूर पडेगा क्योंकि राजनीतिक रूप से जो दिखाई दे रहा है कि अब इस शहर में आगामी चुनावों में एक वर्ग बहुरूपियों से सचेत रहेगा। चाहे वह किधर के ही हों।       

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