छत्तीसगढ़ रिपोर्टर
नई दिल्ली 21 अगस्त 2021। अफगानिस्तान में तालिबान राज से चीन, पाकिस्तान से लेकर आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद भी खूब खुश है। अफगानिस्तान में चीनी राजदूत वांग यू और पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के मुख्य ऑपरेशनल कमांडर मुफ्ती अब्दुल रऊफ अजहर ने गुरुवार को कंधार में तालिबान नेतृत्व से मुलाकात की और सुन्नी पश्तून इस्लामवादियों यानी तालिबानियों को अफगानिस्तान पर कब्जा करने के लिए बधाई दी। बताया जा रहा है कि दोनों ने तालिबानी नेतृत्व से अलग-अलग गुपचुप मीटिंग की है। यहां जानना जरूरी है कि मुल्ला बरादार और मुल्ला उमर के बेटे व तालिबान के उप नेता मुल्ला याकूब दोनों कंधार में हैं। मुल्ला बिरादर को अफगानिस्तान के राष्ट्रपति के रूप में तालिबान की ओर से प्रबल दावेदार माना जा रहा है।
एक ओर जहां चीनी राजदूत वांग ने बुधवार को अपने पाकिस्तानी समकक्ष से अफगान मुद्दे पर हर संभव सहयोग करने के लिए मुलाकात की, वहीं माना जा रहा है कि उन्होंने तालिबान शासित अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में बीजिंग की ओर से मदद की पेशकश करने के लिए कंधार में मुल्ला बरादर से भी मुलाकात की थी। यहां ध्यान देने वाली बात है कि चीन न केवल तालिबान के हाथों अमेरिका के अपमान से खुश है, बल्कि वह तालिबान राज में अफगानिस्तान में पुनर्निर्माण के नाम पर बेल्ट रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) को पूरा करना चाहता है। साथ ही चीन की नजर अफगानिस्तान में लीथियम, कॉपर और ऐसे दुर्लभ खनिजों के अकूत भंडार पर है। इतना ही नहीं, गैस और खनिज संसाधनों की निकासी के लिए अफगानिस्तान के माध्यम से मध्य एशियाई गणराज्यों तक पहुंचने के लिए चीन की बड़ी योजना है। चीन को वन बेल्ट, वन रोड प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए तालिबान की जरूरत भी पड़ेगी, क्योंकि यह रास्ता अफगानिस्तान से होकर ही आगे बढ़ता है।
वहीं, जिहाद में तालिबान के वैचारिक साथी जैश-ए-मोहम्मद के मुफ्ती रऊफ ने बहावलपुर स्थित आतंकी समूह जैश की ओर से निष्ठा की पेशकश करने के लिए कंधार में मुल्ला याकूब से मुलाकात की। बता दें कि मुप्ती रऊफ आतंकी मसूद अजहर का भाई है, जो भारत में कई आतंकी हमलों के लिए मोस्ट वांटेड है। जैश सरगना मौलाना मसूद अजहर 1994 में श्रीनगर से गिरफ्तार होने से पहले खोस्त में हरकत-उल-अंसार आतंकी प्रशिक्षण शिविर में देवबंदी विचारक था। कंधार विमान हाईजैक कांड में रिहा होने के बाद अजहर ने जैश का गठन किया था। दिसंबर 1999 में मसूद अजहर को रिहा करवाने में तालिबान ने मदद की थी। क्योंकि उस वक्त अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा था और तत्कालीन सत्तारूढ़ तालिबान नेतृत्व की मदद से पूरे विमान के हाईजैक की योजना बनाई गई थी।
ताजा घटनाक्रम से तालिबान का दोहरा चरित्र सामने आ रहा है। एक ओर मौजूदा तालिबान नेतृत्व दुनिया के सामने यह कह रहा है कि वह किसी तीसरे देश के खिलाफ अफगान की धरती का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं देगा, जबकि संयुक्त राष्ट्र द्वारा नामित आतंकवादी समूह सुनी पश्तून (तालिबान) के अल कायदा और जैश-ए-मोहम्मद के साथ बहुत करीबी संबंध हैं। पाकिस्तान स्थित ये दोनों वैश्विक आतंकवादी समूह तालिबान शासित अफगानिस्तान के भीतर अपने कैडर को प्रशिक्षित करने और अपने विरोधियों पर आतंकी हमले करने के लिए पनाहगाहों की तलाश कर रहे हैं। बता दें कि तालिबान ने खुले तौर पर जिहाद को अपना मौलिक इस्लामी कर्तव्य बताया है।
एक ओर जहां पाकिस्तान के बहावलपुर मदरसा में हाई सिक्योरिटी प्रोटेक्शन में मसूद अजहर रह रहा है। वहीं दूसरी ओर उसका भाई मुफ्ती रऊफ अजहर कंधार में तालिबान नेतृत्व के साथ मीटिंग कर रहा है। ऐसे में भारत की चिंता बढ़ जाती है, क्योंकि जैश का मुख्य टारगेट भारत ही रहा है। मसूद अजहर का बड़ा भाई इब्राहिम अजहर, जिसने कंधार विमान हाईजैक की साजिश रची थी, आतंकी समूह के अफगान अभियानों की देखरेख करता है।
भारतीय आतंकवाद-रोधी विशेषज्ञों के अनुसार, काबुल में तालिबान के उदय के साथ जैश और अधिक सक्रिय हो जाएगा और पूरे दक्षिण एशिया में इस्लामी कट्टरपंथ में बढ़ावा होगा। इतना ही नहीं, अफगान में तालिबान राज से चीन को भी फायदा मिलता दिख रहा है। तालिबान की मदद से ड्रैगन वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारत पर दबाव बनाए रखेगा और पड़ोस में भारत के विरोधियों के साथ अपने संबंधों को मजबूत करेगा। विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि तालिबान के उदय का भारत की आंतरिक सुरक्षा पर प्रभाव पड़ेगा।