
छत्तीसगढ़ रिपोर्टर
नई दिल्ली 09 मई 2025। थैलेसीमिया ऐसी बीमारी है जिसमें पीड़ित व्यक्ति का शरीर अपने लिए खून का निर्माण नहीं कर पाता। उसे आजीवन दूसरों के द्वारा दान किए गए रक्त पर निर्भर रहना पड़ता है। लेकिन इसके लिए रोगी को हर साल दो लाख रूपये के करीब खर्च करना पड़ता है। केंद्र-राज्य सरकारों के स्तर पर ऐसे रोगियों को हर स्तर पर मदद भी की जाती है, जिससे वे अपना सामान्य जीवन जी सकें। दिल्ली सरकार भी ऐसे पीड़ितों के मदद के लिए सहायता करती है।
दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता ने थैलेसीमिया दिवस (8 मई) को आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि सरकार ऐसे सभी पीड़ितों की हर संभव मदद के लिए तैयार है। इसके प्रति जागरूकता लाकर लोगों को ज्यादा रक्तदान के लिए प्रेरित किया जा सकता है। विजेंद्र गुप्ता ने सभी लोगों से आग्रह किया कि वे थैलेसीमिया रोगियों के लिए देखभाल, गरिमा और आशा से भरे भविष्य की दिशा में सामूहिक प्रयास करें। उन्होंने थैलेसीमिया से जूझ रहे रोगियों और उनके परिवारों की दृढ़ता की सराहना करते हुए उन्हें समाज के लिए प्रेरणास्रोत बताया।
हर साल जन्म लेते हैं 12-15 हजार बच्चे
भारत थैलेसीमिया से सर्वाधिक प्रभावित देशों में से एक है, जहां 5 करोड़ से अधिक वाहक और प्रतिवर्ष अनुमानित 12,000 से 15,000 बच्चे थैलेसीमिया मेजर के साथ जन्म लेते हैं। अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण एकमात्र स्थायी उपचार है, लेकिन इसकी लागत अत्यधिक है और यह डोनर की उपलब्धता पर निर्भर करता है। इसका परिणाम यह होता है कि अधिकांश रोगियों को आजीवन रक्त संक्रमण और आयरन की कमी को दूर करने वाली चिकित्सा पर निर्भर रहना पड़ता है।