छत्तीसगढ़ रिपोर्टर
भोपाल 27 दिसंबर 2024। वक्फ संशोधन विधेयक की समीक्षा कर रही संयुक्त संसदीय समिति ने राज्य के प्रतिनिधियों से मौखिक साक्ष्य रिकॉर्ड किए। मगर समिति कर्नाटक, राजस्थान और मध्य प्रदेश की ओर से वक्फ संपत्ति की स्थिति को लेकर दिए गए जवाबों से संतुष्ट नहीं है। अब संसदीय समिति ने तीनों राज्यों के प्रतिनिधियों को जवाब देने के लिए 15 दिन का वक्त दिया है। गुरुवार को वक्फ संपत्ति की स्थितियों को लेकर संसदीय समिति ने राज्यों के प्रतिनिधियों से चर्चा की। समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने कहा कि हमने राज्यों से वक्फ संपत्तियों के बारे में ब्योरा मांगा है। इसमें सरकार के पास संपत्तियों का पंजीकरण, संपत्तियों का उपयोगकर्ता और रजिस्ट्री के आधार पर सूचीकरण और ऐसी संपत्तियों से होने वाली आय और उनकी प्रकृति को बदलने के उपाय की जानकारी मांगी गई है। मगर तीन राज्यों के प्रतिनिधियों की ओर से दिए गए जवाब संतोषजनक नहीं थे, हमने उन्हें जवाब देने के लिए 15 दिन का समय दिया है। आवश्यकता पड़ने पर उन्हें दोबारा बुलाया जाएगा। इन राज्यों ने अल्पसंख्यक कार्य विभाग की ओर से जारी किए गए प्रारूप में जवाब नहीं दिए। अध्यक्ष पाल ने कहा कि समिति 18 से 20 जनवरी तक कोलकाता, पटना और लखनऊ का दौरा करेगी और विभिन्न हितधारकों से बात करेगी। उन्होंने कहा कि कुछ सदस्यों ने जम्मू-कश्मीर जाने की इच्छा व्यक्त की है। इस बारे में निर्णय लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से परामर्श के बाद लिया जाएगा।
लोकसभा में बढ़ाया गया कार्यकाल
वक्फ संशोधन विधेयक के लिए गठित समिति का कार्यकाल बजट सत्र 2025 के आखिरी दिन तक बढ़ाया गया है। लोकसभा ने इस प्रस्ताव पर मंजूरी दे दी। समिति को इस सप्ताह के अंत तक रिपोर्ट देनी थी। मामले में समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल का कहना है कि समिति के सभी सदस्य इस बात पर सहमत हैं कि जेपीसी का कार्यकाल बढ़ाया जाना चाहिए।
क्या है पूरा मामला?
लोकसभा में आठ अगस्त को अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरण रिजिजू ने ‘वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024’ पेश किया था। इसके साथ ही इससे जुड़े निष्क्रिय हो चुके पुराने अधिनियम को कागजों से हटाने के लिए ‘मुसलमान वक्फ (निरसन) विधेयक, 2024’ को भी पेश किया गया था। नए विधेयक का नाम एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तिकरण, दक्षता और विकास अधिनियम होगा। अंग्रेजी में यूनिफाइड वर्क मैनेजमेंट एंपावरमेंट एफिशिएंट एंड डेवलपमेंट यानी ‘उम्मीद’। इस विधेयक का विपक्ष ने पुरजोर विरोध किया था। उसके बाद नौ अगस्त को इसे आगे की चर्चा के लिए संसद की संयुक्त संसदीय समिति को भेज दिया गया था।