छत्तीसगढ़ रिपोर्टर
कोरोना काल में नौकरी छूटने और कारोबार बंद होने पर लोग मानसिक बीमारियों के शिकार अधिक हो रहे हैं। मनोरोग विशेषज्ञों के अनुसार बीते छह माह में एंजाइटी के मरीजों की संख्या तीन गुना ज्यादा हो गई है। यदि व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं हो तो अन्य बीमारी या संक्रमण फैलने का अधिक खतरा रहता है।
मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. संजीव त्यागी ने बताया कि लॉकडाउन में मानसिक रूप से पीड़ित मरीजों की संख्या दो से तीन गुना बढ़ गई है। इमसें अधिकांश ऐसे मरीज सामने आ रहे हैं, जो नौकरी छूटने के डर या कारोबार बंद होने से परेशान हैं। ऐसे में लोगों को मानसिक रूप से बीमार होने का अधिक खतरा रहता है। लॉकडाउन में युवा या वयस्क ही नहीं बच्चे भी अवसाद के शिकार हो रहे है।
स्कूल, कॉलेज, ट्यूश्न बंद होने के चलते वह अपना दिनचर्या केवल बंद कमरे में बिता रहे हैं। ऐसे में पढ़ाई के प्रति एकाग्रता नहीं रहती और बच्चे अन्य क्षेत्रों में दिमाग लगाते हैं। मानसिक दबाव के चलते वह अवसाद के शिकार हो रहे हैं। पिछले छह माह के आंकड़ों में आत्महत्या के मामले भी इसलिए बढ़ गए हैं। जहां माह माह में दस आत्महत्या का आंकड़ा था।
वहीं औसत अब 25 आत्महत्याएं हो रही हैं। हाली में जिले में विभिन्न युवाओं और छात्रों के आत्महत्या करने के मामले सामने आए हैं। ऐसे वक्त में लोगों को अपने मानसिक दबाव को कम करने के लिए अलग-अलग माध्यम से दिन को व्यस्त करना चाहिए। नकारात्मक सोच से हट कर अपने परिवार से या नजदीकि दोस्त से बात करनी चाहिए, जिससे मस्तष्कि में आने वाले गलत ख्याल कम होंगे।
अन्य बीमारी से बचने के लिए मानसकि स्वस्थ्य जरूरी
डॉ. संजीव त्यागी का कहना है कि यदि व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ हों तो वह संक्रमण और अन्य गंभीर बीमारियों से भी दूर रहेंगे। मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति में प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। ऐसे में अन्य बीमारी होने का खतरा अधिक रहता है।
रसायन का असंतुलन मानसिक बीमारी का कारण
जिला मानसिक स्वास्थ्य प्रकोष्ठ की ओर से विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के मौके पर शनिवार को लोनी स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) पर एक कैंप का आयोजन किया जाएगा।
मानसिक बीमारी के लिए कांउसलिंग सेंटर जरूरी
कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल के साइकेट्रिस्ट डॉ. अमूल्य के सेठ ने बताया कि महामारी के बाद आने वाले दिनों में मानसिक स्वास्थ्य सबसे बड़ी चुनौती बन जाएगीइस पर अभी से ध्यान देना जरूरी है। इसको सार्वजनिक स्वास्थ्य का एक अभिन्न अंग बनाने की जरुरत है। इसके लिए दवा स्टोर की तरह काउंसलिंग सेंटर खुलने जरूरी हैं।