छत्तीसगढ़ रिपोर्टर
नई दिल्ली 29 अगस्त 2023। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपसी सहमति वाले विवाह (सामान्यत: प्रेम विवाह) के लिए सार्वजनिक अनुष्ठान या घोषणा की जरूरत नहीं है। कोई भी जोड़ा एक-दूसरे को माला पहनाकर या अंगूठी पहनाने के साधारण समारोह के जरिये वकीलों के चैंबर में शादी कर सकता है। हालांकि, वकील अदालत के अधिकारी की पेशेवर हैसियत से नहीं, बल्कि जोड़े के मित्र, रिश्तेदार या सामाजिक कार्यकर्ता की हैसियत से हिंदू विवाह अधिनियम (तमिलनाडु राज्य संशोधन) की धारा 7(ए) के तहत विवाह करा सकते हैं। जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने मद्रास हाईकोर्ट के निर्णय को पलटते हुए सोमवार को यह फैसला सुनाया। पीठ ने किसी व्यक्ति के जीवनसाथी चुनने के मौलिक अधिकार को बरकरार रखा। मद्रास हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि कुछ अजनबियों की उपस्थिति में गोपनीयता से किया गया विवाह हिंदू विवाह अधिनियम-1955 के अनुसार वैध नहीं है। मामले से जुड़े वकील ए वेलन के अनुसार, शीर्ष अदालत ने बालकृष्ण पांडियन बनाम पुलिस अधीक्षक (2014) मामले में मद्रास हाईकोर्ट के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें यह माना गया था कि वकीलों के जरिये कराई जाने वाली शादी मान्य नहीं हैं और सुयम्मरियाथाई विवाह (आपसी सहमति विवाह) को गुप्त रूप से संपन्न नहीं किया जा सकता है।
एक-दूसरे को पति-पत्नी मानने की घोषणा करनी होगी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, विवाह के इच्छुक जोड़े रिश्तेदारों, दोस्तों या अन्य व्यक्तियों की उपस्थिति में विवाह कर सकते हैं और विवाह में शामिल दोनों पक्ष को उनके समझने योग्य भाषा में यह घोषणा करनी चाहिए कि वे एक-दूसरे को पति या पत्नी मानते हैं।
साधारण समारोह में पूरा किया जा सकता है विवाह
विवाह एक साधारण समारोह में पूरा किया जा सकता है, जिसमें विवाह के पक्षकारों को एक-दूसरे को माला या अंगूठी पहनानी होगी। इनमें से कोई भी, यानी एक-दूसरे को माला पहनाना या अंगुली में अंगूठी डालना या थाली बांधना एक वैध विवाह को पूरा करने के लिए पर्याप्त है।
मद्रास हाईकोर्ट ने वकीलों के खिलाफ कार्रवाई का दिया था निर्देश
शीर्ष अदालत ने 5 मई, 2023 को मद्रास हाईकोर्ट के खिलाफ एक अपील की अनुमति दी, जिसके द्वारा उन वकीलों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई का आदेश दिया गया था, जिनके नेतृत्व में कथित तौर पर एक नाबालिग लड़की की शादी हुई थी।
प्रेम विवाह की घोषणा से खतरे में पड़ सकता है जीवन
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शादी का इरादा रखने वाले जोड़े पारिवारिक विरोध या अपनी सुरक्षा के डर जैसे विभिन्न कारणों से सार्वजनिक घोषणा करने से बचते हैं। ऐसे मामलों में सार्वजनिक घोषणा को लागू करने से जीवन खतरे में पड़ सकता है और अलगाव की आशंका हो सकती है।
मद्रास हाईकोर्ट का व्यक्त विचार था गलत
शीर्ष अदालत ने कहा है कि बालाकृष्णन पांडियन मामले 2014/ में मद्रास हाईकोर्ट की ओर से व्यक्त किया गया विचार गलत था। यह इस धारणा पर आधारित है कि प्रत्येक विवाह के लिए सार्वजनिक अनुष्ठान या घोषणा की आवश्यकता होती है। ऐसा दृष्टिकोण काफी साधारण है, क्योंकि अक्सर माता-पिता के दबाव के कारण विवाह में प्रवेश करने का इरादा रखते वाले जोड़े शादी के बंधन में नहीं बंध पाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मामला धारा 7ए के अनुसार, स्व-विवाह प्रणाली पर आधारित था। धारा 7ए को तमिलनाडु संशोधन द्वारा हिंदू विवाह अधिनियम में शामिल किया गया था। इस धारा के अनुसार दो हिंदू अपने दोस्तों या रिश्तेदारों या अन्य व्यक्तियों की उपस्थिति में बिना रीति-रिवाजों का पालन किए या बिना किसी पुजारी के विवाह की घोषणा किए, विवाह कर सकते हैं।