छत्तीसगढ़ रिपोर्टर
रायपुर 26 फरवरी 2023। कांग्रेस के 85वें राष्ट्रीय महाधिवेशन के तीसरे दिन राहुल गांधी ने अपने संबोधन में भाजपा और आरएसएस पर हमला बोला. राहुल ने कहा कि महात्मा गांधी ने एक शब्द दिया था सत्याग्रह का. इसका मतलब है, सत्य के रास्ते पर चलो. हम सत्याग्रही हैं. और आरएसएस बीजेपी सत्ताग्रही हैं. सत्ता के लिए किसी से मिल जाएंगे, किसी के सामने झुक जाएंगे. राहुल गांधी ने अडानी के मुद्दे पर भी केंद्र सरकार, पीएम नरेंद्र मोदी पर हमला बोला. राहुल ने कहा कि अडानी सबसे बड़ी देशभक्त हो गए और भाजपा उनकी रक्षा कर रही है. क्या है इस अडानी में कि सारे मंत्री उनकी रक्षा कर रहे हैं. राहुल ने आरोप लगाया कि मोदी और अडानी एक हैं. पूरा का पूरा धन एक व्यक्ति के हाथ में जा रहा है और जब हम प्रधानमंत्री से पूछते हैं, रिश्ता क्या है तो पूरी की पूरी स्पीच हटा दी जाती है. पार्लियामेंट में अडानी के बारे में सवाल नहीं पूछा जा सकता है, लेकिन हम पूछेंगे हजारों बार पूछेंगे रुकेंगे नहीं, जब तक अडानी की सच्चाई नहीं निकलेगी, तब तक नहीं रुकेंगे।
चार महीने कन्याकुमारी से श्रीनगर तक भारत जोड़ो यात्रा हमने की. वीडियो में आपने मेरा चेहरा देखा मगर हमारे साथ लाखों लोग चले थे. हर स्टेट में चले. बारिश में गर्मी में बर्फ में एक साथ हम सब चले. बहुत कुछ सीखने को मिला. अभी जब मैं वीडियो देख रहा था मुझे बातें याद आ रही थीं. वीडियो में आपने देखा होगा कि पंजाब में एक मैकेनिक आकर मुझसे मिला. मैंने उसके हाथ पकड़े और सालों की जो तपस्या थी उसकी सालों का जो दर्द था जो खुशी जो दुख जैसे ही मैंने उसके हाथ पकड़े, हाथों से मैंने बात पहचानी। वैसे ही लाखों किसानों के साथ. जैसे ही हाथ पकड़ते थे, गले लगते थे, एक ट्रांसमिशन सा हो जाता था. शुरुआत में बोलने की जरूरत थी कि क्या करते हो, कितने बच्चे हैं, क्या मुश्किलें हैं. ये एक डेढ़ महीने चला. उसके बाद बोलने की जरूरत नहीं होती थी. जैसे ही हाथ पकड़ा, गले लगे, सन्नाटे में एक शब्द नहीं बोला जाता था, मगर जो उनका दर्द था, उनकी मेहनत थी, एक सेकंड में समझ आ जाती थी और जो मैं उनसे कहना चाहता था, बिना बोले समझ जाते थे। आपने बोट रेस देखी होगी केरल में. उस समय जब मैं बोट में बैठा था, पूरी टीम के साथ मैं रोइंग कर रहा था, मेरे पैर में भयंकर दर्द था. मैं उस फोटो में मुस्कुरा रहा हूं मगर मेरे दिल से रोना आ रहा था इतना दर्द था. मैंने यात्रा शुरू की, काफी फिट आदमी हूं. 10-12 किलोमीटर ऐसे ही दौड़ लेता हूं, घमंड था कि 20-25 किलोमीटर चलने में क्या बड़ी बात है. पुरानी इंजरी थी. कॉलेज में चोट लगी थी फुटबॉल खेलते हुए मुझे याद है. मैं दौड़ रहा था, मेरे दोस्त ने अड़ंगी मार दी. दर्द गायब हो गया था सालों के लिए दर्द गायब था और अचानक जैसे ही मैंने यात्रा शुरू की, दर्द वापस आ गया।
आप मेरे परिवार हैं तो मैं कह सकता हूं आपसे सुबह उठता था तो सोचता था कि कैसे चला जाए? और फिर सोचता था कि 25 किलोमीटर नहीं 3500 किलोमीटर चलने हैं, कैसे चलूंगा. कंटेनर से उतरता था, चलना शुरू करता था, लोगों से मिलता तो पहले 10-15 दिन में जिसे आप अहंकार कह सकते हैं, वह गायब हो गया. क्यों गायब हुआ, क्योंकि भारत माता ने मुझे मैसेज दिया, देखो तुम अगर निकले हो, अगर कन्याकुमारी से कश्मीर चलने निकले हो तो अपने दिल से अहंकार मिटाओ नहीं तो मत चलो. मुझे ये बात सुननी पड़ी।
आस्ते आस्ते मैंने नोटिस किया मेरी आवाज चुप होती गई. पहले किसान से मिलता था मैं उसको अपना ज्ञान समझाने की कोशिश करता था थोड़ी जो मुझमें जानकारी है, खेती के बारे में मनरेगा के बारे में, फर्टिलाइजर के बारे में, मैं कहने की कोशिश करता था. आस्ते आस्ते यह सब बंद हो गया. शांति सी आ गई. सन्नाटे में मैं सुनने लगा. ये आस्ते आस्ते बदलाव आया. जब मैं जम्मू कश्मीर पहुंचा वह भी अजीब सी बात थी, मैं बिल्कुल चुप हो गया।
जैसे मेडिटेशन करता है, प्रियंका और मैं विपश्यना करते हैं, बिल्कुल चुप हो गया मैं. मां बैठी हैं. मैं छोटा सा था. 1977 की बात है. चुनाव आया. मुझे चुनाव के बारे में कुछ मालूम नहीं था. 6 साल का था मैं. एक दिन घर में अजीब सा माहौल था. मैं मां के पास गया. मैंने पूछा – मम्मी क्या हुआ? मां कहती हैं, हम घर छोड़ रहे हैं. तब तक मैं सोचता था कि वह घर हमारा था. मैंने मां से पूछा, हम अपने घर को क्यों छोड़ रहे हैं? पहली बार मां ने मुझे बताया कि राहुल ये हमारा घर नहीं है? यह सरकार का घर है. अब हमें यहां से जाना है. मैंने पूछा, कहां जाना है? कहती हैं, नहीं मालूम. नहीं मालूम कहां जाना है. मैं हैरान हो गया. मैंने सोचा था कि वह हमारा घर है।
52 साल हो गए. मेरे पास घर नहीं है. आज तक घर नहीं है. हमारे परिवार का जो घर है. वह इलाहाबाद में है. वह भी हमारा घर नहीं है. जो घर होता है, उसके साथ मेरा अजीब सा रिश्ता है. मैं12 तुगलक लेन में रहता हूं लेकिन वह मेरे लिए घर नहीं है. जब मैं निकला कन्याकुमारी से, मैंने अपने आप से पूछा कि मेरी जिम्मेदारी क्या बनती है? मैं चल रहा हूं, भारत का दर्शन करने, समझने निकला हूं. हजारों लाखों लोग चल रहे हैं, भीड़ है. मेरी क्या जिम्मेदारी है?