छत्तीसगढ़ रिपोर्टर
नई दिल्ली 23 मई 2022। लगातार बढ़ रही महंगाई पर काबू पाने और उपभोक्ताओं को उत्पादों की आसमान छूती कीमतों से राहत देने के लिए सरकार अतिरिक्त दो लाख करोड़ रुपये (26 अरब डॉलर) खर्च कर सकती है। दो सरकारी अधिकारियों ने बताया कि महंगाई के इस दौर में लोगों को राहत देने के लिए सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर टैक्स में जो कटौती की है, उससे सरकारी खजाने को एक लाख करोड़ रुपये की चपत लगेगी। देश में खुदरा महंगाई अप्रैल में बढ़कर आठ साल के उच्च स्तर पर पहुंच गई थी। इस दौरान थोक महंगाई भी बढ़कर 17 साल के उच्च स्तर के पहुंच गई। इस साल कई राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले आसमान छूती महंगाई मोदी सरकार के लिए एक बड़ा सिरदर्द बन गई है।
एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, महंगाई बढ़ाने में रूस-यूक्रेन युद्ध की सबसे बड़ी भूमिका है। इससे वैश्विक बाजार में न सिर्फ कच्चे तेल और कमोडिटी की कीमतें बढ़ी हैं बल्कि उत्पादन लागत पर भी असर पड़ा है। उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए हम पूरी तरह से महंगाई को कम करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। सरकार का अनुमान है कि खाद सब्सिडी देने के लिए अतिरिक्त 500 अरब रुपये की आवश्यकता होगी। हाल ही में एसबीआई ने भी एक रिपोर्ट में कहा था कि देश में महंगाई बढ़ाने में 59 फीसदी भूमिका यूक्रेन युद्ध की है।
उधार लेने से राजकोषीय घाटे में हो सकता है इजाफा
अधिकारियों में से एक ने कहा कि महंगाई से राहत देने और पेट्रोल-डीजल पर टैक्स कटौती जैसे उपायों के लिए सरकार को बाजार से अतिरिक्त उधारी लेने की जरूरत पड़ सकती है। अगर ऐसा हुआ तो 2022-23 के लिए तय राजकोषीय घाटा जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के 6.4 फीसदी के लक्ष्य से ज्यादा पहुंच सकता है। इन उपायों के लिए सरकार बाजार से कितनी उधारी लेगी या वित्तीय घाटा कितना होगा, अधिकारियों ने इस संबंध में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी। हालांकि, अतिरिक्त उधारी से अप्रैल-सितंबर के दौरान पहले से तय 8.45 लाख करोड़ रुपये के कर्ज लेने की सरकार की योजना पर कोई असर नहीं पड़ेगा। फरवरी में पेश बजट में सरकार ने चालू वित्त वर्ष के लिए रिकॉर्ड 14.13 लाख करोड़ रुपये उधार लेने की योजना बनाई है।
विपक्ष के दावे झूठे, उत्पाद शुल्क घटने से राज्यों को नुकसान नहीं : वित्तमंत्री
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने विपक्ष के दावों को झुठलाते हुए कहा है कि पेट्रोल-डीजल पर उत्पाद शुल्क घटाने से राज्यों को नुकसान नहीं होगा। पेट्रोल व डीजल पर लगने वाले सड़क व बुनियादी ढांचा उपकर (आरआईसी) में कमी की गई है। उपकर संग्रह राज्यों से साझा नहीं किया जाता।
उन्हाेंने यह सफाई पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम व विपक्ष के कई नेताओं के शनिवार को आए बयानों के बाद दी। इनमें कहा गया कि उत्पाद शुल्क में कमी लाकर सरकार केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी कम कर रही है। हालांकि रविवार को चिदंबरम ने माना कि उनका शनिवार का बयान सही नहीं था, सिर्फ केंद्र को जाने वाले कर संग्रह में कमी की।
इसलिए हानि नहीं
वित्तमंत्री ने बताया कि मूल उत्पाद शुल्क(बीईडी), विशेष अतिरिक्त उत्पाद शुल्क, आरआईसी और कृषि व बुनियादी ढांचा विकास उपकरण मिलकर पेट्रोल-डीजल पर कुल उत्पाद शुल्क बनाते हैं। इसमें से बीईडी ही राज्यों से साझा होता है, बाकी नहीं। सरकार ने आरआईसी में यह कमी की है, बल्कि नवंबर 2021 में जब पेट्रोल पर 5 और डीजल पर 10 रुपये घटाए थे, तब भी कर के इसी मद में कमी की थी।
2.20 लाख करोड़ का बोझ बढ़ने का अनुमान
वित्तमंत्री के अनुसार शनिवार को हुई उत्पाद शुल्क में कटौती से केंद्रीय कर संग्रह में 1 लाख करोड़ रुपये तक का असर एक साल में होगा। 21 नवंबर में हुई कमी से भी 1.20 लाख करोड़ की कमी का अनुमान है।