समान नागरिक संहिता के लिए मध्यप्रदेश में भी बनेगी समिति

Chhattisgarh Reporter
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छत्तीसगढ़ रिपोर्टर  

भोपाल 02 दिसंबर 2022। समान नागरिक संहिता का मसला एक बार फिर चर्चा में आ गया है। पहले उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने समिति बनाई फिर अक्टूबर में गुजरात में, अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मध्यप्रदेश में समान नागरिक संहिता या यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने के लिए समिति बनाने की घोषणा की है। पिछले दो हफ्तों में असम और कर्नाटक की सरकारों ने भी समान नागरिक संहिता को लागू करने के संकेत दिए हैं। भाजपा इसके लिए प्रतिबद्ध है और अब अपनी सरकारों वाली राज्यों के जरिये दिल्ली तक यह मुद्दा लाने का रास्ता तलाश रही है। राजनीतिक पंडित इसे भाजपा की 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारी के तौर पर देख रही है। 

समान नागरिक संहिता क्या है?

  • संविधान के आर्टिकल-44 में समान नागरिक संहिता की चर्चा की गई है। इसमें कहा गया है कि सरकार देश के हर नागरिक के लिए एक समान कानून लागू करने की कोशिश करेगी। हालांकि, ये कोशिश आज तक सफल नहीं हो सकी है।
  • समान नागरिक संहिता का मतलब है कि देश के हर नागरिक पर एक कानून लागू होगा। देश में शादी से लेकर तलाक, गुजारा भत्ता से लेकर बच्चों को गोद लेने तक के नियम एक जैसे होंगे। 
  • समान नागरिक संहिता लागू करने के पीछे क्या तर्क हैं?
  • सुप्रीम कोर्ट में लगी याचिकाओं में सभी धर्मों में तलाक और गुजारा भत्ता एक-सा करने की मांग की गई है। देश में अलग-अलग धर्मों में शादी, जमीन-जायदाद के उत्तराधिकार, दत्तक लेने, तलाक और गुजारा-भत्ते को लेकर अलग-अलग पांच कानून हैं। आदिवासियों, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड के लोगों को अलग रियायतें हैं। इन सभी कानूनों की जगह भाजपा देश के हर नागरिक के लिए एक कानून लागू करने की पैरवी कर रही है। 
  • इस समय हिंदू, बौद्ध, सिख और जैन धर्म के लोगों पर हिंदू मैरिज एक्ट 1955 और हिंदू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट 1956 के तहत तलाक और गुजारा भत्ता मिलता है। मुसलमानों के मामले वैध विवाह और निकाह से पहले हुए समझौते की स्थिति के मुताबिक निपटाए जाते हैं। उन पर मुस्लिम महिला कानून 1986 लागू होता है। ईसाई भारतीय तलाक कानून 1869 और पारसी लोगों पर पारसी विवाह व तलाक कानून 1936 लागू होता है। जब दो अलग-अलग धर्मों के लड़का-लड़की शादी करते हैं, तो तलाक से जुड़े मामलों के लिए स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 है।
  • इसी तरह कहीं जायदाद में लड़कियों को हिस्सा नहीं दिया जाता। कहीं तलाक लेने से पहले एक साल समझौते के लिए रखा जाता है तो कहीं दो साल। इन मुद्दों को मानवाधिकार से जोड़कर सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं भी दाखिल हुई हैं। इन सभी याचिकाओं का मुद्दा यह है कि समान नागरिक संहिता लागू की जाए, ताकि इन मुद्दों का समाधान निकाला जा सके।  

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