छत्तीसगढ़ रिपोर्टर
नई दिल्ली 05 नवंबर 2022। महिला आरक्षण विधेयक को लेकर बहस एक बार फिर से शुरू हो गई है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस बिल को फिर से सामने लाने को लेकर जवाब मांगा है। अदालत शुक्रवार को उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें 8 साल पहले समाप्त हो चुके इस विधेयक पर फिर से विचार करने की मांग की गई है। जस्टिस संजीव खन्ना और जेके माहेश्वरी की पीठ ने नोटिस जारी किया और केंद्र को 6 हफ्ते के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। साथ ही कोर्ट ने याचिकाकर्ता और नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमन को कानून व न्याय मंत्रालय की ओर से दायर हलफनामे का जवाब देने के लिए और तीन सप्ताह का समय दिया।
‘पितृसत्तात्मक मानसिकता को बदलने की जरूरत’
याचिकाकर्ता की ओर से वकील प्रशांत भूषण पेश हुए, उन्होंने ही याचिका को ड्राफ्ट किया है। इसमें कहा गया है कि ‘हमारे समाज की पितृसत्तात्मक मानसिकता के चलते महिलाओं के उत्पीड़न और उन्हें समान अधिकार देने से वंचित करने के लिए प्रेरित किया है। इसे तभी बदला जा सकता है जब महिलाएं ऐसे बदलाव लाने वाले आधिकारिक पदों पर हों।
केंद्र को नोटिस भेजने के लिए तैयार कोर्ट
5 सितंबर को भी इसी बेंच ने इस मामले पर सुनवाई की थी। पीठ ने इस मामले को महत्वपूर्ण बताया था। साथ ही अदालत ने याचिकाकर्ता को याचिका की एक कॉपी केंद्र के पास भेजने का निर्देश दिया, जाकि मामले पर सरकार की राय जानी जा सके। शुक्रवार को बेंच केंद्र सरकार को नोटिस भेजने के लिए तैयार हो गई।
क्या है महिला आरक्षण विधेयक?
मालूम हो कि महिला आरक्षण विधेयक को 2008 में राज्यसभा में पेश किया गया था। यहां से इसे एक स्थायी समिति के पास भेज दिया गया। 2010 में यह विधेयक राज्यसभा में पास हो गया। हालांकि, 15वीं लोकसभा के भंग होने से 2014 में समाप्त हो गया। ध्यान रहे कि महिला आरक्षण विधेयक लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% सीटें आरक्षित करता है।