छत्तीसगढ़ रिपोर्टर
नई दिल्ली 25 मार्च 2022। लंबे अरसे बाद भारत यात्रा पर आए चीन के विदेश मंत्री वांग यी शुक्रवार सुबह राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल से मिलने दिल्ली के साउथ ब्लॉक स्थित उनके दफ्तर पहुंचे। यी आज ही विदेश मंत्री एस. जयशंकर से भी मुलाकात करेंगे। लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (lLAC) पर दोनों देशों की सेनाओं के बीच जारी गतिरोध को लेकर चीन व भारतीय पदाधिकारियों के बीच सीधी चर्चा हो सकती है। लद्दाख मामले में अब तक 15 बार सैन्य कमांडर स्तरीय वार्ता हो चुकी है, लेकिन कई क्षेत्रों को लेकर गतिरोध कायम है। बीते दो सालों में कोरोना महामारी के चलते चीन के किसी नेता की भारत यात्रा नहीं हुई थी। इसी दौरान लद्दाख गतिरोध को लेकर भी तनाव बढ़ गया था। गलवान घाटी में दोनों देशों की सेना के बीच हिंसक झड़प भी हुई। भारत-चीन के बीच 1962 की जंग के बाद यह पहला ऐसा संघर्ष था।
तिब्बत का मुद्दा उठाने का अनुरोध
इस बीच, तिब्बत की निर्वासित सांसद थुबटेन ग्यात्सो ने भारत सरकार से अनुरोध किया है कि वह चीनी विदेश मंत्री के साथ बैठक में तिब्बत के मुद्दे को उठाए। उन्होंने कहा कि वह यह भी अनुरोध करे कि चीन सरकार दलाई लामा के साथ बातचीत शुरू करे और तिब्बत में दमनकारी नीति बंद करे।
भारत-चीन सीमा विवाद
यह दौरा इस मायने में भी अहम है कि हाल के समय में भारत-चीन के बीच लद्दाख सीमा विवाद और गलवान संघर्ष को लेकर विवाद रहा है। विवाद ने पिछले साल गंभीर स्थिति धारण कर ली थी और दोनों देशों ने बड़ी तादाद में सीमा पर सैनिकों की तैनाती कर दी। इसे लेकर दोनों पक्षों में कमांडर स्तर की बातचीत भी हो रही है, लेकिन अभी तक सैनिकों की वापसी का मुद्दा हल नहीं हो पाया है। इस संबंध में अब तक दर्जनभर से ज्यादा दौर की वार्ता हो चुकी है लेकिन कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया है।
ओआईसी बैठक में बयान को लेकर विवादों में आए वांग यी
वहीं, वांग यी इस्लामाबाद में हुए ओआईसी की बैठक में अपने बयान के लिए भी विवादों में हैं। ओआईसी बैठक के दौरान इस्लामाबाद में वांग ने कहा था कि कश्मीर पर हमने आज फिर से अपने कई इस्लामी दोस्तों की पुकार सुनी है। चीन भी यही उम्मीद साझा करता है।
इस पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने तीखी प्रतिक्रिया जताई थी। विदेश मंत्रालय ने कहा था, हम उद्घाटन समारोह में अपने भाषण के दौरान चीनी विदेश मंत्री वांग यी द्वारा भारत के लिए अनावश्यक संदर्भ को खारिज करते हैं। प्रवक्ता ने कहा कि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर से संबंधित मामले पूरी तरह से भारत के आंतरिक मामले हैं। चीन सहित अन्य देशों को टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है। उन्हें ध्यान देना चाहिए कि भारत उनके आंतरिक मुद्दों को लेकर ऐसा करने से परहेज करता है।
किसी बयान की आलोचना करते समय किसी विदेश मंत्री का नाम लेना काफी असामान्य माना जाता है और यह इस मामले पर भारत के सख्त रुख को दर्शाता है।
जयशंकर बोले- भारत में विदेश नीति के फैसले राष्ट्रीय हितों के अनुरूप लिए
वहीं, भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि भारत अपने सिद्धांतों पर स्पष्ट है। विदेश नीतियों के फैसले भारत में राष्ट्रीय हितों के अनुकूल लिए जाते हैं। यह हमारी सोच और विचारों से प्रदर्शित होते हैं। उन्होंने यूक्रेन की स्थिति को व्यापार से जोड़ने के सवाल को सिरे से नकार दिया। विदेश मंत्री कहा कि अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को राज्यों की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए। राज्यसभा में प्रश्न के उत्तर में लिखित जवाब को सदन पटल पर रखा गया है।
चीनी विदेश मंत्री ने अचानक काबुल पहुंच सबको चौंकाया
इससे पहले चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने बृहस्पतिवार को अचानक काबुल पहुंचकर सबको चौंका दिया था। वह अफगानिस्तान के तालिबान शासकों से मिलने के लिए काबुल पहुंचे। हालांकि, कक्षा छह से ऊपर की लड़कियों के लिए स्कूल खोलने का वादा तोड़ने जैसे रूढ़िवादी कदम को लेकर एक दिन पहले ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने तालिबान शासन पर नाराजगी जताई थी।
बख्तर समाचार एजेंसी ने एलान किया कि वांग यी विभिन्न मुद्दों पर चर्चा के लिए तालिबान के नेताओं से मिलेंगे। राजनीतिक संबंध, आर्थिक मामले और आपसी सहयोग के मुद्दों पर वह चर्चा करेंगे। चीन ने अब तक तालिबान को मान्यता देने का कोई संकेत नहीं दिया है। स्कूल जाने और काम करने के लिहाज से महिलाओं के प्रति दमनकारी नीति के बावजूद चीन ने तालिबान शासकों की आलोचना करने से भी परहेज ही किया है। अफगानिस्तान का अब तक दौरा करने वाले शीर्ष स्तर के चुनिंदा नेताओं में अब वांग भी शामिल हो गए हैं। चीन ने भले ही तालिबान को मान्यता न दी हो, लेकिन वह उससे लगातार संपर्क में है।
चीन के अफगानिस्तान में कई हित
चीन के अफगानिस्तान में खनन व आर्थिक हित हैं। तालिबान व चीनी अफसरों की वार्ता से अवगत अफगान सूत्रों के मुताबिक चीन तालिबान शासकों से आश्वासन चाहता है कि वह चीन के उइघर विद्रोहियों को अपने यहां से अभियान चलाने की अनुमति नहीं देंगे। खबरें हैं कि उइघर के ‘पूर्वी तुर्किस्तान आंदोलन’ के सदस्य, जो उत्तर पश्चिम चीन में स्वतंत्र देश की मांग कर रहे हैं, अफगानिस्तान में मौजूद हैं।