छत्तीसगढ़ रिपोर्टर
अहमदाबाद। पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी की बेटी राधिका ने रविवार को अपने फेसबुक पेज पर एक भावनात्मक पोस्ट लिखकर अपने पिता के संघर्ष के बारे में बताया। इस पोस्ट के जरिए राधिका ने उन सभी लोगों को आड़े हाथों लिया है, जिन्होंने उनके पिता की मृदुभाषी छवि को उनके फेल होने का कारण बताया। राधिका ने लिखा कि क्या राजनेताओं में संवेदनशीलता नहीं होना चाहिए? क्या यह एक आवश्यक गुण नहीं है जो हमें एक नेता में चाहिए? क्या नेता अपने मृदुभाषी छवि के जरिए लोगों की सेवा नहीं करते। राधिका ने लिखा कि मेरे पिता का संघर्ष वर्ष 1979 में शुरू हुआ था। उस दौरान उन्होंने मोरबी बाढ़, अमरेली में बादल फटने की घटना, कच्छ भूकंप, स्वामीनारायण मंदिर आतंकवादी हमले, गोधरा की घटना, बनासकांठा की बाढ़ के दौरान अपनी जान दांव पर लगाकर लोगों की सेवा की। इतना ही नहीं ताउते तूफान और यहां तक कि कोविड के दौरान भी मेरे पिता पूरी जी-जान लगाकर काम कर रहे थे।
आंतकी हमले के वक्त नरेंद्र मोदी से पहले पहुंचे थे मेरे पिता
राधिका ने कहा कि साल 2002 में स्वामी नारायण अक्षरधाम मंदिर में आंतकी हमले के वक्त मेरे पिता घटनास्थल पर पहुंचने वाले पहले शख्स थे, वह नरेंद्र मोदी से पहले ही मंदिर परिसर पहुंचे थे। राधिका ने कहा कि उसके पिता 2001 के भूकंप के दौरान भचाऊ में बचाव और पुनर्वास का काम कर रहे थे और इस दौरान उन्हें और उनके भाई ऋषभ को भूकंप को समझने के लिए कच्छ ले गए थे। राधिका ने आगे लिखा कि जब हमलोग बच्चे थे तो मेरे पिता रविवार को हमें मूवी थिएटर में नहीं ले जाते थे लेकिन इसकी जगह वे भाजपा कार्यकर्ताओं के घर घुमाते थे।
मेरे पिता ने जनसरोकार से संबंधित कई कानून लाए
राधिका ने कहा कि मेरे पिता ने कई कड़े कदम भी उठाए हैं। भूमि हथियाने वाला कानून, लव जिहाद, गुजरात आतंकवाद नियंत्रण और संगठित अपराध अधिनियम (गुजसीटीओसी) जैसे फैसले इस बात के सबूत हैं। मैं पूछना चाहती हूं कि क्या कठोर चेहरे का भाव पहनना ही एक नेता की निशानी है?
मेरे पिता ने कभी भी गुटबाजी का समर्थन नहीं किया
राधिका ने कहा कि घर पर हम हमेशा चर्चा करेंगे कि क्या मेरे पिता की तरह एक साधारण व्यक्ति भारतीय राजनीति में जीवित रहेगा जहां भ्रष्टाचार और नकारात्मकता प्रचलित है। मेरे पिता हमेशा कहते थे कि राजनीति और राजनेताओं की छवि भारतीय फिल्मों और सदियों पुरानी धारणा से प्रभावित है और हमें इसे बदलना होगा। उन्होंने कभी भी गुटबाजी का समर्थन नहीं किया और यही उनकी विशेषता थी। कुछ राजनीतिक विश्लेषक सोच रहे होंगे कि – ‘यह विजयभाई के कार्यकाल का अंत है’ – लेकिन हमारी राय में उपद्रव या प्रतिरोध के बजाय, आरएसएस और भाजपा (एसआईसी) के सिद्धांतों के अनुसार सत्ता को लालच के बिना छोड़ देना बेहतर है।