छत्तीसगढ़ रिपोर्टर
नई दिल्ली 19 नवंबर 2023। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार (19 नवंबर) को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उनकी 105वीं जयंती पर श्रद्धांजलि दी। इस मौके पर कई कांग्रेस नेताओं ने भी उन्हें याद किया, जिसके तहत पार्टी नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी, राहुल गांधी ने शक्ति स्थल जाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी।
कांग्रेस नेताओं ने अर्पित की श्रद्धांजलि
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने खड़गे ने एक्स पर पोस्ट कर कहा कि इंदिरा गांधी ने देश के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर दिया. “भारत की पहली महिला प्रधान मंत्री और हमारी आदर्श इंदिरा गांधी को उनकी जयंती पर हमारी विनम्र श्रद्धांजलि। भारत की एकता और अखंडता को बनाए रखने और हमारे देश को मजबूत और प्रगतिशील बनाने में, उन्होंने लगातार भारत के लिए कुशल नेतृत्व, सच्ची निष्ठा और दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रदर्शन किया और देश के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर दिया। राहुल गांधी ने अपनी दादी इंदिरा गांधी को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि वह लोगों के लिए प्रधानमंत्री थीं, लेकिन उनके लिए वह दादी और शिक्षिका थीं। “भारत के लिए, एक जन नेता, प्रधान मंत्री। मेरे लिए, मेरी दादी, मेरी शिक्षिका। देश और जनता के प्रति समर्पण के आपके द्वारा सिखाए गए मूल्य मेरे हर कदम की ताकत हैं, मेरी सोच की ताकत हैं!
इंदिरा गांधी का राजनीतिक सफर
इंदिरा गांधी का जन्म 19 नवंबर, 1917 को हुआ था। इंदिरा गांधी भारत की राजनीति में एक ऐसा नाम है, जिनका व्यक्तित्व और कृतित्व सदा चर्चा में रहा। देश की पहली और एकमात्र महिला प्रधानमंत्री के तौर पर उन्होंने ऐसे कई फैसले लिए, जिनकी वजह से मोरारजी देसाई द्वारा ‘‘गूंगी गुड़िया” कही गई इंदिरा ‘आयरन लेडी’ के तौर पर उभरीं। जवाहरलाल नेहरू और कमला नेहरू के यहां 19 नवंबर, 1917 को जन्मी कन्या को उसके दादा मोतीलाल नेहरू ने इंदिरा नाम दिया और पिता ने उसके सलोने रूप के कारण उसमें प्रियदर्शिनी भी जोड़ दिया।
फौलादी हौसले वाली इंदिरा गांधी ने लगातार तीन बार और कुल चार बार देश की बागडोर संभाली। सियासत की माहिर इंदिरा के कुड फैसले विवादित भी रहे। प्रधानमंत्री के रूप में उनकी सिफारिश पर देश में लगाए गए आपातकाल को उन्हीं फैसलों में गिना जाता हैं, जिसकी वजह से उन्हें अपनी सत्ता से भी हाथ धोना पड़ा और एक अन्य विवादित फैसला उनकी मौत की वजह बना। जून 1984 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में सैन्य कार्रवाई की कीमत उन्हें अपने सिख अंगरक्षकों के हाथों जान गंवाकर चुकानी पड़ी।