रेप और हत्या के दोषी की ‘सजा ए मौत’ पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक, महाराष्ट्र पुलिस को लगाई फटकार

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छत्तीसगढ़ रिपोर्टर

नई दिल्ली 20 मई 2023। सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में छह वर्षीय एक बच्ची के साथ कथित बलात्कार और उसकी हत्या के मामले में एक व्यक्ति की दोषसिद्धि और मौत की सजा को निरस्त करते हुए कहा कि जांच में ‘‘कई खामियों” के कारण इस तरह के बर्बर कृत्य के दोषी को सजा नहीं दी सकी। शीर्ष अदालत ने इस मामले में महाराष्ट्र पुलिस की जांच के तरीके का जिक्र करते हुए कहा कि कई खामियों ने सभी चीजों को कमजोर कर दिया और बताए गए घटनाक्रम में ‘‘बड़े अंतर” के कारण दोष स्थापित नहीं किया जा सकता। जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने बंबई हाईकोर्ट के अक्टूबर 2015 के फैसले के खिलाफ आरोपी द्वारा दायर अपील पर यह फैसला सुनाया।

बंबई हाईकोर्ट ने आरोपी को दोषी ठहराने और मौत की सजा देने के एक निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा था। शीर्ष अदालत ने अपील को स्वीकार करते हुए आरोपी को दोषी ठहराए जाने के फैसले को खारिज कर दिया और आदेश दिया कि यदि आरोपी की किसी अन्य मामले में आवश्यकता नहीं है, तो उसे रिहा किया जाए। पीठ ने कहा कि यह सच है कि दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई और छह साल की छोटी उम्र में एक ऐसा जीवन भयानक रूप से नष्ट हो गया, जिसके भविष्य में बहुत कुछ रखा था। इसने कहा कि माता-पिता को एक अपूरणीय क्षति हुई है और उन्हें एक ऐसा घाव मिला है जिसका कोई इलाज नहीं है।

पीठ ने शुक्रवार को दिए अपने आदेश में कहा, ‘‘इस मामले से जुड़ी ऐसी दर्दनाक वास्तविकताओं के बावजूद हम कानून के दायरे में रहकर यह नहीं कह सकते कि अभियोजन पक्ष ने अपीलकर्ता और किसी अन्य के अपराध को साबित करने के लिए आवश्यक कदम उठाए हैं।” इसने कहा, ‘‘दरअसल (बताए गए) घटनाक्रम में बड़े अंतर हैं, जिसके कारण अपीलकर्ता का दोष स्थापित नहीं हो पाता। शीर्ष अदालत ने कहा कि महाराष्ट्र के ठाणे में जून 2010 में प्राथमिकी दर्ज की गई थी और निचली अदालत ने नवंबर 2014 में आरोपी को दोषी ठहराया था एवं मृत्युदंड दिया था। इसने कहा कि निचली अदालतों ने पाया था कि अभियोजन पक्ष ने इस बात को संदेह से परे स्थापित किया कि आरोपी ने बच्ची का यौन उत्पीड़न करने के बाद उसकी हत्या की थी और सबूत नष्ट करने के लिए शव को एक नाले में फेंक दिया था।

शीर्ष अदालत ने कहा कि यह पारिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित मामला है, क्योंकि किसी ने भी वह अपराध होता नहीं देखा, जिसके लिए अपीलककर्ता को आरोपी बनाया गया है। पीठ ने कहा कि भले ही डीएनए सबूत मौजूद है, लेकिन इसकी विश्वसनीयता संदेह से परे नहीं है।

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