छत्तीसगढ़ रिपोर्टर
ताइपे 09 अप्रैल 2023। ताइवान की राष्ट्रपति के अमेरिकी दौरे से चीन और ताइवान में तनाव काफी बढ़ गया है। ताइवान के मीडिया का दावा है कि शनिवार को चीन के 71 सैन्य विमान और 9 जहाज ताइवान की सीमा के आसपास दिखाई दिए हैं। ताइवान के मिनिस्टरी ऑफ नेशनल डिफेंस का कहना है कि 45 विमानों ने ताइवान की वायुसीमा में प्रवेश भी किया। वहीं ताइवान में स्थित अमेरिकी दूतावास ने रविवार को बयान जारी कर कहा कि अमेरिका चीन के युद्धाभ्यास पर नजर रखे हुए है। साथ ही अमेरिका को विश्वास है कि क्षेत्रीय शांति को स्थापित करने के लिए उसके पास पर्याप्त संसाधन और क्षमता मौजूद है।
चीन ने अपनाया आक्रामक रुख
मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, ताइवान के रक्षा मंत्रालय ने चीन के जिन विमानों को ताइवान की सीमा के आसपास ट्रैक किया, उनमें चीन के युद्धक विमान जे-10, जे-11 और जे-16 शामिल थे। इनके अलावा चीन के ट्रांसपोर्ट विमान, बॉम्बर विमान और चेतावनी देने वाले विमान भी शामिल थे। ताइवान द्वारा चीन के सैन्य विमानों और जहाजों पर लगातार नजर रखी जा रही है। बता दें कि चीन की सेना ने तीन दिन तक ताइवान के चारों तरफ युद्धाभ्यास करने का एलान किया है। चीन का यह एलान ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग वेन की अमेरिका यात्रा और वहां अमेरिका के निचले सदन के सभापति से मुलाकात के बाद आया है।
क्या है ताइवान को लेकर विवाद
ताइवान एक द्विपीय देश है और चीन के दक्षिणी पूर्वी तट से करीब 100 मील दूर स्थित है। चीन, ताइवान को अपना ही एक प्रांत मानता है। यही वजह है कि चीन ताइवान के किसी अन्य देशों से रिश्तों को लेकर सहज नहीं रहता। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग कह चुके हैं कि ताइवान का चीन के साथ एकीकरण होकर रहेगा। वहीं ताइवान खुद को एक स्वतंत्र राष्ट्र मानता है, जिसका अपना संविधान और चुनी हुई सरकार है।
दुनिया के लिए क्यों अहम है ताइवान?
हिंद प्रशांत महासागर क्षेत्र में अपना दबदबा बनाने के लिहाज से भी ताइवान की भौगोलिक स्थित बेहद अहम है। यही वजह है कि अमेरिका चाहता है कि ताइवान आजाद रहे, जिससे चीन का इस क्षेत्र में प्रभुत्व कायम ना हो सके। साथ ही वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए भी ताइवान अहम है। आज इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का जमाना है और इन गैजेट्स जैसे मोबाइल फोन, लैपटॉप, घड़ियों और गेमिंग उपकरणों में जो चिप लगती है, उनमें से ज्यादातर चिप का निर्माण ताइवान में होता है। वन मेजर कंपनी दुनिया के कुल चिप निर्माण में से आधे का निर्माण करती है और यह कंपनी ताइवान की है। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर ताइवान पर चीन कब्जा कर लेता है तो दुनिया के लिए बेहद अहम चिप उद्योग पर भी चीन का दबदबा कायम हो जाएगा। अमेरिका यकीनन ये नहीं चाहेगा। यही वजह है कि अमेरिका लगातार ताइवान के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने में जुटा है और चीन लगातार ताइवान पर दबान बनाकर उसे डराने की कोशिश कर रहा है।
क्या है ताइवान का इतिहास
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद चीन में कम्युनिस्ट पार्टी और वहां की सत्ताधारी नेशनलिस्ट पार्टी (कुओमिंतांग) के बीच लड़ाई चल रही थी। 1949 में माओत्से तुंग के नेतृत्व में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी जीत गई और उन्होंने बीजिंग पर कब्जा कर लिया। वहीं हार के बाद कुओमिंतांग के लोग चीन की मुख्य भूमि को छोड़कर दक्षिणी पश्चिमी द्वीप ताइवान चले गए। कुओमिंतांग ने ही ताइवान में सत्ता कायम की और अधिकतर समय ताइवान में इसी पार्टी का शासन रहा है। यही वजह है कि ताइवान खुद को अलग देश मानता है और चीन का दावा है कि ताइवान उन्हीं का हिस्सा है।