छत्तीसगढ़ रिपोर्टर
नई दिल्ली 07 फरवरी 2023। सुप्रीम कोर्ट ने हेट क्राइम (घृणा अपराध) में प्राथमिकी दर्ज करने में देरी पर उत्तर प्रदेश पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा, अगर आप इसे नजरअंदाज करेंगे तो एक दिन आप भी इसके लपेटे में आएंगे। शीर्ष अदालत ने कहा, भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म के आधार पर इस तरह के अपराधों के लिए कोई जगह नहीं है। जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा, नागरिकों की रक्षा करना, राज्य का प्राथमिक कर्तव्य है। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने टोपी पहनी हुई थी … जब इस तरह के अपराधों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाती है तो एक माहौल बनाया जाता है जो बेहद खतरनाक मुद्दा है। इसे जड़ से खत्म करना होगा। पीठ 62 वर्षीय काजीम अहमद शेरवानी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने जुलाई 2021 में नोएडा में एक कथित घृणा अपराध का शिकार होने का दावा किया है। शेरवानी ने उसे प्रताड़ित करने वालों और उन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की जिन्होंने कोई कदम उठाने से इन्कार कर दिया था।
चाहें अल्पसंख्यक हो या बहुसंख्यक, कुछ अधिकार मनुष्यों के लिए निहित
पीठ ने यूपी सरकार की ओर से पेश एडिशनल एडवोकेट जनरल गरिमा प्रसाद से कहा, क्या आप स्वीकार नहीं करेंगे कि एक घृणा अपराध है और आप इसे छिपाना चाहेंगी? हम केवल अपनी पीड़ा व्यक्त कर रहे हैं। चाहे अल्पसंख्यक हों या बहुसंख्यक, कुछ अधिकार हैं जो मनुष्य में निहित हैं। आप एक ऐसे परिवार में पैदा हुए हैं और पले-बढ़े, लेकिन हम एक राष्ट्र के रूप में खड़े हैं। आपको इसे गंभीरता से लेना होगा।
राज्य ने घृणा अपराध मानने से किया इन्कार
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील हुजेफा अहमदी ने तर्क दिया कि राज्य सरकार ने इस मामले को घृणा अपराध के रूप में स्वीकार करने और तुरंत कार्रवाई करने से इन्कार कर दिया। इसके विपरीत एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) केएम नटराज ने प्रस्तुत किया कि प्रतिरोध के कारण उन्हें चोटें आई हैं। पीठ ने पलटवार करते हुए कहा, इस बात से इन्कार नहीं किया जाना चाहिए कि इस देश में वास्तव में ऐसे लोग मौजूद हैं जो सांप्रदायिक रवैया रखते हैं और वे आमतौर पर ऐसा करते हैं। एएसजी ने तर्क दिया कि सिर्फ इसलिए कि याचिकाकर्ता एक समुदाय से संबंधित है, इसे घृणा अपराध नहीं बनाता है। पीठ ने कहा, यदि आप इसे नजरअंदाज करते हैं, तो एक दिन आप भी इसकी चपेट में आ सकते हैं। संरक्षित वर्ग के लिए कोई समस्या नहीं है लेकिन यह आम आदमी को प्रभावित करता है, हम उनकी सुरक्षा से समझौता नहीं कर सकते हैं। पीठ ने कहा, समाधान तभी निकाला जा सकता है जब आप समस्या को पहचानेंगे।
पुलिस दो हफ्ते में दे रिपोर्ट
पीठ ने उत्तर प्रदेश पुलिस से दो सप्ताह के भीतर विवरण देने को कहा कि जून 2021 की इस घटना के आरोपियों को कब पकड़ा गया। उन्हें कब जमानत दी गई। इससे पहले भी पीठ ने धार्मिक सभाओं के दौरान घृणा अपराधों और भाषणों के आरोपियों के खिलाफ मामले दर्ज करने में राज्य की विफलता पर नाराजगी व्यक्त की थी।
क्या है मामला
काजिम अहमद शेरवानी ने याचिका में बताया कि 4 जुलाई, 2021 को जब वह नोएडा से कार से अलीगढ़ के लिए रवाना हुआ, रास्ते में अपराधियों के एक ‘पेचकश गिरोह’ ने उस पर हमला किया। धर्म के आधार पर उसके साथ मारपीट की और दुर्व्यवहार किया। उसने जब पुलिस में शिकायत दी तो घृणा अपराध में मामला दर्ज करने के बजाय पुलिस ने भी उसे परेशान किया।