कॉरपोरेट कल्चर वाली टीम ने डुबोई सपा की लुटिया, अखिलेश ने अपने आसपास बनाया गैर सियासी लोगों का घेरा

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छत्तीसगढ़ रिपोर्टर  

लखनऊ 13 मार्च 2022। विधानसभा चुनाव में सपा की कॉरपोरेट कल्चर वाली टीम की हर रणनीति फेल रही। वह पार्टी का संदेश जनता तक नहीं पहुंचा पाई। इसका नतीजा यह हुआ कि तमाम प्रयासों के बावजूद सियासी वैतरणी में सपा की लुटिया डूब गई। युवाओं के जोश के बीच वोट बैंक जरूर बढ़ा, लेकिन पार्टी बहुमत के आंकड़े तक नहीं पहुंच पाई। ऐसे में पुरानी समाजवादियों का कहना है कि सपा को फिर से मुलायम सिंह यादव की रणनीति अपनानी होगी। सपा के अंदरखाने में हमेशा से यह चर्चा रही कि शीर्ष नेतृत्व के आसपास गैर सियासी अनुभव वाली टीम का घेरा है। यही नहीं, इस टीम के सदस्यों का जनता से सीधे सरोकार भी नहीं है। कॉरपोरेट कल्चर में विश्वास रखने वाले इन सिपहसलारों ने जनता से मिले फीडबैक पर कुंडली मार रखी है।

सूत्रों का यह भी कहना है कि ऐसे लोगों की वजह से पार्टी के वरिष्ठ नेता जनता के फीडबैक को राष्ट्रीय अध्यक्ष तक नहीं पहुंचा पाते हैं। क्योंकि इसके लिए उनको सिपहसलारों के घेरे को तोड़ना पड़ता। हालांकि जिस किसी ने उस घेरे को तोड़ने की कोशिश की, उन्हें देर सबेर इसका खामियाजा भुगतना पड़ा है। इसका प्रमाण है, जिला पंचायत चुनाव के दौरान जिन लोगों ने हकीकत बताने का प्रयास किया था, उन्हें विधानसभा चुनाव में टिकट से हाथ धोना पड़ा है। सूत्रों का कहना है कि यदि कोई वरिष्ठ नेता फीडबैक देना चाहता है। तो उसके शीर्ष नेतृत्व से मिलने पर पाबंदी लगा दी जाती है। यह पाबंदी शीर्ष नेतृत्व और जनता के बीच बनने वाले सेतु को तोड़ देती है। वरिष्ठ पत्रकार मिथिलेश सिंह कहते हैं कि सपा को एक बार फिर अपनी उत्पत्ति व विकास पर चिंतन करने की जरूरत है। मुलायम सिंह यादव के संघर्ष से प्रेरणा लेकर सियासी गुलदस्ता तैयार करना होगा। कॉरपोरेट की अच्छाइयों को स्वीकार कर जनता से सीधे संवाद कायम करना होगा।

2012 में जीत के बाद शुरू हुआ कॉपोरेट कल्चर
सपा को वर्ष 2012 में बड़ी जीत मिली। इसके बाद पार्टी में कॉरपोरेट कल्चर शुरू हुआ। गैर सियासी अनुभव वालों का घेरा बनते ही सपा सत्ता के दूर होती गई। पार्टी के कई दिग्गज नेता भी यह स्वीकार करते हैं कि शीर्ष नेतृत्व के आसपास रहने वाले घेरे में शामिल सदस्य एक-दूसरे को सबक सिखाने की व्यक्तिगत खुन्नस में भी पार्टी का नुकसान कर रहे हैं। इसका बड़ा असर टिकट बंटवारे में भी देखने को मिला है। टिकटों की अदला-बदली में ऐसे लोगों ने बड़ा खेल किया। इसका नतीजा है कि जहां अदला-बदली का खेल चला, वहां पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है।

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