छत्तीसगढ़ रिपोर्टर
कोलकाता 15 फरवरी 2022। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर क्षेत्रीय क्षत्रपों को साधने में जुट गई हैं। लेकिन भाजपा के खिलाफ तैयार होने वाले इस मोर्चे में कांग्रेस के लिए कोई जगह नहीं है। बनर्जी ने सोमवार को कहा कि कांग्रेस पार्टी के किसी क्षेत्रीय दल से सौहार्द पूर्ण संबंध नहीं हैं। इसलिए कांग्रेस अपने रास्ते जाए, हम अपने रास्ते जाएंगे। लेकिन दिलचस्प यह है कि कांग्रेस तमिलनाडु में डीएमके गठबंधन में शामिल है।
ममता ने रविवार को ही तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव से फोन पर बात की थी। इसके बाद, जल्द ही विपक्षी दलों के मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाने को कहा है। वहीं, राव ने कहा कि वह और तृणमूल सुप्रीमो जल्द ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से मुलाकात करेंगे।
संघीय ढांचे को बचाने का प्रयास
बंगाल में निकाय चुनाव में चारों सीटों पर जीत का परचम लहराने के बाद तृणमूल प्रमुख ने कहा, हम एकसाथ मिलकर देश के संघीय ढांचे को बचाने का प्रयास कर रहे हैं। क्षेत्रीय दलों में सहमति बनानी होगी। आसनसोल, बिधाननगर, सिलीगुड़ी और चंदननगर में नतीजों की अंतिम घोषणा बाकी है।
टीआरएस और यूपीए की सहयोगी डीएमके साथ
बीते दिनों शिवसेना और एनसीपी ने ममता की क्षेत्रीय दलों की अगुवाई करने की मुहिम को झटका दिया था। दोनों दलों ने कहा था कि कांग्रेस के बिना भाजपा के खिलाफ विपक्षी एकता की बात बेमानी है। हालांकि अब संघीय ढांचा बचाने की नई मुहिम में ममता को तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव और तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन का साथ मिला है। इनमें स्टालिन की पार्टी यूपीए की सहयोगी है। इनमें राव को महाराष्ट्र के सीएम उद्धव तो स्टालिन को आंध्रप्रदेश के सीएम जगनमोहन रेड्डी को साधने की जिम्मेदारी मिली है।
कांग्रेस की बढ़ सकती है परेशानी
दरअसल मुख्यमंत्रियों की बैठक के लिए दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल राजी हैं। ममता, स्टालिन, चंद्रशेखर खुद इस मुहिम को चला रहे हैं। झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन भी राज्यपाल की भूमिका को लेकर नाराज हैं। ऐसे में अगर इस मुहिम को उद्धव और जगनमोहन का साथ मिला तो न सिर्फ क्षेत्रीय दलों के मजबूत गठबंधन की संभावना मजबूत होगी, बल्कि कांग्रेस की परेशानी और बढ़ेगी।
पांच राज्यों के नतीजे से भी बनेंगे समीकरण
क्षेत्रीय दलों के संयुक्त मोर्चे का भविष्य बहुत हद तक उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे पर भी निर्भर करेगा। अगर इन चुनावों में कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाई, आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस को विस्तार का मौका मिला और उत्तर प्रदेश में बाजी पलटी तो ममता की स्थिति मजबूत हो जाएगी। गौरतलब है कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव और दिल्ली के सीएम केजरीवाल से ममता के रिश्ते मजबूत हैं। भविष्य की रणनीति के तहत ही ममता उत्तर प्रदेश में सपा के समर्थन में प्रचार के लिए उतरी थीं।
कांग्रेस को मजबूर करने की रणनीति
दरअसल सारी रणनीति गैरभाजपा-गैरकांग्रेस विपक्ष को साध कर कांग्रेस को क्षेत्रीय दलों के अगुवाई में बनने वाले मोर्चा को समर्थन के लिए मजबूर करने की है। इस मुहिम में शामिल क्षेत्रीय दलों का मानना है कि कांग्रेस भाजपा के सामने मजबूत विकल्प पेश करने में नाकाम रही है।ममता बनर्जी ने कहा कि “हम संघीय ढांचे को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे खतरनाक समय में यह कांग्रेस का कर्तव्य था कि वह सभी धर्मनिरपेक्ष ताकतों को एक मंच पर लाती। मैंने पहले कांग्रेस और माकपा को हाथ मिलाने के लिए कहा था। अगर वह नहीं माने तो मैं क्या कर सकती हूं।”