
छत्तीसगढ़ रिपोर्टर
नई दिल्ली 15 सितम्बर 2023। सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया गया है कि वह जनप्रतिनिधि कानून में उल्लेखित कुछ अपराधों में दोषी सांसदों की चुनावी राजनीति पर आजीवन प्रतिबंध लगाने पर विचार करे। रिपोर्ट में कहा गया है कि सांसदों को अन्य नागरिकों की तुलना में कानूनों का ज्यादा पालन करना चाहिए। बता दें कि यह रिपोर्ट वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया ने दायर की है। विजय हंसारिया आपराधिक मामलों में राजनेताओं के खिलाफ त्वरित सुनवाई करने वाली जनहित याचिका में भी न्याय मित्र हैं। वकील स्नेहा कलिता की मदद से विजय हंसारिया ने अदालत में जनप्रतिनिधि कानून की धारा 8 का उल्लेख किया और कहा कि यह दोषी राजनेता के रिहाई के बाद छह साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लगाता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कानून में छह साल के बाद दोषी राजनेता को फिर से चुनावी राजनीति में शामिल करने की अनुमति दी गई है। यह स्पष्ट रूप से मनमाना और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।
जनप्रतिनिधि कानून की धारा 8 को दी गई थी चुनौती
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ 15 सितंबर को इस रिपोर्ट पर सुनवाई करेगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि संसद ने अयोग्यता के उद्देश्य से अपराधों को उनकी प्रकृति, गंभीरता के आधार पर वर्गीकृत किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सांसदों को अधिक पवित्र और कानून का पालन करने वाला होना चाहिए। सांसद और विधायक लोगों की संप्रभु इच्छा का प्रतिनिधित्व करते हैं और एक बार नैतिक अपराध से जुड़े पाए जाने के बाद उन्हें स्थायी रूप से चुनावी राजनीति से अयोग्य घोषित कर दिया जाना चाहिए। वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने भी जनप्रतिनिधि कानून की धारा 8 की वैधता को चुनौती दी है। केंद्र ने 2020 में अपने हलफनामे में इसका विरोध किया था और कहा था कि कानून निर्माताओं और आम नागरिकों के बीच कोई भेदभाव नहीं है। इसमें कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने भी धारा 8 की वैधता को बरकरार रखा था।