छत्तीसगढ़ रिपोर्टर
कोंडागांव 28 अगस्त 2022। छत्तीसगढ़ का बस्तर अपनी अनोखी परंपरा के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है. रियासत काल से जुड़ी परंपरा आज भी कायम है. छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले में ऐसा ही एक मंदिर है जो अपने अनोखी परंपरा और नि:संतान दंपतियों को संतान प्राप्ति की मन्नत पूरी होने के लिए जाना जाता है. जिले के फरसगांव के बड़े डोंगर में एक गुफा मौजूद है और इस गुफा में माता लिंगेश्वरी देवी का मंदिर है. इस मंदिर की खास बात यह है कि यह मंदिर साल में एक बार खुलता है और माता के दर्शन के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ लगती है.
साल में एक बार खुलता है मंदिर
दरअसल, साल में केवल एक बार खुलने की वजह से इसे छत्तीसगढ़ का तीर्थ स्थल भी कहा जाता है. खास बात यह है कि यहां मनोकामना मांगने का तरीका निराला है. संतान प्राप्ति की इच्छा करने वाले दंपति को यहां खीरा चढ़ाना आवश्यक होता है. चढ़ा हुआ खीरा को पंजारी द्वारा नाखून से फाड़कर खाना पड़ता है. जिसे शिवलिंग के समक्ष ही कड़वा भाग सहित खाकर गुफा से बाहर निकलते हैं. यह गुफा प्राकृतिक शिवालय ग्रामीणों के अटूट आस्था और श्रद्धा का केंद्र है. कहा जाता है कि आने वाले अच्छे बुरे समय का भी यहां पूर्वाभ्यास हो जाता है.
गुफा के अंदर है शिवलिंग
छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले के फरसगांव से लगभग 8 किलोमीटर दूर बड़े डोंगर के रास्ते पर आलोर गांव स्थित है और इस गांव से लगभग 2 किलोमीटर दूर एक पहाड़ है. जिसे लिंगई चट्टान और लिंगई माता के नाम से जाना जाता है. परंपरा और लोक मान्यता के कारण इस प्राकृतिक मंदिर में हर दिन पूजा-अर्चना नहीं होती है और केवल मंदिर का पट साल में एक बार खुलता है. इसी दिन यहां विशाल मेला भी भरता है. यहां के पुजारियों ने बताया कि इस साल आने वाले 8 सितंबर को इस मंदिर का द्वार खुलेगा. पुजारी ने कहा कि आलोर की छोटी सी पहाड़ी के ऊपर एक विस्तृत फैला हुआ चट्टान है. चट्टान के ऊपर एक विशाल पत्थर है बाहर से अन्य पत्थर की तरह सामान्य दिखने वाला यह पत्थर अंदर से स्तूप नुमा है. इस पत्थर की संरचना को अंदर से देखने पर ऐसा लगता है कि मानो कोई विशाल पत्थर को कटोरानुमा तराशकर चट्टान के ऊपर उलट दिया गया है.
इस मंदिर में एक छोटी सी सुरंग है. जो इस गुफा का प्रवेश द्वार है. प्रवेश द्वार इतना छोटा है कि बैठकर या लेटकर ही यहां प्रवेश किया जा सकता है. अंदर में लगभग 25 से 30 आदमी आराम से बैठ सकते हैं. गुफा के अंदर चट्टान के बीचो-बीच निकला शिवलिंग है .जिसकी लंबाई लगभग 2 या ढाई फुट है . ऐसी मान्यता है कि पूजा के बाद मंदिर की सतह पर रेत बिछाकर उसे बंद किया जाता है. अगले साल इस रेत पर किसी जानवर के पद चिन्ह अंकित मिलते हैं. दरवाजा खुलते ही 5 व्यक्ति पहले रेत पर अंकित निशान देखकर लोगों को इसकी जानकारी देते हैं. रेत पर अगर बिल्ली के पैर के निशान हो तो अकाल. घोड़े के खुर के चिन्ह हो तो युद्ध कलह का प्रतीक माना जाता है . सदियों से चली आ रही परंपरा और लोक मान्यता के कारण भाद्रपद महीने में एक दिन शिवलिंग की पूजा तो होती है. लेकिन बाकी दिन शिवलिंग गुफा में बंद रहती है.
निसंतान दंपतियों की होती है मनोकामना पूरी
जानकार बताते हैं कि पहले चट्टान की ऊंचाई बहुत कम थी. लेकिन बस्तर की यह लिंग गुफा गुप्त है. लिंगई माता हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष नवमी तिथि के पश्चात आने वाले बुधवार को इस प्राकृतिक देवालय को खोल दिया जाता है. और दिन भर श्रद्धालुओं द्वारा पूजा अर्चना और दर्शन के बाद पत्थर टीका कर दरवाजा बंद कर दिया जाता है .खासकर निसंतान दंपति यहां संतान प्राप्ति की कामना लेकर आते हैं. श्रद्धालुओं का मानना है कि यहां हजारों दंपतियों को संतान प्राप्ति की मनोकामना पूरी हुई है .और मनोकामना पूरी होने के बाद दूसरे साल अपने संतान को लेकर फिर माता के दर्शन करने पहुंचते हैं .खास बात यह है कि यहां प्रसाद में खीरा चढ़ाया जाता है. इस तरह की अनोखी परंपरा केवल छत्तीसगढ़ के आलोर गुफा मंदिर में ही देखने को मिलती है.