बच्चे की खाने की आदत क्या आपकी चिंता का कारण बन जाती है? उसके अंदर पोषण की कमी, भोजन को नजरअंदाज करने की आदत या फिर कभी भी कुछ भी खा लेने जैसी बातें परेशान करती हैं? ऐसे में जरूरी हो जाता है कि उनमें छुटपन से ही खाने की आदत पनपें। ये कैसे होगा? बता रही हैं दिव्यानी त्रिपाठी।
बच्चा आगे-आगे और आप पीछे-पीछे, हाथ में कौर समेटे। मानो रोज का यही हाल हो गया है। पोषण के कुछ निवाले बच्चे के पेट तक पहुंचाने की जिस जद्दोजहद से आप गुजरती हैं, वो कभी खीज, तो कभी चिंता बन नजर आती है। आपकी शिकायत हर बार यही कि वह खाता नहीं है। इधर-उधर की चीजें खाएगा, पर खाना नहीं। माना कि आपकी प्राथमिकता पोषण है, पर बच्चे को समझ कैसे आए? इसके लिए आपको कुछ जुगत लगानी होगी, कुछ सूत्र गढ़ने होंगे, ताकि उनकी मदद से आपकी बात आपका बच्चा समझ सके और आपको ज्यादा परेशान किए बिना अपनी खानपान की आदतों में सुधार कर सके।
रंग आएंगे काम-
बहुत से बच्चे खाने की शक्ल में मीन-मेखनिकालते हैं और खाने से मना कर देते हैं। हो सकता है, आपका लाडला भी इसी जमात का हिस्सा हो। साइकोलॉजिस्ट डॉ. आराधना गुप्ता कहती हैं कि बच्चों में स्वस्थ खानपान की आदत को विकसित करने के लिए रंग-बिरंगे व्यंजन बनाइए। लक्ष्य स्थापित कीजिए कि हफ्ते के हर दिन इंद्रधनुष के रंगों में से किसी एक रंग का खाना उन्हें परोसा जाए। साथ ही उनकी थाली को आकर्षक बनाने के लिए कुछ प्रयोग भी कर सकती हैं, जैसे उसकी थाली में छोटी और पतली रोटी रखें, उसकी शेप के साथ भी प्रयोग कर सकती हैं।
समझाएं खाना है अनमोल-
बच्चों में खानपान की अच्छी आदतें विकसित करने के लिए यह जरूरी है कि उन्हें खाने का मोल पता हो। अब सवाल यह उठता है कि आप इसे करेंगी कैसे? यकीनन आप बच्चे को पोषण देना चाहती हैं। अकसर ऐसा करने के चक्कर में उसके सामने कई सारी चीजें एक साथ रख देती हैं। पर इस बात का ध्यान रखें कि बच्चे को हर चीज एक साथ नहीं दी जा सकती। आपका ऐसा करना बच्चे को भ्रमित कर सकता है। ऐसे में वो सब कुछ छोड़ सकता है। ऐसा न हो इसलिए उसे एक टाइम पर एक ही विकल्प दें, जैसे रोटी या चावल, दाल या सब्जी। साथ ही बच्चे की थाली में थोड़ा ही भोजन परोसें, ताकि वह उसे पूरा खत्म कर सके।
सबके साथ परोसें खाना-
सबके साथ बच्चों की खुराक बढ़ जाती है। यह भी जरूरी है कि बच्चे को वही चीजें सर्व की जाएं, जो अन्य लोग खा रहे हैं।अगर आप अपने बच्चे को कुछ अलग परोसेंगी तो हो सकता है कि वह उसे खाने से परहेज करे। कोशिश कीजिए कि उसके मुताबिक, उसके स्वाद का खाना उसे दें। पर, यह ध्यान रखें कि उसकी थाली में भी वही हो, जो दूसरों की थाली में। साथ ही आपको इस बात का भी ध्यान रखना है कि बच्चे को भी सभी के साथ खाना परोसें। ऐसा करने से वह बड़ों की नकल कर टेबल मैनर सीखने की कोशिश करेगा। हो सकता है कुछ दिन वह टेबल गंदा करे, पर उसकी गलतियों को नजरअंदाज करें और उसको साफ-सफाई करने और रखने के लिए प्रेरित करें।
खुद से खाने की आदत डालें-
बच्चे में खुद से अपना खाना खाने की आदत डालें। डॉ. आराधना की मानें तो पंद्रह महीने के बच्चे में खानपान की खुद की समझ आनी शुरू हो जाती है। लिहाजा, बढ़ती उम्र के साथ उसे खुद से खाने देने की आदत डालनी चाहिए। इसकी शुरुआत आप सूखी चीजों जैसे गाजर, पापड़ आदि से कीजिए। उसके बाद गाढ़ी चीजों को चम्मच से खाने की आदत बच्चे में डालिए। धीरे-धीरे वह खुद से खाने लगेगा और उसे इसमें मजा भी आने लगेगा।
सब कुछ है जरूरी-
बच्चा जब सॉलिड खाना खाने की शुरुआत करता है, उस वक्त दलिया और सूजी जैसे विकल्प उसके लिए बहुत अच्छे साबित होते हैं। पर, कई बार माएं ऐसा लंबे समय तक करती रहती हैं। ऐसा करना सही नहीं है। चौदह या पंद्रह माह की आयु में ही बच्चों के टेस्ट बड्स सक्रिय होने लगते हैं। उन्हें ठंडा, गर्म, खट्टा, मीठा हर स्वाद समझ में आने लगता है। ऐसे में उनमें शुरुआत से ही सब कुछ खाने की आदत डालनी जरूरी है। डॉ. आराधना की मानें तो बच्चे एक ही चीज बार-बार खाकर बोर हो जाते हैं इसलिए कोशिश कीजिए कि उन्हें हर दिन कुछ अलग परोसा जाए।
जबरन खाने पर न दें जोर-
बच्चे जब खाना नहीं खाते तो अकसर मांएं उन्हें जबरन खाना खिलाना शुरू कर देती हैं। ऐसा करने की जगह खुद से कुछ सवाल पूछिए- क्या बच्चे के खाने में पर्याप्त अंतराल है? खाना बच्चे के स्वाद के अनुसार है क्या? क्या बच्चा खाने के पहले भी स्नैक्स खाता है? आपके लाडले की उतनी फिजिकल एक्टिविटी हो रही है, जितनी उसको जरूरत है? इस बाबत सीएसजेएम यूनिवर्सिटी की ह्यूमन न्यिूट्रशन डिपार्टमेंट की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. भारती दीक्षित कहती हैं कि बच्चे के दो खाने के बीच में तीन से चार घंटे का अंतराल होना जरूरी है। यूं तो जंक फूड से बच्चों को दूर ही रखना चाहिए, पर फिर भी अगर बच्चा नहीं मानता है तो खाने के कम से कम आधे घंटे पहले तक स्नैक्स नहीं देना चाहिए। जंक फूड भूख कम कर देता है।
बातें जरूरी वाली-
-बच्चे थोड़े बड़े हैं तो उनके साथ ही किचन के सामान की शॉपिंग करें। इस दौरान आपको उनकी पसंद जानने का मौका मिलेगा और बच्चे पौष्टिक तत्वों के महत्व को समझेंगे।
-दूध में कटौती है जरूरी। जब बच्चा खाने लायक हो जाए तो उसे दिन में सिर्फ दो दफा दूध देना चाहिए।
-नाश्ते में पैक्ड फूड यानी जूस, ब्रेड, नूडल्स आदि बच्चों को नहीं देना चाहिए। इनमें मौजूद अधिक मात्रा शर्करा, प्रिजरवेटिव्स बच्चे की शारीरिक और मानसिक वृद्धि पर दुष्प्रभाव डालते हैं।
-प्लास्टिक के स्कूल लंच बॉक्स और बोतल प्रयोग नहीं करें।इतना ही नहीं, लंच बॉक्स में रोटी या सैंडविच को एल्यूमिनियम फॉइल, क्लिंज फिल्म में भी नहीं लपेटना चाहिए। ये तीनों ही चीजें हमारी अच्छे बैक्टीरिया पर दुष्प्रभाव डाल कर पाचन क्रिया को प्रभावित करती हैं। इनसे रोग प्रतिरोधक क्षमता में गिरावट आती है। ये विषाक्त तत्वों को पैदा करते हैं।
-रात में खाना खाने के बाद चॉकलेट और आइसक्रीम सरीखी चीजें बच्चों को खाने के लिए नहीं दें। रात का खाना सोने के पहले की आखिरी खुराक होती है। इसका स्पष्ट प्रभाव नींद पर पड़ता है। जो बच्चे के शारीरिक और मानसिक दोनों तरह के विकास पर असर डालता है। इसके साथ छेड़छाड़ करने की गलती कभी नहीं करें। इन चीजों से रात में बच्चों को दूर ही रखें।