सूरज की हर दिन 1440 फोटो भेजेगा आदित्य एल-1, लाखों फोटो और डाटा से ऐसे खंगाले जाएंगे सारे राज

Chhattisgarh Reporter
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छत्तीसगढ़ रिपोर्टर

नई दिल्ली 03 सितम्बर 2023। जैसे-जैसे मिशन आदित्य अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता जाएगा उसी के साथ वह वैज्ञानिकों को तस्वीर और डाटा भेजना शुरू कर देगा। एक अनुमान के मुताबिक मिशन आदित्य में इस्तेमाल किए गए पहले पेलोड कोरोनाग्राफ (वीईएलसी) से प्रत्येक मिनट एक तस्वीर इसरो की सेंट्रल साइंटिफिक रिसर्च लैब तक पहुंचेगी। सूरज की सतह से लेकर कोरोना पर पैदा होने वाली ऊर्जा के राज को 24 घंटे के भीतर रोजाना 1440 भेजी जाने वाली तस्वीरों के माध्यम से वैज्ञानिक आगे का काम शुरू करेंगे। फिलहाल वैज्ञानिकों का कहना है कि पहले 103 दिनों तक तो मिशन आदित्य एल-1 क्रूज मोड में ही रहेगा। सूरज पर शोध के लिए भेजे जाने वाले मिशन आदित्य के कोरोनाग्राफ पेलोड को तैयार करने वाले प्रमुख वैज्ञानिकों में शामिल आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंसेज के निदेशक दीपांकर बनर्जी ने मिशन आदित्य के बारे में ऐसी ही कई महत्वपूर्ण जानकारियां साझा की। उन्होंने बताया कि सूरज पर शोध करने के लिहाज से यह मिशन दुनिया के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

हर मिनट एक फोटो भेजेगा कोरोनाग्राफ, यह जानकारियां भी देगा
इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ एस्ट्रोफिजिक्स के वरिष्ठ वैज्ञानिक और वर्तमान में आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंसेज के डायरेक्टर दीपांकर बनर्जी कहते हैं कि सूरज के तमाम अनसुलझे रहस्य और उसकी ऊर्जा को समझने के लिए मिशन आदित्य एल-1 में सात पेलोड लगाए गए हैं। वह कहते हैं कि पहले पेलोड कोरोनाग्राफ के माध्यम से सूरज के लैंग्रेजियन पॉइंट पर रहकर उसके पूरे क्षेत्र और वहां मौजूद तमाम तरह के पार्टिकल्स को स्टडी किया जाएगा।

वह कहते हैं कि इस पूरी प्रक्रिया के दौरान कोरोनाग्राफ के माध्यम से प्रत्येक मिनट एक फोटोग्राफ स्पेस एजेंसी की लैब में भेजी जाएगी। यानी की 24 घंटे के भीतर 1440 तस्वीर रोजाना सूरज के लैंग्रेजियन पॉइंट से जारी होगी। वह कहते हैं कि आदित्य एल-1 के साथ पेलोड अलग-अलग दिशाओं में रुख करके अपना काम करेंगे। वरिष्ठ वैज्ञानिक दीपांकर बनर्जी कहते हैं कि इसमें चार पेलोड सूरज की सतह की ओर रुख करके जानकारियां जुटाएंगे। जबकि तीन पेलोड लैंग्रेजियन पॉइंट की ओर रुख करके सूरज की ऊर्जा और उसके चुंबकीय प्रभाव का अध्ययन करेंगे।

नैनीताल और कोडईकोनाल के टेलिस्कोप से दिखती थी सूरज की सतह
वरिष्ठ वैज्ञानिक दीपांकर बनर्जी कहते हैं कि अभी तक सूरज की सतह पर अध्ययन करने के लिए कोडईकोनाल और नैनीताल की लैब में स्थित टेलिस्कोप से सूरज की सतह के बारे में अध्ययन किया जाता था। लेकिन अब सूरज की सतह ही नहीं बल्कि उसके बाहरी हिस्सों के साथ-साथ सूरज के चुंबकीय प्रभाव वाले क्षेत्र का अध्ययन करने के लिए आदित्य एल-1 बहुत बड़ सूरज के लैंग्रेजियन पॉइंट कर रवाना हो चुका है।

दीपांकर के मुताबिक, इस दौरान सूरज के अलग-अलग क्षेत्र में सोलर वेव्स के माध्यम से न सिर्फ तापमान में लाखों डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी होती है बल्कि उसके चुंबकीय प्रभाव वाले क्षेत्र में इसकी असमानता भी देखने को मिलती है। वह कहते हैं कि लेकिन अब यह पता किया जा सकेगा कि आखिर इसकी वजह क्या है। उनका मानना है कि अभी तक सूरज के लैंग्रेजियन पॉइंट 1 नासा और ईसा एजेंसी ही पहुंच सकती हैं। लेकिन अब इसरो के पहुंचने से सूरज की किरणों और उससे पैदा होने वाली ऊर्जा की समानता और असमानता समेत कई अनसुलझे रहस्यों से पर्दा हटाने के लिए रिसर्च की जमीन तैयार हो सकेगी।

सूरज पर होने वाली रिसर्च से खुलेंगे बड़े राज
बीते तकरीबन दो दशकों से सूर्य पर शोध के लिए काम करने वाले वरिष्ठ वैज्ञानिक दीपांकर बनर्जी कहते हैं कि अब वह सूरज के वातावरण को न सिर्फ करीब से समझ सकेंगे बल्कि उसके कारणों का भी बारीकी से अध्ययन कर सकेंगे। उनका कहना है कि सूरज का जो बाहरी वातावरण होता है उसको कोरोना कहते हैं। इस कोरोना पर मौजूद तापमान की आसमानता का अध्ययन करने के लिए कोरोनाग्राफ पेलोड के माध्यम से तमाम अनसुलझे रहस्य से पर्दा उठ सकता है। वह कहते हैं कि आदित्य एल-1 के माध्यम से मिलने वाली जानकारियों से से इस बात का पता चलेगा की आंखिर कोरोना सूरज की सबसे ज्यादा गर्म क्यों है। उनका मानना है कि सूरज धरती के पास चमकने वाला सबसे नजदीक स्टार है। और उसे स्टार का असर धरती पर सीधे तौर पर पड़ता है। इसलिए सूरज पर की जाने वाली प्रत्येक रिसर्च न सिर्फ धरती बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए अभी बेहद महत्वपूर्ण है। 

20 साल पहले देखा था सपना, अब हुआ पूरा
आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंसेज के डायरेक्टर दीपांकर बनर्जी कहते हैं कि सबसे पहले उन्होंने 2006 में सूरज पर शोध करने के लिए कोरोनाग्राफ पर काम करने की योजना बनाई थी। उनका कहना है कि शुरुआती दौर में जब इस योजना पर काम करने के लिए अन्य वरिष्ठ वैज्ञानिकों के साथ चर्चा हुई तो इसमें और ज्यादा उत्साह बढ़ा। वह कहते हैं कि वक्त के साथ यह प्रोजेक्ट बड़ा होता गया। उनका कहना है कि जब उन्होंने शुरुआती दौर में इस पर काम करना शुरू किया था तो उनको इस बात का बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि एक दिन उनकी और उनके वैज्ञानिक साथियों की मदद से शुरू किए जाने वाला कोरोनाग्राफ का शो मिशन आदित्य के साथ कितनी महत्वपूर्ण और बड़ी जिम्मेदारी के लिए रवाना होगा। इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ एस्ट्रोफिजिक्स से जुड़े वैज्ञानिक डॉ बनर्जी कहते हैं कि यह न सिर्फ उनके लिए बड़ी उपलब्धि है समूचे विज्ञान जगत के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि के तौर पर इस मिशन को देखा जा रहा है।

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