छत्तीसगढ़ रिपोर्टर
नई दिल्ली 25 फरवरी 2023। भारतीय सेना ने अपनी कई पुरानी परंपराओं को खत्म करने का फैसला लिया है। इसमें कई ऐसी प्रथा हैं, जो अंग्रेजों के जमाने चलती आ रहीं हैं। मसलन सेना के सार्वजनिक कार्यक्रमों में घोड़े से चलने वाली बग्घियों का इस्तेमाल करना, सेना के अफसर के सेवानिवृत्ति पर पुलिंग आउट सेरेमनी और डिनर के दौरान पाइप बैंड का उपयोग। अब ये सब खत्म कर दिया गया है। इस संबंध में भारतीय सेना ने अपनी यूनिट्स को आदेश जारी कर दिया है। आदेश में कहा गया कि औपचारिक कार्यों के लिए यूनिट्स या संरचनाओं में बग्घियों का उपयोग बंद कर दिया जाएगा और इन कार्यों के लिए जिन घोड़ों का इस्तेमाल होता है, उन्हें अब ट्रेनिंग के लिए उपलब्ध कराया जाएगा। इसके अलावा पुलिंग आउट समारोह में कमांडिंग ऑफिसर या एक वरिष्ठ अधिकारी के वाहन को यूनिट में अफसर और सैनिक उनकी पोस्टिंग या सेवानिवृत्ति पर खींचते हैं। इसे भी खत्म कर दिया गया है।
सेना के एक अधिकारी ने कहा कि यह प्रथा बहुत व्यापक रूप से नहीं देखी गई क्योंकि जब अधिकारी सेवानिवृत्त होते हैं या दिल्ली से बाहर तैनात होते हैं, तो उनके वाहनों को नहीं खींचा जाता है। अधिकारियों ने कहा कि पाइप बैंड भी केवल कुछ पैदल सेना इकाइयों में शामिल हैं और डिनर के दौरान उनका उपयोग बहुत सीमित है क्योंकि बहुत ज्यादा यूनिट्स के पास पाइप बैंड नहीं हैं।
कई और परंपराओं, नाम को बदलने की तैयारी
सेना कई और तरह की पुरानी परंपराओं और नामों को बदलने पर विचार कर रही है। सरकार के निर्देशों के अनुसार भारतीय सेना औपनिवेशिक और पूर्व-औपनिवेशिक युग से चली आ रही रीति-रिवाजों और परंपराओं, वर्दी और सामान, विनियमों, कानूनों, नियमों, नीतियों, इकाई स्थापना, औपनिवेशिक अतीत के संस्थानों की विरासत प्रथाओं की भी समीक्षा कर रही है। कुछ यूनिट्स के अंग्रेजी नामों, भवनों, प्रतिष्ठानों, सड़कों, पार्कों, औचिनलेक या किचनर हाउस जैसी संस्थाओं के नाम बदलने की भी समीक्षा की जा रही है।
लालकिले से गुलामी की मानसिकता से मुक्ति का किया था एलान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से देशवासियों से ‘पंच प्रण’ लिए थे। इनमें से एक ‘गुलामी की हर सोच से मुक्ति’ का भी संकल्प था। पीएम ने ‘विकसित भारत, गुलामी की हर सोच से मुक्ति, विरासत पर गर्व, एकता और नागरिकों की तरफ से अपने कर्तव्यों के पालन’ के पंच प्रण का ऐलान किया था। इसके बाद से लगातार बदलाव देखने को मिल रहे हैं। राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्यपथ कर दिया गया।