छत्तीसगढ़ रिपोर्टर
जम्मू 19 सितंबर 2022। अनुच्छेद 370 व 35ए हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में हो रहे तमाम बदलावों व बदलती तस्वीर का एक बड़ा सच रविवार को सामने आया जब आतंकवाद के दौर में कश्मीर घाटी में बंद हो गई सिनेमा हॉल संस्कृति में 32 साल बाद रंग भरा जा सका। शोपियां व पुलवामा में सिनेमा हॉल खुल जाने से कश्मीरियों के रुपहले पर्दे को करीब से देखने के सपनों को पंख लगे हैे। उन्हें अपने सपनों को पूरा करने के लिए अब तक 300 किमी का सफर तय कर जम्मू या फिर किसी अन्य स्थान पर जाना पड़ता था। कश्मीर संभाग में एक ही सिनेमा हॉल आतंकवाद के दौर के 32 साल बाद बारामुला जिले में मई महीने में खुला है। यह हॉल पट्टन के हैदरबेग में सैन्य छावनी परिसर में है। सेना ने जर्जर हो चुके जोरावर हॉल सिनेमाघर की मरम्मत कर शुरू कराया है जिसे 21 मई को दर्शकों के लिए खोला गया। पहले ही दिन सिनेमा हॉल खचाखच भरा रहा। सरकार ने श्रीनगर के बादामीबाग छावनी परिसर में एक मल्टीप्लेक्स बनाने की अनुमति दी है। यहां पहले एक सिनेमा हॉल हुआ करता था लेकिन यह आतंकवाद के दौर में बंद हो गया था।
सोशल मीडिया के जरिये ही शौक पूरे करने को विवश
कश्मीर में सिनेमा हॉल बंद हो जाने की वजह से ज्यादातर युवाओं को पता भी नहीं है कि सिनेमा हॉल कैसा होता है और मल्टीप्लेक्स क्या है। घाटी के युवा जो बाहर पढ़ रहे हैं या फिर रोजी-रोजगार के सिलसिले में निकले हैं वे ही रुपहले पर्दे का आनंद ले पाए हैं अन्यथा घर पर टीवी और सोशल मीडिया के जरिये ही वे अपने शौक पूरे करने को विवश हैं।
सभी जिलों में कम से कम एक हॉल खोला जाएगा
जम्मू-कश्मीर फिल्म विकास परिषद के सीईओ व उप राज्यपाल के प्रमुख सचिव नीतीश्वर कुमार का कहना है कि कोशिश है कि सभी जिलों में कम से कम एक हॉल खुले। लोगों खासकर युवाओं को मनोरंजन सुविधा देने के उद्देश्य से यह सारी कवायद है। इससे युवाओं में अपनी प्रतिभा कौशल को भी निखारने का मौका मिलेगा।
पहले थी यह योजना
सूत्र बताते हैं कि सरकार की पहले यह योजना थी कि 15 से 20 जून तक आयोजित होने वाली जम्मू-कश्मीर राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के तहत सिनेमा हॉल खोले जाएं। लेकिन कतिपय कारणों से महोत्सव आयोजित नहीं हो सका। सरकार छह दिनों तक चलने वाले महोत्सव में 40 से 50 फिल्में प्रदर्शित करना चाहती थी। उसका मानना था कि इस महोत्सव से स्थानीय कलाकारों को बढ़ावा मिलेगा। साथ ही प्रसिद्ध निर्देशक, अभिनेता, गायक तथा संगीतकारों से मिलने का भी अवसर मिलेगा जिससे उनकी प्रतिभा में निखार आएगा और वे देश-विदेश में अच्छा प्रदर्शन कर सकेंगे।
सिनेमा हॉल खुलने से घाटी के युवा उत्साहित
घाटी का फिल्मों से पुराना नाता रहा है। 1990 में बिगड़े हालातों के बीच कश्मीर में सिनेमा हाल बंद हो गए थे, लेकिन अब घाटी की तस्वीर बदल रही है। दक्षिण कश्मीर के लिए रविवार का दिन ऐतिहासिक बन गया। शोपियां और पुलवामा में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने बहुउद्देशीय सिनेमा हाल का उद्घाटन किया। दो जिलों में सिनेमा हॉल खुलने से लोग उत्साहित हैं खासकर युवा वर्ग। घाटी में 1990 से पहले कई फि ल्में बॉबी (1973), आरजू (1965), फनाह (2006), हैदर, हकीकत (1964) जबतक है जान, बजरंगी भाई जान, दिल ढूंढता है फि र वही… आदि फिल्माई गईं। बॉबी का वह नगमा आज भी घाटी के लोगों के दिलों में बसा है-मैं शायर तो नहीं मगर ए हसीं, जबसे देखा मैंने तुझको, शायरी आ गई। स्थानीय नागरिकों में उत्साह तथा खुशी है। स्थानीय युवा शोएब अख्तर व नईम भट और नागरिक मो. इकबाल ने कहा कि सिनेमा और कश्मीर का नाता पुराना है। लेकिन आतंक के चलते इस रिश्ते में कुछ दूरियां बढ़ गई थीं जिन्हें अब धीरे-धीरे मिटाया जा रहा है। प्रदेश सरकार को चाहिए कि यहां फि ल्म शूटिंग के लिए उचित इंतजाम किए जाएं। इससे फि ल्म निर्माताओं के साथ-साथ स्थानीय लोगों को लाभ मिलेगा। युवाओं को कई दशकों बाद सिनेमा हॉल देखने का मौका मिल सकेगा।