कश्मीरियत को जिंदा रखने के लिए वापस लौटे संदीप मावा, बोले- 1990 में नेताओं-अलगाववादियों ने बिगाड़ा माहौल

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छत्तीसगढ़ रिपोर्टर  

जम्मू कश्मीर 28 मार्च 2022। वर्ष 1990 के जनवरी के महीने में भले ही कश्मीरी पंडित समुदाय के लाखों लोग कश्मीर छोड़ने पर मजबूर हुए, लेकिन कुछ परिवार ऐसे भी हैं, जिन्होंने कश्मीर न छोड़ने का फैसला किया था। उन्हीं परिवारों में श्रीनगर के करण नगर इलाके में रहने वाले रोशन लाल मावा का परिवार भी शामिल है। रोशन लाल मावा के बेटे संदीप मावा ने अमर उजाला के साथ बातचीत में आप बीती सुनाई। उन्होंने कहा कि उस समय असुरक्षित महसूस होने पर वो यहां से भागने पर मजबूर हुए, लेकिन कश्मीरियत को जिंदा रखने के इरादे से वह लौटे थे। कश्मीर में आज भी ऐसे तत्व हैं, जो यहां अमन नहीं चाहते। अल्पसंख्यकों के लिए कश्मीर सुरक्षित नहीं है। संदीप मावा ने कहा कि हम 19 जनवरी 1990 को कश्मीर छोड़कर नहीं गए, लेकिन मुख्यधारा के नेताओं से लेकर हुर्रियत और अलगाववादियों ने माहौल को और खराब किया।

मावा ने कहा, ’19 अक्तूबर 1990 को मेरे पिता पर कातिलाना हमला हुआ। उन पर चार गोलियां दागी गईं। इस घटना के बाद हम कश्मीर छोड़कर चले गए। इस सबके बावजूद मैंने कश्मीरियत को पुनर्जीवित करने के लिए पिता को कश्मीर लौटने के लिए मनाया और वर्ष 2019 में एक बार फिर कश्मीर लौट आए। उसका नतीजा यह हुआ कि 8 नवंबर 2021 को मुझे निशाना बनाने के उद्देश्य से आतंकियों ने फिर हमला किया, लेकिन जो चार गोलियां मुझे लगनी थीं, वो मेरे ही एक कर्मी को लगी, जो मेरी गाड़ी में बैठा था।’ मावा ने कहा कि घाटी में ऐसे तत्व आज भी हैं। कश्मीर अल्पसंख्यकों के लिए सुरक्षित नहीं है। पाकिस्तान के इशारे पर आईएसआई के पिट्ठू यहां की सियासत को इस्तेमाल करते हैं। यदि यहां अमन हो गया तो ऐसे चेहरों पर से पर्दा उठ जाएगा।

वापसी की बौखलाहट में किए हमले, घर जलाया, फायरिंग की
मावा ने कहा कि अक्तूबर 1990 में कुछ समय हम जम्मू में रिफ्यूजी कैंप में रहे। इसके बाद दिल्ली चले गए। वहां अपना व्यवसाय स्थापित किया। जब घाटी लौटा तो कश्मीरियत के दुश्मनों ने उनके घर पर 2019 में पेट्रोल बम से हमला करवाया। 2020 में दोबार आग लगा दी। उसे जला दिया। 2021 में मेरे ऊपर फायरिंग करवाई गई, जिसमें मेरा कर्मी मारा गया।

1990 के हालातों को याद करते हुए संदीप ने कहा कि उनका घर श्रीनगर के करण नगर इलाके में स्थित नेशनल स्कूल के सामने है। मैं उस समय करीब 13 वर्ष का था। मैंने कनिकदल इलाके में स्थित मस्जिद से रात में अवाजें सुनीं। आइस बनावो पाकिस्तान बटो रुस्ती बटनियों सान के नारे लगते थे। इस नारे का मतलब था – हम पाकिस्तान बनाएंगे कश्मीरी पंडितों के बिना केवल कश्मीरी पंडित समुदाय की महिलाओं के साथ। 

अल्पसंख्यकों का अपमान करते थे 
मावा ने कहा कि उनके साथ पढ़ने वाले लड़के कट्टरपंथी विचारधारा से प्रभावित हो चुके थे। वे इस्लाम कबूल करने का दबाव बनाते थे। अभद्र भाषा का प्रयोग कर अल्पसंख्यकों को अपमानित करते। हालांकि ऐसे लोगाें की संख्या पांच से दस फीसदी थी। मावा ने कहा कि उस दौर में राष्ट्रवादी मुसलमानों के साथ भी जुल्म हुआ। यह भी बड़ी वजह रही कि ऐसे माहौल में मुस्लिम समुदाय ने भी चुप्पी साध ली। मावा ने कहा कि आज भी मेरे कुछ करीबी कश्मीरी मुसलमान दोस्त हैं। 

सभी मुसलमान नहीं इसके लिए जिम्मेदार
संदीप मावा ने कहा कि द कश्मीर फाइल्स फिल्म के बाद सभी मुसलमानों को कश्मीरी पंडितों के पलायन के लिए जिम्मेदार ठहराना सही नहीं होगा। कश्मीरी पंडितों के पलायन के बाद छत्तीसिंह पोरा नरसंहार व अन्य बड़े हत्याकांडों पर संदीप ने कहा कि विशेष आयोग का गठन कर निष्पक्ष जांच कराई जानी चाहिए। न्याय दिलाकर ही कश्मीर को तरक्की के रास्ते पर ले जाया जा सकता है।

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