एस.ई.सी.एल और जिंदल पॉवर पर 160 करोड़ रुपए का जुर्माना- नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल का फैसला

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जेएसपीएल पर 154.8 करोड़ रुपये का और एसईसीएल पर 6.69 करोड़ रुपये का लगाया जुर्माना

छत्तीसगढ़ रिपोर्टर, ब्यूरो
रायगढ़/नई दिल्ली 25 अप्रैल 2020 । रायगढ़ के तमनार में कोयला खदानों में पर्यावरण और स्वास्थ्य नियमों के उल्लंघन के लिये एक बेहद महत्वपूर्ण फैसले में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में गैरकानूनी खनन, पर्यावरण को प्रदूषित करने और स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालने को लेकर जिंदल पावर एंड स्टील लिमिटेड (जेएसपीएल) पर 154.8 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है.इसके अलावा एनजीटी ने सरकारी स्वामित्व वाली कोल इंडिया लिमिटेड की सहायक कंपनी साउथ इस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) पर भी 6.69 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है. दोनों कंपनियों को कुल मिलाकर 160.78 करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति एक महीने के भीतर भरने का आदेश दिया गया है.

जिंदल पावर लिमिटेड के चेयरमैन उद्योगपति और पूर्व कांग्रेस सांसद नवीन जिंदल हैं. एनजीटी ने इसे 2006 से 2015 के बीच रायगढ़ के गारे पाल्मा IV/2 और गारे पाल्मा IV/3 खदान में अवैध खनन और कई पर्यावरण नियमों के गंभीर उल्लंघन का दोषी पाया है.

दुकालू राम व अन्‍य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले में एनजीटी का आदेश अदालत द्वारा नियुक्त एक उच्च-स्तरीय समिति द्वारा इलाके में कोयला खदान द्वारा पर्यावरण और स्वास्थ्य क्षति की शिकायतों का आकलन करने के बाद आया. इसी के आधार पर जुर्माना राशि तय हुई. समिति ने जून 2019 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी. रायगढ़ के तमनार की गारे IV- 2/3 खदान 2004 से 2015 तक जिंदल पावर लिमिटेड के स्वामित्व और संचालन में थी.

इस आदेश में JPL और SECL को एक महीने के भीतर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास राशि जमा करने का निर्देश दिया गया है.

इस आदेश में छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल को भी “पर्यावरण में सुधार करने और इलाके की बहाली के लिए राशि का उपयोग करने के लिए एक कार्य योजना तैयार करने” का निर्देश दिया गया है. एनजीटी ने अपने आदेश में SECL को लीज सीमा के चारों ओर ब्लैक टॉप रोड और 125 मीटर चौड़ाई की ग्रीन बेल्ट के विकास के लिए समयबद्ध कार्य योजना पेश व कार्यान्वित करने, और ट्रिब्यूनल के पिछले आदेश के अनुसार कोयला खनन से प्रभावित ग्रामीणों को पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने का भी निर्देश दिया है.

यह आदेश गांव कोसमपल्ली और सरसमल के निवासियों के लंबे कानूनी संघर्ष के बाद आया है, जो खनन कंपनियों द्वारा पर्यावरणीय मानदंडों और अन्य क़ानून के उल्लंघन के खिलाफ लड़ रहे हैं.

याचिकाकर्ताओं में से एक के प्रतिनिधि ने कहा- “एनजीटी का आदेश उन लोगों के लिए एक जीत है, जिन्होंने इलाके में कोयला खदानों होने की वजह से गंभीर वायु प्रदूषण, भूजल में कमी, खदानों की आग और उनके स्वास्थ्य पर भारी प्रभाव का सामना किया है. हम अदालत के आदेश का स्वागत करते हैं और अब राज्य प्रशासन और एनजीटी से आग्रह करते हैं कि इस जुर्माना की वसूली को सुनिश्चित किया जाए और इन सिफारिशों को खास तौर पर बहाली, क्षतिपूर्ति और राहत को समयबद्ध तरीके से लागू किया जाए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण पर खनन गतिविधियों का कोई और नुकसान न हो. हम सरकार से यह सुनिश्चित करने का आग्रह करते हैं कि जब तक इन सभी उल्लंघनों में सुधार नहीं किया जाता है और प्रतिकूल प्रभाव का असर ठीक नहीं होता है, तब तक इस क्षेत्र में कोई नई खदान शुरू नहीं की जाए.”

रायगढ़ जिले में कोयला खदानों में चल रहे पर्यावरण और स्वास्थ्य उल्लंघन के संबंध में एनजीटी का यह दूसरा आदेश है.

शिवपाल भगत व अन्‍य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया से संबंधित एक अन्य मामले में, तमनार और घरघोड़ा में कोयला खदानों और बिजली संयंत्रों के कारण इस इलाके में बिगड़ती पर्यावरणीय स्थितियों पर संज्ञान लेते हुए एनजीटी ने इसी साल फरवरी में एक व्यापक आदेश पारित किया था. इस आदेश में ‘एहतियाती’ और ‘सतत विकास’ सिद्धांतों को लागू किया गया और कहा गया कि इलाके में किसी भी तरह के विस्तार या नई परियोजनाओं को सिर्फ गहन मूल्यांकन के बाद ही अनुमति दी जाय.

इस इलाके में उच्च स्तरीय संदूषण को नज़र में रखते हुए कोयला और पर्यावरण मंत्रालय दोनों को अपनी पूरी क्षमता के साथ इन प्रस्तावों की निगरानी करनी होगी. एनजीटी ने भूमिगत खदानों को खुली खदानों में बदलने, निचले या किसी खुले इलाके में राख की डंपिंग करने के खिलाफ और सख्त रखरखाव करने का निर्देश भी दिया है और सभी उपचारात्मक उपायों की लागत कम्‍पनियों द्वारा वहन की जाएगी.

एनजीटी ने यह भी निर्देश दिया कि एक प्रभावी तंत्र स्वास्थ्य में सुधार के लिए उपायों की निगरानी करे और स्वास्थ्य विभाग के मुख्य सचिव को इसकी देखरेख करने की ज़िम्‍मेदारी दी जाए. ऐसा पहली बार हुआ है कि प्रदूषण मामले में कहीं भी अदालत ने राज्य के स्वास्थ्य विभाग को कार्रवाई में शामिल किया है और विशेष रूप से उसे स्वास्थ्य सुधार योजना की देखरेख करने का काम सौंपा है.

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