इंडिया रिपोर्टर लाइव
नई दिल्ली 20 अक्टूबर 2024। भारतीय उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने विदेश जाने वाले छात्रों की संख्या में बढ़ोतरी और उनके साथ होने वाली धोखाधड़ी को लेकर अपनी चिंता जाहिर की। शनिवार को उन्होंने कहा कि देश के बच्चे विदेश जाने की नई बीमारी से पीड़ित हैं। विदेश जाने की उत्सुकता बच्चों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है, जो राष्ट्र के भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है।
‘विदेश जाने की एक नई बीमारी’
उपराष्ट्रपति ने राजस्थान के सिकर में एक निजी शैक्षिक संस्थान द्वारा आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि बच्चों के बीच एक और नई बीमारी है, विदेश जाने की। बच्चे उत्साह से विदेश जाना चाहते हैं, वह एक नया सपना देखते हैं, लेकिन वह इस बात का आकलन नहीं कर पाते हैं कि उन्हें किस संस्था में जाना चाहिए और किस में नहीं। वह विज्ञापन से प्रभावित होकर अपना कदम आगे बढ़ाते हैं। एक नई बीमारी और है बच्चों में – विदेश जाने की। बच्चा उत्साहपूर्वक विदेश जाना चाहता है, उसको नया सपना दिखता है; लेकिन कोई आकलन नहीं है कि किस संस्था में जा रहा है, किस देश में जा रहा है।
6 बिलियन का घाटा
उन्होंने कहा कि बड़ी संख्या में विदेश जाकर पढ़ने वाले बच्चों के कारण विदेशी मुद्रा भंडार 6 बिलियन डॉलर घटा है। कल्पना करिए कि अगर छह बिलियन डॉलर भारत के शैक्षणिक संस्थानों में बुनियादी ढांचे को मजबूत करने में खर्च किए जाते तो आज हालात कितने बेहतर होते। मैं इसे विदेशी मुद्रा और प्रतिभा दोनों का पलायन मानता हूं।
‘विज्ञापन से प्रभावित हो रहे छात्र’
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि 18 से 24 साल के लड़के-लड़कियां विज्ञापन से प्रभावित होकर विदेश जाने का निर्णय लेते हैं। उन्होंने कहा, एक अनुमान के मुताबिक 2024 में, लगभग 13 लाख छात्र विदेश गए थे। उनके भविष्य के बारे में क्या होगा, इस बारे में एक आकलन किया जा रहा है। लोग अब समझ रहे हैं कि अगर वह यहां अपनी पढ़ाई पूरी करते तो उनका भविष्य कितना उज्ज्वल होता।