समान लिंग और अंतर धार्मिक जोड़ों की सुरक्षा मामले में अपने विचारों से बचें जज, शीर्ष अदालत की टिप्पणी

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छत्तीसगढ़ रिपोर्टर

नई दिल्ली 21 मार्च 2024। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समान लिंग, ट्रांसजेंडर और अंतर धार्मिक जोड़ों को तत्काल पुलिस सुरक्षा देने की याचिका पर सुनवाई करते समय न्यायाधीशों को सांविधानिक मूल्यों के स्थान पर अपने विचारों को रखने की प्रवृत्ति से बचना चाहिए। सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि अदालत को यह स्वीकार करना चाहिए कि कुछ अंतरंग पार्टनर को सामाजिक कलंक का सामना करना पड़ सकता है। अंतरंग पार्टनरों के इस आधार पर पुलिस सुरक्षा की याचिका पर विचार करते समय कि वे समान लिंग, ट्रांसजेंडर, अंतर धार्मिक या अंतर जातीय जोड़े हैं, अदालत को एक अंतरिम उपाय देना चाहिए। पीठ ने कहा कि अदालतों को यह ध्यान में रखना चाहिए कि ‘परिवार’ की अवधारणा केवल जन्म के परिवार तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसमें किसी व्यक्ति के चुने हुए परिवार को भी शामिल किया गया है। यह सभी व्यक्तियों के लिए सच है। हालांकि, एलजीबीटीक्यू+ व्यक्तियों के लिए हिंसा और सुरक्षा की कमी के कारण इसका महत्व बढ़ गया है।

किसी की पहचान और यौन रुझान पर काबू पाने की कोशिश अनुचित
पीठ ने कहा कि किसी व्यक्ति की इच्छाओं का पता लगाना एक बात है लेकिन कथित परामर्श की प्रक्रिया के माध्यम से किसी व्यक्ति की पहचान और यौन रुझान पर काबू पाने का प्रयास करना अनुचित होगा। अदालत ने कहा कि न्यायाधीशों को संविधान द्वारा संरक्षित मूल्यों के स्थान पर अपने स्वयं के व्यक्तिपरक मूल्यों को प्रतिस्थापित करने की प्रवृत्ति से बचना चाहिए। पीठ ने ये टिप्पणियां केरल की एक महिला की याचिका पर विचार करने से इन्कार करते हुए कीं, जिसने दावा किया था कि उसके समलैंगिक साथी को उसके परिवार ने अवैध रूप से कैद कर रखा है। अदालत ने कोल्लम की एक पारिवारिक अदालत में कथित तौर पर कैद की गई महिला से मिलने और उसका साक्षात्कार लेने के लिए एक न्यायिक अधिकारी को नियुक्त किया था।  अधिकारी की पेश रिपोर्ट में कहा गया है कि याचिकाकर्ता महिला की ‘अंतरंग मित्र’ थी लेकिन महिला किसी के साथ शादी या घर बसाना नहीं चाहती है।

पीठ ने जारी किए निर्देश
हालांकि पीठ ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं या पुलिस सुरक्षा के लिए याचिकाओं से निपटने के लिए अदालतों के लिए कई दिशानिर्देश जारी किए। पीठ ने कहा कि किसी साथी या मित्र की लोकस स्टैंडी का मूल्यांकन करते समय, अदालत को अपीलकर्ता और व्यक्ति के बीच संबंधों की सटीक प्रकृति की जांच नहीं करनी चाहिए। अदालत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कार्यवाही के दौरान हिरासत में लिए गए व्यक्ति की इच्छाएं अदालत या पुलिस या पैतृक परिवार द्वारा अनुचित रूप से प्रभावित न हों। पीठ ने कहा कि न्यायाधीशों को हिरासत में लिए गए या लापता व्यक्ति के मामले में ईमानदारी से सहानुभूति और करुणा दिखानी चाहिए।

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