दुष्कर्म पीड़िता के गर्भपात में देरी पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार, हाईकोर्ट से कहा, ऐसे मामलों में हर दिन अहम

Chhattisgarh Reporter
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छत्तीसगढ़ रिपोर्टर

नई दिल्ली 20 अगस्त 2023। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दुष्कर्म पीड़िता के गर्भपात मामलों को तत्काल निपटाया जाना चाहिए। अदालतों को इसमें तेजी का रुख अपनाना चाहिए। साथ ही, ऐसे ही एक मामले में 26 सप्ताह की गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की याचिका पर निर्णय में देरी को लेकर गुजरात हाईकोर्ट को फटकार लगाई। कहा, हाईकोर्ट ने इस तथ्य को नजरअंदाज किया कि इस मामले में एक-एक दिन की देरी बेहद महत्वपूर्ण है। मामले के लंबित रहने से कीमती वक्त बर्बाद हो गया।

जस्टिस बीवी नागरत्ना व जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने मामले की तात्कालिकता को ध्यान में रखते हुए याचिका पर शनिवार को गौर किया। पीठ ने गुजरात सरकार व अन्य को नोटिस जारी किया हैै। हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार से आदेश अपलोड होने संबंधी जानकारी भी मांगी है। अब अगली सुनवाई सोमवार को होगी।

12 दिन बाद किया सूचीबद्ध
याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि 25 वर्षीय महिला ने 7 अगस्त को हाईकोर्ट का रुख किया था और अगले दिन मामले की सुनवाई हुई। हाईकोर्ट ने 8 अगस्त को गर्भावस्था की स्थिति के साथ याचिकाकर्ता की स्वास्थ्य का पता लगाने के लिए एक मेडिकल बोर्ड के गठन करने का निर्देश दिया। मेडिकल कॉलेज ने जांच के बाद 10 अगस्त को अपनी रिपोर्ट कोर्ट में पेश की। रिपोर्ट को हाईकोर्ट ने 11 अगस्त को रिकॉर्ड पर लिया था, लेकिन मामले को 12 दिन बाद यानी 23 अगस्त के लिए सूचीबद्ध कर दिया गया। इसके बाद बिना कारण बताए 17 अगस्त को याचिका खारिज कर दी।

कॉलेजियम प्रस्तावों को अधिसूचित करने संबंधी याचिका पर एजी से मांगी मदद
सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम की ओर से अनुशंसित न्यायाधीशों की नियुक्ति को एक समय सीमा के भीतर अधिसूचित करने के संबंध में केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग वाली याचिका पर फैसला लेने में अटॉर्नी जनरल (एजी) आर वेंकरमणी की सहायता मांगी है। मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्र की पीठ ने मामले में सुनवाई करते हुए एजी ऑफिस को याचिका की एक कॉपी भेजने का निर्देश दिया और मामले की सुनवाई 8 सितंबर को तय की। शीर्ष अदालत वकील हर्ष विभोर सिंघल की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में कहा गया है कि कोई समय सीमा तय नहीं होने की वजह से सरकार कॉलेजियम की सिफारिशों पर न्यायाधीशों की नियुक्ति को अधिसूचित करने में मनमाना देरी करती है।

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