मणिपुर में हिंसा से परेशान लोग: महिलाओं ने संभाला मोर्चा, एकजुट होकर शांति के लिए मशाल लेकर सड़कों पर उतरीं

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छत्तीसगढ़ रिपोर्टर

इंफाल 18 जून 2023। मणिपुर में लगातार हिंसा भड़कती जा रही है। इससे आम नागरिकों को परेशानी हो रही है। राज्य में शांति लाने के लिए महिलाओं ने मोर्चा संभाल लिया है। राज्य में हो रही हिंसा की निंदा करने के लिए कई जिलों में सैकड़ों महिलाएं शनिवार रात सड़कों पर उतरीं।  इंफाल के पूर्व- पश्चिम, थौबल और काकचिंग जिलों में शाम सात बजे से रात आठ बजे तक सड़कों पर महिलाएं इकट्ठी हुईं और रैली निकाली। इस दौरान महिलाओं के हाथ में आग की मशालें थीं। 

कोंगबा में मीरा पैबी की नेता थौनाओजम किरण देवी ने पत्रकारों से कहा कि हम सब सरकार और केंद्र सरकार से बहुत निराश है। वे हिंसा को रोकने और सुरक्षा प्रदान करने में विफल रहे हैं। सड़कों पर उतरी महिलाओं ने म्यांमार से अवैध अप्रवासियों की घुसपैठ का भी विरोध किया। महिलाओं ने राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) को लागू करने की मांग को लेकर नारेबाजी की। बता दें, मणिपुर में एक महीने पहले भड़की मीतेई और कुकी समुदाय के लोगों के बीच जातीय हिंसा में 100 से अधिक लोगों की जान चली गई है। राज्य सरकार ने अफवाहों को फैलने से रोकने के लिए 11 जिलों में कर्फ्यू लगा दिया था और इंटरनेट सेवाओं पर प्रतिबंध लगा दिया था।

मणिपुर की राजधानी इंफाल बिल्कुल बीच में है। ये पूरे प्रदेश का 10 फीसदी हिस्सा है, जिसमें प्रदेश की 57 फीसदी आबादी रहती है। बाकी चारों तरफ 90 फीसदी हिस्से में पहाड़ी इलाके हैं, जहां प्रदेश की 42 फीसदी आबादी रहती है। इंफाल घाटी वाले इलाके में मैतेई समुदाय की आबादी ज्यादा है। ये ज्यादातर हिंदू होते हैं। मणिपुर की कुल आबादी में इनकी हिस्सेदारी करीब 53 फीसदी है। आंकड़ें देखें तो सूबे के कुल 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई समुदाय से हैं।

वहीं, दूसरी ओर पहाड़ी इलाकों में 33 मान्यता प्राप्त जनजातियां रहती हैं। इनमें प्रमुख रूप से नागा और कुकी जनजाति हैं। ये दोनों जनजातियां मुख्य रूप से ईसाई हैं। इसके अलावा मणिपुर में आठ-आठ प्रतिशत आबादी मुस्लिम और सनमही समुदाय की है।  भारतीय संविधान के आर्टिकल 371C के तहत मणिपुर की पहाड़ी जनजातियों को विशेष दर्जा और सुविधाएं मिली हुए हैं, जो मैतेई समुदाय को नहीं मिलती। ‘लैंड रिफॉर्म एक्ट’ की वजह से मैतेई समुदाय पहाड़ी इलाकों में जमीन खरीदकर बस नहीं हो सकता। जबकि जनजातियों पर पहाड़ी इलाके से घाटी में आकर बसने पर कोई रोक नहीं है। इससे दोनों समुदायों में मतभेद बढ़ गए। 

फिर ऐसे शुरू हुई हिंसा

तनाव की शुरुआत चुराचंदपुर जिले से हुई। ये राजधानी इंफाल के दक्षिण में करीब 63 किलोमीटर की दूरी पर है। इस जिले में कुकी आदिवासी ज्यादा हैं। गवर्नमेंट लैंड सर्वे के विरोध में 28 अप्रैल को द इंडिजेनस ट्राइबल लीडर्स फोरम ने चुराचंदपुर में आठ घंटे बंद का ऐलान किया था। देखते ही देखते इस बंद ने हिंसक रूप ले लिया। उसी रात तुइबोंग एरिया में उपद्रवियों ने वन विभाग के ऑफिस को आग के हवाले कर दिया। 27-28 अप्रैल की हिंसा में मुख्य तौर पर पुलिस और कुकी आदिवासी आमने-सामने थे।  इसके ठीक पांचवें दिन यानी तीन मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर ने ‘आदिवासी एकता मार्च’ निकाला। ये मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा देने के विरोध में था। यहीं से स्थिति काफी बिगड़ गई। आदिवासियों के इस प्रदर्शन के विरोध में मैतेई समुदाय के लोग खड़े हो गए। लड़ाई के तीन पक्ष हो गए।  

एक तरफ मैतेई समुदाय के लोग थे तो दूसरी ओर कुकी और नागा समुदाय के लोग। देखते ही देखते पूरा प्रदेश इस हिंसा की आग में जलने लगा। चार मई को चुराचंदपुर में मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की एक रैली होने वाली थी। पूरी तैयारी हो गई थी, लेकिन रात में ही उपद्रवियों ने टेंट और कार्यक्रम स्थल पर आग लगा दी। सीएम का कार्यक्रम स्थगित हो गया। 

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