छत्तीसगढ़ रिपोर्टर
नई दिलली 09 मई 2022। सोलोमन द्वीप और चीन के बीच अप्रैल में हुए गुप्त सुरक्षा समझौते ने ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में बड़ी हलचल पैदा कर दी है। इस करार से चीन सोलोमन में पूर्ण विकसित सैन्य अड्डा बना सकता है। इसकी स्थापना से ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण प्रशांत तक खतरा पैदा हो सकता है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, न्यूजीलैंड और अमेरिका दक्षिण प्रशांत क्षेत्र के निर्विवाद मालिक बने हुए हैं। दशकों से कोई भी बाहरी शक्ति इस क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर पाई है, लेकिन चीन की आर्थिक और कूटनीतिक उदारता के चलते यह परिदृश्य बदल रहा है। चीन दूसरे देशों की आर्थिक मदद व निवेश के दम पर समूचे प्रशांत क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है।
उदाहरण के लिए सोलोमन द्वीप को लीजिए। वहां चीनी व मलेशिया की कंपनियां जंगल को तबाह कर रही हैं। सोलोमन के जंगलों की 90 फीसदी लकड़ी चीन जाती है। 2019 में चीन सोलोमन आइलैंड का सबसे बड़ा आयातक व निर्यातक था। 16 प्रशांत देशों में से केवल मार्शल द्वीप, नाउरू, पलाऊ और तुवालु ने ताइवान के साथ राजनयिक संबंध बनाए रखा। पूरी दुनिया में चीनी कंपनियां ड्रैगन की पूंछ फैला रही हैं, लेकिन इन सबका संचालन बीजिंग में बैठे उनके आका करते हैं। चीनी निवेशक आगे हैं, लेकिन चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के अधिकारी और संगठन उन्हें अपने इशारे पर नचाते हैं। प्रशांत क्षेत्र में बीजिंग छोटे देशों में निहित कमजोरियों का फायदा उठा रहा है। वह भोले-भाले लोगों को धमका रहा है और लालची को पैसे से तृप्त कर रहा है। वह यह जानता है कि दबाव का विरोध करने के लिए सोलोमन द्वीप जैसी जगहों पर नियामक ढांचे बहुत कमजोर हैं। कई प्रशांत देशों में राजनीतिक व्यवस्था पहले से ही नाजुक हालत में है। चीनी गतिविधियां इन देशों के लोकतंत्र को और कमजोर कर रही हैं। फिजी चीन के साथ सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर करने वाला पहला प्रशांत देश था। उसने 2011 में पुलिस सहयोग पर और 2014 में सीमा नियंत्रण उपकरण और प्रशिक्षण जैसे रक्षा मुद्दों पर चीन से समझौता किया था।