छत्तीसगढ़ रिपोर्टर
नई दिल्ली 26 फरवरी 2022। एक ऐसे समय जब यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद विश्व व्यवस्था में व्यापक बदलाव के प्रबल आसार उभर आए हैं, तब भारत के लिए रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की पहल तेज करना और आवश्यक हो जाता है। यह अच्छा हुआ कि गत दिवस प्रधानमंत्री ने रक्षा बजट से जुड़े एक वेबिनार को संबोधित करते हुए रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता पर नए सिरे से जोर दिया। इस दौरान उन्होंने यह उल्लेख किया कि पिछले कुछ वर्षो में जहां रक्षा सामग्री के निर्यात में बढ़ोतरी हुई है, वहीं रक्षा खरीद में गड़बड़ी का सिलसिला बंद हुआ है। इसके बावजूद इसकी आवश्यकता बनी हुई है कि भारत रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के अपने लक्ष्य को यथाशीघ्र प्राप्त करे।
यह इसलिए और आवश्यक हो गया है, क्योंकि यूक्रेन पर हमले के बाद अमेरिका और उसके सहयोगी देश रूस पर प्रतिबंध लगाने में जुट गए हैं। इन प्रतिबंधों का असर रूस से होने वाली रक्षा सामग्री की खरीद पर भी पड़ने की आशंका है। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि भारत की करीब 60 प्रतिशत रक्षा सामग्री रूस से ही आती है। इसी तरह यह भी एक तथ्य है कि रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के तमाम प्रयासों के बाद भी भारत रक्षा सामग्री का आयात करने वाले प्रमुख देशों में शामिल है
प्रधानमंत्री ने यह सही कहा कि विदेश से हथियार खरीदने की प्रक्रिया जटिल और लंबी होती है। कई बार तो जब तक आयातित रक्षा सामग्री हमारी सेनाओं तक पहुंचती है, तब तक उसकी उपयोगिता कम हो जाती है। यह भी एक सच्चाई है कि अंतरराष्ट्रीय रक्षा बाजार में इतनी होड़ है कि प्रतिद्वंद्वी कंपनियां एक-दूसरे के उत्पादों के खिलाफ मुहिम छेड़ती रहती हैं। इससे उपयुक्त रक्षा सामग्री को लेकर असमंजस पैदा होता है और वह रक्षा सौदों में देरी का कारण बनता है। वैसे तो आदर्श स्थिति यह है कि भारत हथियारों की होड़ से बचे, लेकिन जब तक पाकिस्तान और चीन के रुख-रवैये में बदलाव नहीं आता, तब तक हमें अपनी रक्षा तैयारियों को लेकर सजग रहना ही होगा।
नि:संदेह रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने का लक्ष्य रातोंरात हासिल नहीं किया जा सकता, लेकिन इतना तो है ही कि इस दिशा में तेजी से काम होना चाहिए। इसके लिए यह आवश्यक है कि निजी क्षेत्र आगे आए और वह सार्वजनिक क्षेत्र से प्रतिस्पर्धा करे।