शिकारी बाघ मनेन्द्रगढ़ वनमंडल से कोरिया वनमंडल होते हुए गुरूघासीदास राष्ट्रीय उद्यान की दिशा ओर अग्रसर ?
छत्तीसगढ़ रिपोर्टर / मो. साजिद खान
एमसीबी/कोरिया (सरगुजा) — आज भी जंगलों के कई स्थानों को चीतामाढा , बघधरी, बाघमाढा और भालूमाढा नाम से ग्रामीण पुकारते हैं। जिले के जंगली इलाकों में इन नामों वाले स्थानों को ऐसे ही नही पुकारा जाता है बल्कि बुजुर्ग ग्रामीण बताते हैं कि वाकई में हमारे पुरखों के जमाने में इन जगहों पर शेर और चीतों का रहवास हुआ करता था। वह अपना शिकार करके इन स्थानों पर घूम फिर कर आते थे। इसलिए इन स्थलों का नाम ऐसा पड़ा है। स्थलों का नाम तो आज भी है लेकिन जिन शेर और चीतों के नाम से इन स्थलों का नाम पड़ा अब उन जगहों पर ये जानवर नही है। चार मानवीय शिकार कर चुके आदमखोर तेंदुए के पकड़े जाने के बाद आज इसी मनेन्द्रगढ़ वनमंडल में फिर एक भटकता हुआ बाघ कुंवारपुर से केल्हारी होते हुए बिहारपुर के जंगल (परिक्षेत्र) में पहुंचकर अब कोरिया वनमंडल के जंगल से गुरूघासी राष्ट्रीय उद्यान की दिशा की तरफ अग्रसर लग रहा है !
जंगल के अफसरों की नजर —
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अचानकमार की डाग स्कवायड की टीम की मदद से वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के मनेन्द्रगढ़ वनमंडल के एसडीओ व केल्हारी और बिहारपुर के रेंजर टीम के साथ गुरूघासी दास राष्ट्रीय उद्यान के संचालक इस बाघ के मुवमेंट की रेकी में लगे रहे और गांवों में रात में जंगल नही जाने का मुनादी कर कोरम पूरा चला है।
समय और बदलाव —
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शिकारी बाघ की घटना और दहशत —
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मनेन्द्रगढ़ वनमंडल के कुंवारपुर और जनकपुर परिक्षेत्र में हडकंप मचाकर शिकंजे में पकड़े गए आदमखोर तेंदुए के चार बार शिकार करने के बाद वनमंडल के उसी कुंवारपुर जंगल से भटकते हुए और केल्हारी के जंगल में( परिक्षेत्र) में बीते शुक्रवार को तालाब में मछली मार रहे कछौड ग्राम के गुंडरूपारा के बुधलाल अगरिया पिता चैतुलाल को अपना शिकार बना लिया। उसके शरीर के गर्दन व चेहरे पर बाघ का वार रहा तथा एक टांग ही गायब रही।

मृतक के इस शव को वनमंडलाधिकारी सहित स्टाफ के साथ स्थानीय ग्रामीणों ने प्रत्यक्ष अपनी आंखों से देखा। हालांकि एमसीबी कलेक्टर भी इस घटना के बाद वन अमले के साथ डंडा पकड़ कर वहां मौजूद रहे। 25 हजार मुआवजा मिलने के बाद इस मृतक के परिवार को नियमानुसार पूरा मुआवजा भी मिल जाएगा। बाघ के पंजे के निशान मिलने के बाद से क्या जंगल में नही जाने की मुनादी वाला कोरम कर देने मात्र से इतिश्री पूरी हो जाती है ? जहां ग्रामीणों की जीवन चर्या ही जंगल है ? बीते कल इसी बाघ द्वारा सोनहरी एरिया के जंगल में मवेशियों के झूंड में से मवेशी को अपना शिकार बनाया। मूवमेंट की जानकारी में पता चल रहा है कि बाघ कोरिया वनमंडल के जंगल मे पहुंच चुका है और अब उसके जाने की दशा और दिशा गुरूघासी दास राष्ट्रीय उद्यान की तरफ लगती है।
जानकारी का एक पहलू —
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मनेन्द्रगढ़ वनमंडल के ही एक अधिकारी ने बताया कि बाघ अपने पुरखों की जगह माढा वगैरह को अब नही पहचानेगा। इतना बडा जंगल है कि आदमी सतर्क रहे तो नुकसान नही होगा। निशानदेही यही है कि उसको लगभग प्रतिदिन 36 किमी चलने का रहता है। गांव देहात वाले जानते हैं इसके चलने को 12 कोश बताएंगे। केल्हारी रेंज में जो घटना हुई फिर लगभग 30 से 36 किमी बाद दूसरी घटना हुई। जिसमें सोनहरी तरफ के जंगल मे मवेशी का शिकार हुआ। हिंसक प्राणी ज्यादातर शाम को ही यह शिकार पर हमला करता है। अगर बांधवगढ़ तरफ का बाघ होता तो इधर संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान की तरफ निकल गया होता। लेकिन यह कचोहर की तरफ से गुरूघासीदास राष्ट्रीय उद्यान की तरफ बढते जा रहा है। उसी जंगल में चला जाएगा। तेंदुए को तो जाल में फंसा लिया गया लेकिन बाघ को फंसा पाना बडा कठिन है। बाघ सामने के हजारों के झूंड में निडर रहता है। बहुत ताकतवर होता है। वजनदार शिकार को घसीटकर लादकर निकल जाता है। यह इस तरफ निकल रहा है तो समझ आ रहा है कि गुरूघासी दास राष्ट्रीय उद्यान का ही हो सकता है।