छत्तीसगढ़ रिपोर्टर
नई दिल्ली 22 नवंबर 2021। विवादित कृषि कानूनों की वापसी के बाद अब मजदूर संगठन लेबर लॉ समेत कई मुद्दों को लेकर मोदी सरकार पर दबाव बनाने की योजना में जुट गए हैं। विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करने की पीएम की घोषणा के बाद केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने श्रम कानूनों, राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (एनएमपी) और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में विनिवेश के खिलाफ अपना विरोध तेज करने का फैसला किया है। 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों की संयुक्त समिति ने भी फरवरी में संसद के बजट सत्र के दौरान दो दिवसीय हड़ताल करने का फैसला किया है। यूनियनों ने कृषि कानूनों के खिलाफ संयुक्त किसान मोर्चा के आंदोलन का समर्थन किया है और विभिन्न अवसरों पर एक कॉमन कॉज के लिए मजदूर-किसान एकता बनाने की कोशिश की है।
सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन्स (सीटू) के महासचिव तपन सेन ने बताया, ‘हम केंद्र सरकार की मजदूर-किसान-विरोधी और जन-विरोधी नीतियों को बदलने के लिए मजदूर-किसान की संयुक्त कार्रवाई और संघर्ष को मजबूत करने के अपने संकल्प को दोहराते हैं।’ सीटू सीपीएम से संबद्ध एक श्रमिक संघ है और उन 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों का हिस्सा है जिन्होंने एक संयुक्त मंच बनाया है।
सेन का कहना है कि किसानों और मजदूरों के आंदोलन में अंतर होता है। उन्होंने कहा कि किसान एक साल तक आंदोलन पर बैठ सकते हैं और जब वे वापस जाएंगे, तो उनके पास उनकी जमीन होती है मगर श्रमिकों के लिए ऐसा नहीं है। हमें काम और आंदोलन के बीच संतुलन खोजना होगा। बता दें कि 28 नवंबर को मुंबई में किसान मजदूर महापंचायत बुलाई गई है, जिसमें संयुक्त किसान मोर्चा और विभिन ट्रेड यूनियन्स के नेता भाग लेंगे। यहां जानना जरूरी है कि आरएसएस से जुड़ा भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) इन दस संघों की कमेटी का हिस्सा नहीं है। बीएमएस के चीफ साजी नारायण ने कहा कि हम अन्य ट्रेड यूनियनों के साथ नहीं हैं। हमारे पास बीएमएस के तहत 40 फेडरेशन हैं और वर्तमान में सार्वजनिक क्षेत्र में विनिवेश के खिलाफ विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं।