छत्तीसगढ़ रिपोर्टर
नई दिल्ली 29 सितम्बर 2021। जमीन से हवा में मार करने वाली (सर्फेस-टू-एयर) आकाश मिसाइलों के बेड़े में एक नई घातक मिसाइल का नाम जुड़ा है। इस नई मिसाइल का नाम आकाश ‘प्राइम’ दिया गया है। डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (डीआरडीओ) ने सोमवार को ही ओडिशा की चांदीपुर रेंज से इस मिसाइल का परीक्षण किया। मिसाइल के टेस्टिंग वीडियो में इसे हवा में तैर रहे एक मानवरहित लक्ष्य को अचूक निशाने से भेदते देखा गया। अब इस सफल टेस्टिंग के बाद कई रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि आकाश प्राइम मिसाइल को चीन को ध्यान रखते हुए बनाया गया है।
क्या हैं आकाश मिसाइल?
आकाश मिसाइल परिवार में अब तक कुल दो मिसाइलें थीं और आकाश प्राइम इस वर्ग की तीसरी अहम मिसाइल बन गई है। यह सभी जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइलें हैं। यानी इन्हें जमीन पर किसी भी वाहन या स्थायी जगह से दागा जा सकता है। ये मिसाइलें हवा में किसी भी तरह के एयरक्राफ्ट को नष्ट करने में सक्षम हैं। आकाश मिसाइलों को विकसित करने का काम डीआरडीओ ने किया है और इनका उत्पादन भारत डायनेमिक्स लिमिटेड की ओर से किया जाता है। इसके सर्विलांस, रडार, कमांड सेंटर और लॉन्चर को बाने की जिम्मेदारी भारत इलेक्ट्रॉनिक्स (बीईएल), टाटा पावर स्ट्रैटिजिक इंजीनियरिंग डिवीजन और लार्सेन एंड टूब्रो के पास है। आकाश मिसाइलें भारत में बनीं हवा में मार करने वाली मिसाइल हैं। इसके पहले वर्जन मार्क-1 को रूस के 2के12 सब (एसए-6 गेनफुल) मिसाइल सिस्टम को सेवा से हटाने के लिए विकसित किया गया। मार्क-1 की पहली टेस्ट फ्लाइट 1990 में सफलतापूर्वक पूरी हुई थी। यह मिसाइल मैनुअल कंट्रोल पर आधारित थीं। यानी लॉन्चिंग से लेकर निशाना लगाने तक ये मिसाइल इंसानी नियंत्रण पर निर्भर थी।
अगली मिसाइल आकाश-1एस रही। यह मिसाइल आकाश मार्क-1 के ही आधुनिक रूप के तौर पर विकसित हुई। दरअसल, सेना लंबे समय से ऐसी मिसाइल चाहती थी, जो खुद ही निशाने को ज्यादा सफाई से पहचान कर उन्हें तबाह कर दे। डीआरडीओ ने आकाश-1एस की टेस्टिंग 25 से 27 मई 2019 के बीच पूरी कर ली। इस मिसाइल की रेंज आसमान में तीस किलोमीटर तक है और यह एक बार में 60 किलोग्राम तक पेलोड ले जा सकती है। यह मिसाइल हवा में भी नियंत्रित की जा सकती है और खुद भी सेंसर्स के जरिए ड्रोन्स से लेकर फाइटर जेट्स तक को निशाना बना सकती है।
आकाश प्राइम बाकी दोनों मिसाइलों से अलग कैसे?
जहां आकाश परिवार की बाकी दोनों मिसाइलें शॉर्ट रेंज मिसाइलें थीं। वहीं, आकाश प्राइम मीडियम रेंज मिसाइल है। आकाश मार्क-1 और आकाश-1एस दोनों में ही विदेश से मंगाए गए रेडियो फ्रीक्वेंसी सीकर (ऐसे सेंसर्स जो लक्ष्य तक आ-जा रहे सिग्नल को पहचान सकें) लगाए जाते थे। लेकिन आकाश प्राइम मिसाइल में मेड इन इंडिया आरएफ सीकर लगाए गए हैं। यह आरएफ सीकर विदेशी तकनीक से अलग भारत की जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं।
क्या हैं आरएफ सीकर?
ये आरएफ सीकर रडार की तरह ही काम करते हैं, लेकिन रडार से से उलट यह खुद सिग्नल प्रेषित नहीं करते। इन्हीं रेडियो फ्रीक्वेंसी सीकर के जरिए मिसाइल खुद-ब-खुद ऐसे एयरक्राफ्ट्स को आसानी से ढूंढ लेती है, जो सुदूर स्थानों से रिमोट कंट्रोल के जरिए चलाए जा रहे हैं। भारत ने जो आकाश प्राइम मिसाइल के लिए जो आरएफ सीकर तैयार किए हैं, वो मुख्य तौर पर कम तापमान में भी अचूक निशाने के साथ काम करने के लिहाज से बनाए गए हैं। इनका निर्माण डीआरडीओ की ही डीआर-एल लैब में हुआ है। ये आरएफ सीकर उन ऊंची ठंडी जगहों पर ज्यादा बेहतर तरीके से काम करेंगे, जहां सामान्य आरएफ सीकर टारगेट को ढूंढकर खत्म करने में नाकाम हो जाते हैं। यानी कि भारत की उत्तरी और पूर्वोत्तर की सीमा पर ये मिसाइलें काफी कारगर साबित होंगी। माना जा सकता है कि डीआरडीओ ने आकाश प्राइम की तकनीक को काफी हद तक चीन को ध्यान में रखते हुए तैयार किया है।
कम लागत वाली आधुनिक सुपरसॉनिक मिसाइल
आकाश परिवार की इस मिसाइल में सिर्फ लक्ष्य को भेदने की क्षमता ही बेहतर नहीं की गई है, बल्कि इसके ग्राउंड लॉन्चर को भी बेहतर नियंत्रण के लिए डिजाइन किया गया है। सबसे खास बात यह है कि आकाश इस वक्त दुनिया की सबसे सस्ती सुपरसॉनिक सर्फेस-टू-एयर मिसाइलों में से एक है। इसकी रेंज 27 किमी की है जो कि इस सुपरसॉनिक क्षमताओं के साथ इसे दुनिया की सबसे आधुनिक और सबसे कम लागत वाली मिसाइल बनाती है। आकाश प्राइम का सीधा मुकाबला अमेरिका की बनाईं पेट्रियट मिसाइल सिस्टम से है, जो कि काफी महंगी हैं। भारत की इस मिसाइल की नई तरह की रडार से इसका निशाना भी पेट्रियट से बेहतर है।